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Friday, 19 July 2019

कल्पना चावला की जीवनी | Kalpana Chawla Biography


Kalpana Chawla – कल्पना चावला पहली भारतीय अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री और अन्तरिक्ष में जाने वाली प्रथम भारतीय महिला थी। 1997 में वह अंतरिक्ष शटल मिशन विशेषज्ञ थी और 2003 में कोलंबिया अन्तरिक्ष यान आपदा में मारे गये सात यात्रियों के दल में से एक थी।


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कल्पना चावला प्रारंभिक जीवन – Kalpana Chawla In Hindi

नाम (Name)
कल्पना चावला
जन्म (Born)
1 जुलाई, 1961
मृत्यु (Death)
1 फरवरी, 2003
जन्म स्थान (Birthplace)
करनाल
पेशा (Occupation)
इंजीनियर, टेक्नोलॉजिस्ट
पिता का नाम (Father)
बनारसी लाल चावला
माता का नाम (Mother)
संज्योथी चावला
पति का नाम (Husband)
जीन पिएरे हैरिसन
अवार्ड्स (Award)
कांग्रेशनल स्पेस मेडल ऑफ ऑनर,
नासा अंतरिक्ष उड़ान पदक और नासा,
विशिष्ट सेवा पदक

कल्पना चावला का प्रारंभिक जीवन – Kalpana Chawla Informationकल्पना चावला  – Kalpana Chawla अंतरिक्ष में यात्रा करने वाली भारत की पहली महिला एरोनॉटिकल इंजीनियर(वैमानिक अभियांत्रिकी) थीं। एयरोनॉटिक्स के क्षेत्र में उपलब्धि और योगदान के मामले में वे कई महिलाओं के लिए एक आदर्श मॉडल भी रहीं हैं।
अंतिरक्ष यात्री कल्पना चावला – Kalpana Chawla का जन्म हरियाणा राज्य में स्थित एक छोटे से शहर करनाल में 1 जुलाई, 1961 को हुआ था। उनके माता-पिता, बनारसी लाल चावला और संज्योति थे जिनकी कल्पना के अलावा दो अन्य बेटियां औऱ एक बेटे थे।
कल्पना चावला – Kalpana Chawla की बहनों का नाम सुनीता और दीपा है जबिक उनके भाई का नाम संजय है। आपको बता दें कि कल्पना अपने भाई-बहनों में सबसे छोटी थी इसलिए उन्हें परिवार से ज्यादा लाड़-प्यार मिलता था और वे अपने चंचल स्वभाव से सभी को मोहित कर लेती थी इसलिए वे सबकी लाड़ली भी थी।

कल्पना चावला की शिक्षा – Kalpana Chawla Education

कल्पना चावला – Kalpana Chawla की प्रारंभिक शिक्षा करनाल के टैगोर पब्लिक स्कूल में हुई। कल्पना ने अपना लक्ष्य बचपन में ही निर्धारित कर लिया था। वे शुरु से ही एरोनॉटिक इंजीनियर बनना चाहती थी और अंतरिक्ष में यात्रा करने के सपने संजोया करती थी लेकिन उनके पिता चाहते थे कि कल्पना टीचर बने।
अपने सपने को सच में साबित करने के लिए कल्पना चावला – Kalpana Chawla ने चंड़ीगढ़ के पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज में एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में एडमिशन लिया और 1982 में उन्होनें एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की डिग्री पूरी कर ली। उसी साल कल्पना चावला – Kalpana Chawla अमेरिका चलीं गईं।
उन्होनें 1982 में आर्लिंगटन में टेक्सास विश्वविद्यालय में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर्स करने के लिए एडमिशन लिया इसके बाद कल्पना चावला – Kalpana Chawla ने इसे 1984 में सफलतापूर्वक पूरा किया। इस बीच 1983 में उन्होनें जीन-पियरे हैरिसन से शादी भी की। वे एक उड़ान प्रशिक्षक (flying instructor ) और विमानन लेखक (aviation author) थे।
कल्पना चावला – Kalpana Chawla में शुरु से ही अंतरिक्ष में यात्रा करने की इच्छा इतनी प्रबल थी कि उन्होंने 1986 में ‘एयरोस्पेस इंजीनियरिंग’ में दूसरा मास्टर्स भी किया और उसके बाद कोलराडो यूनिवर्सिटी ने उन्होनें ‘एयरोस्पेस इंजीनियरिंग’ विषय में PHD की पढ़ाई पूरी की।

कल्पना चावला का करियर – Kalpana Chawla Career


कल्पना चावला एक प्रमाणित उड़ान प्रशिक्षक (flight instructor) थी। कल्पना चावला – Kalpana Chawla को हवाई जहाजों, ग्लाइडरो और व्यावसायिक विमानचालन के लाइसेंसों के लिए प्रमाणित उड़न प्रशिक्षक का दर्जा हासिल था। उन्हें एकल, बहु इंजन वयुयानो के लिए व्यावसायिक विमानचालक के लाइसेंस भी प्राप्त थे।
कल्पना एक लाइसेंस प्राप्त तकनीशियन वर्ग की एमेच्योर रेडियो पर्सन थी जो कि संघीय संचार आयोग द्धारा प्रमाणित किया गया था।
एयरोस्पेस में अपनी कई डिग्री होने के वजह से, कल्पना चावला – Kalpana Chawla को नासा में 1993 में ‘अमेस रिसर्च सेण्टर’ में ‘ओवरसेट मेथड्स इंक’ के उपाध्यक्ष के रूप में नौकरी मिली। वहां उन्होंने वी/एसटीओएल में सीएफ़डी पर रिसर्च की।
कल्पना चावला – Kalpana Chawla वर्टिकल / शॉर्ट टेकऑफ और लैंडिंग पर कम्प्यूटेशनल तरल गतिशीलता अनुसंधान में व्यापक रूप से शामिल थीं। 1995 तक वह नासा ‘अंतरिक्ष यात्री कोर’ (एस्ट्रोनोट कॉर्प) का हिस्सा बन गई थी।
3 साल बाद, उसे अंतरिक्ष के शटल में पृथ्वी के चारों ओर यात्रा करने के लिए अपने पहले मिशन के लिए चुना गया था। इस ऑपरेशन में 6 अन्य सदस्य भी शामिल थे। इसमें कल्पना चावला – Kalpana Chawla स्पार्टन सैटेलाइट (Spartan Sarellite) के आयोजन करने के लिए ज़िम्मेदार सौंपी गई थी लेकिन खराब स्थिति के कारण वह अपनी भूमिका में असफल रही थी।
तकनीकी त्रुटियों के कारण, सैलेलाइट ने ग्राउंड स्टाफ और फ्लाइट क्रू सदस्यों के नियंत्रण को रोक दिया। लेकिन कल्पना चावला – Kalpana Chawla ने इसे सही साबित कर दिखाया।
दूसरी तरफ, कल्पना चावला – Kalpana Chawla अंतरिक्ष में यात्रा करने वाली पहली भारतीय महिला और दूसरे भारतीय बन गईं। इससे पहले भारत के राकेश शर्मा ने साल 1984 में अंतरिक्ष की यात्रा की थी।
आपको बता दें कि कल्पना चावला – Kalpana Chawla ने 10.4 मिलियन किमी (1 करोड़ मील) की अंतरिक्ष यात्रा की। यह लगभग पृथ्वी के चारों ओर 252 चक्कर लगाने के बराबर था। उन्होनें कुल 372 घंटे अंतरिक्ष में व्यतीत किए।
कल्पना चावला – Kalpana Chawla की पहली अंतरिक्ष यात्रा (एसटीएस-87) के बाद इससे जुड़ी गतिविधियां पूरी करने के बाद कल्पना चावला – Kalpana Chawla को एस्ट्रोनॉट कार्यालय में ‘स्पेस स्टेशन’ पर कार्य करने की तकनीकी जिम्मेदारी सौंप दी गईं थी।
इसके बाद कल्पना चावला – Kalpana Chawla के उत्कृष्ट काम के लिए उन्हें सम्मानित किया गया था। साल 2000 में, कल्पना को उनके दूसरे अंतरिक्ष उड़ान के लिए चुना गया। उन्हें कोलंबिया अंतरिक्ष यान के एसटीएस-107 उड़ान के दल में शामिल किया गया।
इस मिशन में कल्पना को दी गई ज़िम्मेदारी में माइक्रोग्राइटी प्रयोग शामिल थे। अपने टीम के सदस्यों के साथ, उन्होंने उन्नत प्रौद्योगिकी विकास, अंतरिक्ष यात्री स्वास्थ्य और सुरक्षा, पृथ्वी और अंतरिक्ष विज्ञान के अध्ययन पर विस्तृत शोध किया।
इस मिशन के दौरान, शटल इंजन प्रवाह लाइनर में कई तकनीकी खराबी और अन्य कारण पा गए थे। जिसकी वजह से ये अभियान में लगातार देरी की गई लेकिन इसके बाद इस मिशन को फिर से शुरु किया गया।
6 जनवरी 2003 को कल्पना ने कोलंबिया पर चढ़ कर एसटीएस-107 मिशन की शुरुआत की। उन्हें इस मिशन में उन्हें लघुगुरुत्व (माइक्रोग्राइटी) प्रयोग करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी जिसके लिए उन्होनें अपनी टीम के साथ 80 प्रयोग किए।
इन प्रयोगों के जरिए पृथ्वी व अंतरिक्ष विज्ञान, उन्नत तकनीक विकास व अंतरिक्ष यात्री स्वास्थ्य व सुरक्षा का भी अध्ययन किया गया। आपको बता दें कि कोलंबिया अन्तरिक्ष यान के इस अभियान में कल्पना चावला – Kalpana Chawla के साथ अन्य यात्री भी शामिल थे।

कोलंबिया STS107 में अंतरिक्ष यात्रा करने वाले 7 सदस्य – Columbia Space Shuttle Disaster Dead Bodies

कमांडर रिक डी. हस्बैंड (Rick Husband), पायलट विलियम सी मैकूल (William C. McCool), कमांडर माइकल पी एंडरसन (Michael P. Anderson), इलान रामों (Ilan Ramon), डेविड एम ब्राउन (David M. Brown), लौरेल क्लार्क (Laurel Clark), कल्पना चावला – (Kalpana Chawla) ।

कल्पना चावला की मृत्यु – Kalpana Chawla Death

भारत की पहली महिला अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला – Kalpana Chawla की दूसरी अंतरिक्ष यात्रा ही उनकी अंतिम यात्रा साबित हुई। 16 दिन की अंतरिक्ष यात्रा पूरा कर लौट रहा अमरीकी अंतरिक्ष यान कोलंबिया में 1 फरवरी 2003 को धरती से 63 किलोमीटर की ऊंचाई पर पृथ्वी के वायुमंडल मे प्रवेश करते ही टूटकर बिखर गया।
और देखते ही देखते अंतरिक्ष यान और उसमें सवार सातों यात्रियों की मौत हो गई। नासा ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए यह एक दर्दनाक घटना थी।
आपको बता दें कि उस समय उस अंतरिक्ष यान की गति 20 हजार किलोमीटर प्रति घंटा थी। जबकि यान का मलबा अमरीका के टेक्सास शहर में गिरा।
कल्पना चावला की उपलब्धियां –
कल्पना चावला – Kalpana Chawla को भारत का गौरव कहा जाता है इसके साथ ही वे अन्य लड़कियों के लिए आदर्श थी। वे 372 घंटे में अंतरिक्ष में यात्रा करने वाली पहली भारतीय महिला थीं और उन्होनें पृथ्वी के चारों ओर 252 चक्कर पूरे किए थे। उनकी उपलब्धियां भारत और विदेशों में कई अन्य लोगों के लिए एक प्रेरणा रही हैं। उसके नाम पर कई विज्ञान संस्थान हैं।

पुरुस्कार और सम्मान – Kalpana Chawla Achievements

अपने जीवनकाल के दौरान, कल्पना चावला – Kalpana Chawla को तीन पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, मरणोपरांत
1) कांग्रेशनल अंतरिक्ष पदक के सम्मान।
2) नासा अन्तरिक्ष उड़ान पदक।
3) नासा विशिष्ट सेवा पदक।

कल्पना चावला की जानकारी – Kalpana Chawla Life History

1961: 1 जुलाई को हरियाणा के करनाल में पैदा हुईं।
1982: पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज चंडीगढ़ से एरोनौटिकल इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की।
1982: आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका गयीं।
1983: उड़ान प्रशिक्षक जीन पिएर्र हैरिसन से विवाह किया।
1984: टेक्सास विश्वविद्यलय से ‘एयरोस्पेस इंजीनियरिंग’ में मास्टर ऑफ़ साइंस किया।
1988: ‘एयरोस्पेस इंजीनियरिंग’ विषय में शोध किया और पी.एच.डी. प्राप्त किया और नासा के लिए कार्य करने लगीं।
1993: ओवरसेट मेथड्स इंक में बतौर उपाध्यक्ष तथा अनुसन्धान वैज्ञानिक शामिल हुई।
1995: नासा के एस्ट्रोनॉट कोर्प में शामिल हुई।
1996: कोलंबिया अंतरिक्ष यान के एसटीएस-87 पर वे मिस्सिओना स्पेशलिस्ट के तौर पर गयीं थी।
1997: कोलंबिया अंतरिक्ष यान के एसटीएस-87 के द्वारा उन्होंने अंतरिक्ष में अपनी पहली उड़ान भरी।
2000: कल्पना को उनकी दूसरी अंतरिक्ष यात्रा यानि कोलंबिया अंतरिक्ष यान के एसटीएस-107 यात्रा के लिए चुना गया।
2003: 1 फरवरी को कोलंबिया अंतरिक्ष यान पृथ्वी के परिमंडल में प्रवेश करते समय टेक्सास के ऊपर दुर्घटनाग्रस्त हो गया जिसके फलस्वरूप यान पर सवार सभी 6 अंतरिक्ष यात्री मारे गए।
कल्पना चावला – Kalpana Chawla ने भारत की पहली महिला अंतरिक्ष यात्री हैं और उन्होनें यहां तक पहुंचने के लिए काफी संघर्ष किया है उनकी ईमानदारी, कठोर दृढ़संकल्प, और मजबूत इरादों के दम पर वे इस मुकाम तक पहुंची और बाकी लड़कियों के लिए आदर्श बनी।
मध्यम वर्गीय परिवार से होने के बावजूद कल्पना ने अपने सपने को पूरा करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी यहां तक कि जब वे अंतरिक्ष यात्रा पर गईं थी तब भारत का तंत्रज्ञान ज्यादा मजबूत नहीं था, साथ ही लोगों को अन्तरिक्ष की समझ भी नहीं थी। उस समय कल्पना चावला – Kalpana Chawla ने अन्तरिक्ष में जाकर पूरी दुनिया में अपनी सफलता का परचम लहराया। कल्पना चावला की प्रतिभा, लगन और उनका योगदान हमेशा याद किया जाएगा।

अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा | Rakesh Sharma Biography In Hindi

अंतरिक्ष की यात्रा करने वाले पहले भारतीय राकेश शर्मा – Rakesh Sharma ने जैसे ही अंतरिक्ष के लिए उड़ान भरी वैसे ही उन्होंने इतिहास रच दिया था और 8 दिन तक अंतरिक्ष में रहने के बाद 11 अप्रैल को कजाखस्तान में उनकी लैंडिंग हुई थी। हर एक भारतीय के लिए वे आज एक प्रेरणास्त्रोत है। आज हम यहाँ आपको उनके जीवन की कुछ बातो को उजागर करने जा रहे है –


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पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा – Rakesh Sharma Biography In Hindi

राकेश शर्मा, सोवियत संघ के हीरो भारतीय वायु सेना के पायलट थे जिन्होंने 3 अप्रैल 1984 को लॉन्च हुए सोयुज टी-11 को इंटेरकॉस्मोस प्रोग्राम के तहत उड़ाया था। अंतरिक्ष की यात्रा करने वाले शर्मा पहले भारतीय थे।
13 जनवरी 1949 को भारत के पंजाब प्रान्त के पटियाला में राकेश शर्मा का जन्म हुआ था। सेंट जॉर्जेस ग्रामर स्कूल, हैदराबाद से उन्होंने प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की थी और निज़ाम कॉलेज से वे ग्रेजुएट हुए थे। 35 वे राष्ट्रिय सुरक्षा अकादमी में राकेश शर्मा 1970 में भारतीय वायुसेना में टेस्ट पायलट के रूप में दाखिल हुए थे। 1971 से उन्होंने को एयरक्राफ्ट में उड़ान भरी थी। उनकी कौशल को देखते हुए 1984 में उन्हें भारतीय वायु सेना के स्कवार्डन लीडर और पायलट के पद पर नियुक्त किया गया था।
12 सितम्बर 1982 को सोवियत इंटरकॉसमॉस स्पेस प्रोग्राम और इसरो (इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाईजेशन) की तरफ से वे अंतरिक्ष जाने वाले समूह के सदस्य बने।
विंग कमांडर के पद पर रहते हुए वे सेवनिरवृत्त हुए थे। 1987 में वे हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड में ज्वाइन हुए और 1992 तक HAL नाशिक डिवीज़न में चीफ टेस्ट पायलट के पद पर रहते हुए सेवा की। बाद में HAL के चीफ टेस्ट पायलट पर रहते हुए ही उनका ट्रान्सफर बैंगलोर में किया गया। वे लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट तेजस से भी जुड़े हुए थे।
स्पेसफ्लाइट –
1984 में अंतरिक्ष में जाने वाले वे पहले भारतीय इंसान बने, अंतरिक्ष जाने के लिए उन्होंने सोवियत रॉकेट सोयुज टी-11 से उड़ान भरी थी, जिसे 2 अप्रैल 1984 को बैकोनूर कॉस्मोड्रो मे, कजाख से छोड़ा गया था। वे अंतरिक्ष में 7 दीन 21 घंटे और 40 मिनट तक रहे थे। इस दौरान उन्होंने कई वैज्ञानिक और तांत्रिक प्रयोग किये जिनमे 43 एक्सपेरिमेंटल सेशन भी शामिल है। उनका ज्यादातर कार्य बायो-मेडिसिन और रिमोट सेंसिंग के क्षेत्र में ही रहा है।
उनके क्रू ने जॉइंट टेलीविज़न पर पहले मास्को ऑफिसियल और फिर भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से कांफ्रेंस भी की थी। जब इंदिरा गांधी ने पूछा था की अंतरिक्ष से हमारा भारत कैसा दिखाई देता है तो राकेश शर्मा ने जवाब दिया था, सारे जहाँ से अच्छा। उस समय किसी इंसान को अंतरिक्ष में भेजने वाला भारत 14 वा देश बना था।
अवार्ड –
अंतरिक्ष से लौटने के बाद उन्होंने उन्हें हीरो ऑफ़ सोवियत संघ के पद से सम्मानित किया गया था। भारत सरकार ने भी उन्हें अपने सर्वोच्च अवार्ड (शांति के समय में) अशोक चक्र से सम्मानित किया था, अशोक चक्र सोवियत संघ के दो और सदस्य मलयशेव और स्ट्रेकलोव को भी दिया गया था, जो राकेश शर्मा के साथ ही अंतरिक्ष में गए थे।
वैयक्तिक जीवन –
1982 में वे जब रशिया रह रहे थे तब उन्होंने और उनकी पत्नी मधु ने रशिया भाषा भी सीखी थी। उनका बेटा कपिल फ़िल्म डायरेक्टर है ओट बेटी कृतिका मीडिया आर्टिस्ट है।
अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा की कुछ रोचक बाते –
1. Rakesh Sharma ऐसे पहले इंसान थे जिन्होंने अंतरिक्ष में रशियन को भारतीय खाना खिलाया था –
डिफेन्स फ़ूड रिसर्च लेबोरेटरी ने सूजी हलवा, आलू छोले और सब्जी पुलाव शर्मा को अंतरिक्ष जाते समय दिया था।
2. अंतरिक्ष में होने वाली बीमारियो से बचने के लिए वे योगा करते थे –
1984 में “शून्य गुरुत्वाकर्षण योगा” का अभ्यास शर्मा ने किया था और उनके इस प्रयास की रोकॉस्मोस ने काफी तारीफ भी की थी। 2009 की कांफ्रेंस में शर्मा ने अंतरिक्ष में जाने वाले यात्रियों को सलाह भी दी थी की वे अंतरिक्ष में जाने से पहले वहाँ की बीमारियो से बचने के लिए योग अभ्यास करे।
3. Rakesh Sharma को भारत के सर्वोच्च अवार्ड अशोक चक्र से सम्मानित किया गया था –
शांति काल के सर्वोच्च पुरस्कार अशोक चक्र से राकेश शर्मा और उनके दो रशियन साथियो को भी सम्मानित किया गया था। यह पहला और अंतिम मौका था जब किसी विदेशी नागरिक को अशोक चक्र से सम्मानित किया गया था।
4. उन्होंने इंदिरा गांधी के प्रश्न का सबसे उचित जवाब दिया था –
उस समय की भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जब राकेश शर्मा से पूछा की अंतरिक्ष से भारत कैसा दिखाई देता है तब जन्होंने बड़े ही गर्व से कहा था, सारे जहाँ से अच्छा।
5. राकेश शर्मा को हीरो ऑफ़ सोवियत संघ के नाम से जाना जाने लगा –
अंतरिक्ष से वापिस आने के बाद शर्मा ने भारत के इतिहास में एक और सुनहरा पन्ना जोड़ दिया था। उनके कार्यो को देखते हुए रशियन सरकार ने उन्हें हीरो ऑफ़ सोवियत संघ की उपाधि से सम्मानित किया था।
6. 2014 में 65 साल की आयु में राकेश शर्मा को अंतरिक्ष यात्रा करने का एक और मौका चाहिए था –
65 की उम्र होने के बाद भी उनके अंदर का जज्बा अभी मरा नही था, वे एक और बार अंतरिक्ष की यात्रा करना चाहते थे।
7. पाँच साल की उम्र से ही जेट उड़ाने की उनकी इच्छा थी –
शर्मा बचपन से ही जेट उड़ान चाहते थे और युवा होने के बाद उनका यह सपना पूरा भी हुआ।
राकेश शर्मा बचपन से ही जेट उड़ान चाहते थे और युवा होने के बाद उनका यह सपना पूरा भी हुआ। एक वायूसेना के पायलट के तौर पर अपनी नौकरी करते हुए राकेश शर्मा ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उनका सफर भारतीय वायूसेना से अंतरिक्ष तक पहुंच जाएगा। अपने सफर को याद करते हुए शर्मा ने एक बार कहा था कि मैंने बचपन से पायलट बनने का सपना देखा था, जब मैं पायलट बन गया तो सोचा सपना पूरा हो गया।
उनके अथक प्रयासों और अटूट महेनत के बल पर ही उन्होंने 8 दीनो का अंतरिक्ष सफ़र तय किया था और पूरी दुनिया को बता दिया था की यदि दिल से किसी सपने को पूरा करने की ठाने तो कुछ भी असंभव नही।
भारत के लिए राकेश शर्मा किसी कोहिनूर से कम नही थे, भारतवासी उनके अतुल्य योगदान को हमेशा याद रखेंगे।


सुनीता विलियम की जीवनी 


सुनीता विलियम्स जिन्होनें अंतिरक्ष की यात्रा कर न सिर्फ भारत को गौरन्वित किया है बल्कि उन्होनें कई लड़कियों के लिए मिसाल भी कायम की है। उन्होनें अपनी सच्ची लगन और कड़ी मेहनत के बल पर आज इस मुकाम को हासिल किया और पूरी दुनिया में अपनी एक पहचान बनाई है।
सुनीता विलियम को यहां तक पहुंचने में अपनी जिंदगी में कई उतार-चढ़ाव का भी सामना करना पड़ा लेकिन वे हिम्मत से आगे बढ़ती गईं और उन्होनें अपना जमीन, आसमान, समुद्र तक जाने के सपने को पूरा किया। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के माध्यम से उन्होनें अंतरिक्ष की यात्रा की। इसके साथ ही वे ऐसी पहली महिला हैं जिन्होनें अंतरिक्ष में 7 बार यात्रा की है।
यही नहीं वे अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन अभियान दल 14 और 15 की सदस्य भी रह चुकी हैं। 2012 में, देश की बेटी सुनीता विलयम्स ने अभियान दल 32 में फ्लाइट इंजिनियर बनकर और अभियान दल 33 में कमांडर बनकर सेवा भी की थी।
सुनीता विलियम्स की व्यक्तिगत जीवन से लेकर उनकी उपलब्धियों के बारे में नीचे लिखा गया है।
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पूरा नाम (Name)सुनीता माइकल जे. विलियम (Sunita Williams)
जन्म (Birthday)19 सितम्बर 1965, युक्लिड, ओहियो राज्य
पिता (Father Name)डॉ. दीपक एन. पांड्या
माता (Mother Name)बानी जालोकर पांड्या
विवाहमाइकल जे. विलियम (Sunita Williams Husband)

सुनीता विलियम्स का प्रारंभिक जीवन 

सुनीता विलियम्स का जन्म सुनीता लिन पांड्या विलियम्स के रूप में 19 सितम्बर 1965 को हुआ था। वे अमेरिका के ओहियो राज्य में यूक्लिड नगर (स्थित क्लीवलैंड) में पैदा हुई थीं। नीदरम, मैसाचुसेट्स में पली बढ़ी और वहीं से उन्होनें अपनी स्कूली शिक्षा भी प्राप्त की है।

 सुनीता विलियम्स की शिक्षा 

सुनीता विलियम्स ने 1983 में मैसाचुसेट्स से हाई स्कूल  की परीक्षा पास की थी। इसके बाद 1987 में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की नौसैनिक अकादमी से फिजिकल साइन्स में बीएस की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। इसके बाद उन्होनें 1995 में फ़्लोरिडा इंस्टिट्यूट ऑफ़ टैक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग मैनेजमेंट में मास्टर ऑफ साइंस की (एम.एस.) की डिग्री हासिल की है।

सुनीता विलियम्स का परिवार 

सुनीता के पिता दीपक एन. पांड्या डॉक्टर होने के साथ-साथ एक जाने-माने तंत्रिका विज्ञानी हैं, जो कि भारत के गुजरात राज्य से तालोक्कात रखते हैं। उनकी मां का नाम बॉनी जालोकर पांड्या है जो कि स्लोवेनिया की हैं। उनका एक बड़ा भाई और एक बड़ी बहन भी है जिनका नाम जय थॉमस पांड्या और डायना एन, पांड्या है।
आपको बता दें कि 1958 में जब वे एक साल से भी कम उम्र की थी तभी उनके पिता अहमदाबाद से अमेरिका के बोस्टन में आकर बस गए थे। हालांकि बच्चे अपने दादा-दादी, ढेर सारे चाचा-चाची और चचेरे भाई-बहनों को छो़ड़ कर ज्यादा खुश नहीं थे, लेकिन अपनी नौकरी के चलते उनके पिता को अमेरिका में शिफ्ट होना पड़ा था।  
अतंरिक्ष की सैर करने वाली भारतीय मूल की दूसरी महिला सुनीता विलियम्स को अपने माता-पिता से काफी प्रेरणा मिली है। आपको बता दें कि सुनीता के पिता बेहद सरल स्वभाव के हैं और साधारण जीवन जीने में यकीन रखते हैं जो कि सुनीता को काफी प्रभावित करते हैं।
वहीं उनकी मां बॉनी जालोकर पांड्या अपने परिवार को प्यार की डोर में बांधे रखती हैं और रिश्तों की मिठास पर जोर देती हैं साथ ही उनमें प्रकृति की मूल्यों की अच्छी परख भी है जो सुनीता को अपनी मां से विरासत में मिली है। इसके साथ ही सुनीता विलियम्स भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को अपना रोल मॉडल मानती हैं। और उनके विचारों को फॉलो करती हैं।
अंतरिक्ष में भगवत गीता” साथ ले गईं थी सुनीता विलियम्स 
सुनीता विलियम भगवान के प्रति भी खासी आस्था रखने वालों में से एक हैं वे हिन्दुओं के सर्वोच्च भगवान भगवान गणेश जी की आराधना में यकीन रखती हैं। साथ ही ये भी कहा जाता है कि वे अपनी अंतरिक्ष यात्रा के दौरान हिन्दुओं का धार्मिक ग्रन्थ भगवद् गीता भी ले गईं थी जिससे वे खाली समय में पढ़ना पसंद करती हैं। और भगवत गीता के उपदेशों को अपनी असल जिंदगी में अपनाना चाहती हैं जिससे भगवान का आशीर्वाद उन पर हमेशा बना रहे। इसके साथ ही सुनीता विलियम्स सोसाइटी ऑफ़ एक्सपेरिमेंटल टेस्ट पायलट की सदस्य भी रही हैं।

सुनीता विलियम्स की शादी 

आपको बता दें कि जब वे 1995 में Florida Institute of Technology से M.Sc. Engineering Mgmt. की शिक्षा हासिल कर रही थी तभी उनकी मुलाकात माइकल जे. विलियम्स से हुई। वे दोनों पहले दोस्त बने और उनकी ये दोस्ती प्यार में बदल गई जिसके बाद दोनों ने एक-दूसरे से शादी करने का फैसला लिया इस तरह दोनो की शादी हो गई।
आपको बता दें कि माइकल जे. विलियम एक नौसेना पोत चालक, हेलीकाप्टर पायलट, परिक्षण पायलट, पेशेवर नौसैनिक और गोताखोर भी है।

1987 में नौसेना से जुड़ीं सुनीता विलियम्स

भारतीय मूल की अमेरिकी नौसेना की कैप्टन सुनीता बाकी लड़िकयों से अलग थी। उनका बचपन से सपना कुछ अलग करने का था। वह जमीन आसमान समुद्र हर जगह जाना चाहती थी।
शायद इसीलिए मई 1987 में अमरीकी नेवल अकेडमी के माध्यम से वे नौसेना से जुड़ी और बाद वह हेलीकॉप्टर पायलट बन गई। 6 महीने की अस्‍थायी नियुक्ति (नेवल तटवर्ती कमांड में) के बाद उन्‍हें ‘बेसिक डाइविंग ऑफिसर’ के तौर पर नियुक्ति किया गया। उसके बाद उन्हें नेवल एयर ट्रेनिंग कमांड में रखा गया और जुलाई 1989 में उन्‍हें नेवल एवियेटर का पद दिया गया।
इसके बाद में उनकी नियुक्ति  ‘हेलीकॉप्‍टर काम्‍बैट सपोर्ट स्‍क्‍वाड्रन’ में की गयी। सुनीता विलियम ने अपनी प्रारंभिक ट्रेनिंग की शुरुआत हेलीकॉप्टर कॉम्बैट सपोर्ट स्क्वाड्रन 3 (एचसी -3) में H -46 सागर – नाइट से की थी।
जिसके बाद सुनीता विलियम को नॉरफ़ॉक, वर्जीनिया में हेलीकॉप्टर कंबाट सपोर्ट स्क्वाड्रन 8 (एचसी -8) की जिम्मेदारी सौंपी दी गई थी। आपको बता दें कि इस दौरान सुनीता विलियम को  कई जगह पोस्‍ट किया गया। भूमध्यसागर, रेड सी और पर्शियन गल्फ में उन्होंने ‘ऑपरेशन डेजर्ट शील्ड’ और ‘ऑपरेशन प्रोवाइड कम्फर्ट’ के दौरान काम किया।
सितम्बर 1992 में उन्हें H-46 टुकड़ी का-ऑफिसर-इन-चार्ज बनाकर मिआमि (फ्लोरिडा) भेजा गया। आपको बता दें कि इस टुकड़ी को ‘हरिकेन एंड्रू’ से सबंधित रहते काम के लिए भेजा गया था। साल 1993 के जनवरी महीने में सुनीता ने ‘यू.एस. नेवल टेस्ट पायलट स्कूल’ में अपने अभ्यास की शुरुआत की और दिसम्बर में  उन्होंने ये कोर्स पूरा कर लिया। दिसम्बर 1995 में उन्हें ‘यू.एस. नेवल टेस्ट पायलट स्कूल’ में ‘रोटरी विंग डिपार्टमेंट’ में प्रशिक्षक और स्कूल के सुरक्षा अधिकारी के तौर पर भेजा गया।
वहां उन्होंने यूएच-60, ओएच-6 और ओएच-58 जैसे हेलिकॉप्टर्स में उड़ान भरी। इसके बाद उन्हें यूएसएस सैपान पर वायुयान संचालक और असिस्टेंट एयर बॉस के तौर पर भी भेजा गया। इस दौरान सुनीता ने 30 अलग-अलग विमानों से 3,000 घंटे तक उड़ान भरकर लोगों को हैरत में भी डाल दिया था। 

सुनीता विलियम्स का नासा कैरियर 

साल 1998 में सुनीता का चयन NASA के लिए हुआ था तब वे यूएसएस सैपान पर ही कार्यरत थीं। उनकी एस्ट्रोनॉट कैंडिडेट ट्रेनिंग ‘जॉनसन स्पेस सेण्टर में अगस्त 1998 से शुरु की गई थी। सुनीता विलियम ने सच्ची लगन और अपने साहस से ये ट्रेनिंग सफलतापूर्वक पूरी की जिसके  बाद उन्हें  9 दिसम्बर 2006 में सुनीता को अंतरिक्षयान ‘डिस्कवरी’ से ‘अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र’ भेजा गया जहां उन्हें एक्सपीडिशन-14 दल में शामिल होना था।
आपको बता दें कि अप्रैल 2007 में रूस के अंतरिक्ष यात्री को बदला गया। जिससे ये एक्सपीडिशन-15 हो गया। एक्सपीडिशन-14 और 15 के दौरान सुनीता विलियम्स ने तीन स्पेस वॉक किए। 6 अप्रैल 2007 को उन्होंने अंतरिक्ष में ही ‘बोस्टन मैराथन’ में भी हिस्सा लिया जिसे उन्होनें महज 4 घंटे 24 मिनट में पूरा किया।
इसी के साथ वे अंतरिक्ष में मैराथन में दौड़ने वाली वे पहली व्यक्ति बन गयीं। और 22 जून 2007 को वे पृथ्वी पर वापस आ गयीं।
साल 2012 में सुनीता एक्सपीडिशन 32 और 33 से जुड़ीं। उन्हें 15 जुलाई 2012 को बैकोनुर कोस्मोड्रोम से अंतरिक्ष में भेजा गया। उनका अंतरिक्ष यान सोयुज़ ‘अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र’ से जुड़ गया। वे 17 सितम्बर 2012 में एक्सपीडिशन 33 की कमांडर बनायी गयीं।
ऐसा करने वाली वे सिर्फ दूसरी महिला हैं। सितम्बर 2012 में ही वे अंतरिक्ष में त्रैथलों करने वाला पहला व्यक्ति बनीं। 19 नवम्बर को सुनीता विलियम्स धरती पर वापस लौट आयीं।
आपको बतादें कि जब सुनीता विलियम्स अपनी ट्रेनिंग कर रही थी तब उन्हें कई तरह के तकनीकी जानकारी समेत तमाम वैज्ञानिक और तकनीकी तंत्रों की ब्रीफिंग, स्‍पेश शटल और अन्‍तर्राष्‍ट्रीय अंतरिक्ष स्‍टेशन की जानकारी भी दी गई।
इस दौरान सुनीता को मनोवैज्ञानिक ट्रनिंग और टी-38 वायुयान के द्वारा प्रशिश्रण दिया गया। इसके अलावा सुनीता की पानी के अंदर और एकांतवास परिस्थितियों में भी ट्रेनिंग हुई। अपनी ट्रेनिंग के दौरान सुनीता विलियम्‍स ने रूसी अंतरिक्ष संस्‍था में भी काम किया और इस प्रशिक्षण में उन्‍हें अंतर्राष्‍ट्रीय अंतरिक्ष स्‍टेशन के रूसी हिस्से की जानकारी दी भी गयी।
यही नहीं अंतरिक्ष स्‍टेशन के रोबोटिक तंत्र के ऊपर भी विलियम्‍स को प्रशिक्षित किया गया। उनके ट्रेनिंग की खास बात ये रही है कि वे मई 2002 में पानी के अंदर एक्‍वैरियस हैबिटेट में 9 दिन तक रहीं।

सुनीता विलियम्‍स की अं‍तरिक्ष उड़ानें 

भारतीय मूल की महिला अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स, अपने सपने को पंख लगाने के लिए दो बार अंतरिक्ष की यात्रा कर चुकी है इसी के साथ इस भारतीय मूल की महिला ने पूरी दुनिया में अपना कीर्तिमान स्थापित किया है। आपको बता दें कि अंतरिक्ष में अपना परचम लहराने वाली सुनीता विलियम्स अपनी दोनो अंतिरक्ष यात्रा के दौरान अंतर्राष्‍ट्रीय अंतरिक्ष स्‍टेशन ‘अल्‍फा’ से गईं हैं।
दरअसल स्‍टेशन ‘अल्‍फा’ 16 देशों की संयुक्‍त परियोजना है। स्टेशन अल्फा की खास बात ये है कि इसमें कई तरह की प्रयोगशालाएं, आवासीय सुविधाएं, रो‍बोटिक भुजा और उड़नशील प्‍लेटफार्म के साथ जुड़ने वाले नोड लगे हुए हैं। ये स्‍टेशन करीब एक फुटबाल मैदान क्षेत्र में भी फैला हुआ है।
सुनीता विलयम्स की पहली अंतरिक्ष उड़ान 
 सुनीता विलियम्स का बचपन से ही अंतरिक्ष में उड़ान भरने का सपना 9 दिसंबर 2006 को पूरा हुआ। जब उन्होनें अपनी पहली अंतरिक्ष  यात्रा की।  आपको बता दें कि कि उनकी ये पहली अंतरिक्ष उड़ान स्पेस शटल डिस्कवरी के माध्यम से शुरु हुई। अपनी पहली अंतरिक्ष यात्रा के दौरान भारतीय मूल की सुनीता विलियम्‍स ने अंतरिक्ष में कुल 321 दिन 17 घन्‍टे और 15 मिनट का समय बिताया।  
सुनीता विलियम अंतर्राष्‍ट्रीय अंतरिक्ष स्‍टेशन के स्थायी अंतरिक्ष यात्री दल की वे फ्लाइट इंजीनियर थी बाद में वे  स्‍थायी अंतरिक्ष यात्री दल-15 की भी फ्लाइट इंजीनियर बनीं। इसके साथ ही वे अंतर्राष्‍ट्रीय अंतरिक्ष स्‍टेशन की कमांडर बनने वाली दुनिया की दूसरी महिला भी हैं।  वहीं आपको बता दें कि अपने दूसरी अंतरिक्ष उड़ान के दौरान सुनीता विलियम्‍स ने तीन स्‍पेस वॉक कीं हैं।

क्या है स्‍पेस वॉक ?

अंतरिक्ष में अंतरिक्षयान (जिसके अंदर का पर्यावरण मानव के लिए पृथ्‍वी जैसा होता है) से बाहर निकलकर मुक्‍त अंतरिक्ष (जहां का पर्यावरण मानव के लिए बेहद खतरनाक होता है, वहां निर्वात होता है, विकिरणों से भरा होता है और उल्‍काओं का खतरा होता है) में आकर कई तरह के रिपेयर असेम्‍बली और डिप्‍लायमेंट के कामों को करने को स्‍पेसवॉक कहते हैं।
स्‍पेस वॉक पर जाने के लिए अंतरिक्ष यात्री एक खास तरह का सूट पहनते हैं, इस सूट में अंतरिक्ष उड़ान भरने वाले शख्स के लिए उनका जीवन रक्षा तंत्र और अन्‍य सुविधाएं भी लगी रहती हैं। अपने अंतरिक्ष प्रवास के दौरान सुनीता विलियम्‍स ने अंतरिक्ष स्‍टेशन के अंदर कई परीक्षण भी किए। सुनीता विलयम्स फिट रहने के लिए अंतरिक्ष में  ट्रेडमिल में रोजाना व्यायाम भी करती थीं।
सुनीता ने अंतरिक्ष से बोस्‍टन मैराथन दौड़ में लिया हिस्सा
अपनी अंतरिक्ष उड़ान के दौरान 16 अप्रैल 2007 को विलियम्‍स ने अंतरिक्ष से बोस्‍टन मैराथन दौड़ में हिस्‍सा लिया। और उन्‍होंने महज 4 घंटे 24 मिनट में इसके पूरा ‍किया। आपको बता दें इसी मैराथन दौड़ में सुनीता की बहन डियना ने भी हिस्सा  लिया था। अपनी पहली अंतरिक्ष उड़ान के सभी काम पूरा करने के बाद वे 22 जून 2007 को स्‍पेस शटल अटलांटिस के माध्यम से धरती पर वापस आ गयीं थी।
सुनीता विलियम्‍स की दूसरी अंतरिक्ष उड़ान
21 जुलाई साल 2011 को अमरिकी स्‍पेस शटल से रिटायर हो गईं थी। वहीं सुनीता की दूसरी अंतरिक्ष उड़ान 15 जुलाई, 2012 को रूस के बेकानूर कास्‍मोड्रोस से रूसी अंतरिक्ष ‘सोयुज टीएमए-05’ से शुरु हुई। इस मिशन में सुनीता अंतरिक्ष स्‍टेशन के स्‍थायी दल 32/33 के सदस्‍य के रूप में गयीं। 17 जुलाई साल 2012 को सायुज अंतरिक्षयान अंतरिक्ष स्‍टेशन ‘अल्‍फा’ से जुड़ गया।
सुनीता विलियम्‍स को 17 सितंबर 2012 को अंतर्राष्‍ट्रीय अंतरिक्ष स्‍टेशन की दूसरी महिला कमांडर बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। आपको बता दें कि इस स्‍टेशन पर पहुंचने वाली पहली महिला कमांडर पेग्‍गी हिट्सल थीं। आपको बता दें कि अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्‍स के साथ उनकी अंतरिक्ष उड़ान में जापानी अंतरिक्ष संस्‍था के अंतरिक्ष यात्री आकी होशिंदे और रूसी कास्‍मोनट यूरी मैलेनचेंको भी गए थे। वहीं अपनी दूसरी अंतरिक्ष यात्रा के दौरान विलियम्‍स ने 3 स्‍पेस वॉक की था। सुनीता विलियम्स कुल 7 स्पेस वॉक कर चुकी हैं। दूसरे अंतरिक्ष यात्रा के दौरान सुनीता विलियम्स अपने सारे प्रशिक्षण काम पूरे कर 19 नवंबर, 2012 को धरती पर वापस लौट आईं।
सुनीता विलियम्स में अंतरिक्ष में फहराया भारतीय तिरंगा
सुनीता विलियम्‍स, 15 अगस्‍त, 2012 को भारत के 66 वें स्‍वतंत्रता दिवस के मौके पर अंतरिक्ष पर मौजूद थी तभी उन्होनें अंतरिक्ष में आजादी का जश्न बनाया और अंतरिक्ष में भारतीय तिरंगा लहराया।
इस दौरान सुनीता विलियम्स में अंतरिक्ष से (अल्‍फा स्‍टेशन के अंदर से) एक संदेश भी दिया था जिसमें उन्होनें कहा था कि – ’15 अगस्‍त के लिए मैं भारत को स्‍वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं भेजती हूं। भारत एक धर्मनिरपेक्ष, हिन्दू और उपलब्धियों से भरा राष्ट्र है इस मौके पर सुनीता ने भारत का हिस्सा होने पर गर्व होने  की बात भी कही थी।

सुनीता विलियम्स द्धारा बनाए गए विश्व रिकॉर्ड 

सुनीता विलियम्स ने अपनी प्रतिभा, साहस और मेहनत के बल पर यह साबित कर दिखाया है कि महिला, पुरुषों से कम नहीं है यही नहीं उन्होनें कई विश्व रिकॉर्ड भी बनाए हैं, सुनीता विलियम्स के द्धारा बनाए विश्व रिकॉर्ड पर एक नजर –
  • सुनीता विलियम्स अपनी पहली अंतरिक्ष यात्रा के दौरान 195 दिन अंतरिक्ष में रहीं। इस लंबे प्रवास के द्धारा उन्होनें विश्व में रिकॉर्ड बनाया। एक उड़ान में इतना लंबा प्रवास करने वाली वे दुनिया की पहली महिला हैं।
  • भारतीय मूल की अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स अंतरिक्ष में सबसे ज्यादा स्पेसवॉक करने वाली पहली महिला अंतरिक्ष यात्री हैं। आपको बता दें कि उनके द्धारा किए गए 7 स्पेसवॉक की कुल अवधि 50 घंटा 40 मिनट की थी।
  • अंतराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की कमांटर बनने वाली वे दुनिया की दूसरी महिला हैं।
सुनीता विलियम्स की भारत यात्रासरदार बल्लभ भाई पटेल विश्व प्रतिमा अवार्ड से सम्मानित:
भारतीय मूल की अंतरिक्ष यात्री अपनी पहली अंतरिक्ष की उड़ान भरने के बाद सितंबर 2007 में भारत दौरे पर आईं और वे अहमदाबाद में स्थित महात्‍मा गांधी के साबरमती आश्रम और अपने पैतृक गांव (झुलासन, मेहसाणा के पास) गईं।  
इस दौरान विश्‍व गुजराती समाज ने उन्‍हें ‘सरदार वल्‍लभ भाई पटेल विश्‍व प्रतिमा अवार्ड‘ से भी नवाजा गया। आपको बता दें कि ये सम्मान पाने वाली भारतीय मूल की पहली महिला हैं। अपनी भारत यात्रा के दौरान सुनीता विलियम्स ने 04 अक्‍टूबर, 2007 को दिल्‍ली स्थित अमरीकी दूतावात के स्‍कूल में लेक्चर भी दिया था उसके बाद वे पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से भी मिलीं थी और अपनी अंतरिक्ष यात्रा के अनुभवों को साझा किया था।
सुनीता विलियम्‍स ने अभी तक कुल 30 अलग-अलग अंतरिक्ष यानों में 2770 उड़ानें भी भरी हैं।
सुनीता विलियम्स को पुरस्कार और सम्मान 
 सुनीता विलियम्स को उनकी उपलब्धियों के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिलें हैं। सुनीता विलियम्स नौसेना पोत चालक, हेलीकॉप्टर पायलट, पेशेवर नौसैनिक, पशु-प्रेमी, मैराथन धाविका और अंतरिक्ष यात्री एवं विश्व-कीर्तिमान धारक हैं। सुनीता विलियम्स को निम्नलिखित अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है।
  1. नेवी कमेंडेशन मेडल अवॉर्ड।
  2. नेवी एंड मैरीन कॉर्प एचीवमेंट मेडल।
  3. ह्यूमैनिटेरियन सर्विस मेडल।
  4. मैडल फॉर मेरिट इन स्पेस एक्स्पलोरेशन।
  5. सन 2008 में भारत सरकार ने पद्म भूषण से सम्मानित किया।
  6. सन 2013 में गुजरात विश्वविद्यालय ने डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की।
  7. सन 2013 में स्लोवेनिया द्वारा ‘गोल्डन आर्डर फॉर मेरिट्स’ प्रदान किया गया।
यह लेख उसी अप्रतिम महिला की असाधारण इच्छाशक्ति, दृढ़ता, उत्साह तथा आत्मविश्वास की कहानी है। उनके इन गुणों ने उन्हें एक पशु चिकित्सक बनने की महत्वाकांक्षा रखने वीली छोटी-सी बालिका के एक अंतरिक्ष-विज्ञानी, एक आदर्श प्रतिमान बना दिया। अंतरिक्ष में अपने छह माह के प्रवास के दौरान वे दुनियाभर के लाखों लोगों के आकर्षण का केंद्र बनी रहीं।
सुनीता समुद्रों में तैराकी कर चुकी हैं महासागरों में गोताखोरी कर चुकी हैं, युद्ध और मानव-कल्याण के कार्य के लिए उड़ानें भर चुकी हैं, अंतरिक्ष तक पहुँच चुकी हैं और अंतरिक्ष से अब वापस धरती पर आ चुकी हैं और एक जीवन्त प्रेरणा का उदाहरण बन गई हैं।