जन हित में ज़ारी
सर्दी बढ़ने लगी हैं । सभी मित्र अपना ध्यान स्वयं रखें । जिस प्रकार ठण्ड हमारे शरीर में हाथ-पाँव, नाक-कान आदि के रास्ते आसानी से प्रवेश करती है, उसी प्रकार इच्छाएँ भी हमारे जीवन में आवश्यकता के दरवाज़े से घुसपैठ करती है । हम अपने बहुमूल्य ज़ीवन को कभी न पूरी हो सकने वाली इच्छाओं को पूरा करने में नष्ट कर देते हैं । अपनी इच्छाओं को ही आवश्यकतायें बना लेते हैं । कही दूसरों का हक छीनते है, कहीं भ्रष्टाचार करते हैं, तो कहीं दुराचार करते हैं । आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकता है, लेकिन इच्छाओं को नहीं ।
जैसे अधिक ठण्ड हमारे शरीर को नुक्सान पहुँचा सकती है, वैसे ही अधिक इच्छाएँ भी हमारी आत्मा को दुष्प्रभावित करती हैं । ठण्ड और चाहतें हद में हो, तो बेहतर है। अधिक ठण्ड हमारे शारीरिक स्वास्थ्य और अधिक चाहतें हमारे आत्मिक स्वास्थ्य को बिगाड़ कर रख देती हैं । अतः अत्यधिक ठण्ड और चाहत से खबरदार रहें । ज़ीवन ज़ीने का भरपूर आनंद लें; चाहत का भी आनंद लें, सर्दी का भी आनंद लें, मगर सावधानी से ।
जन्म लिया है तो सिर्फ साँसे मत लीजिये,अपने देश के लिए भी कुछ करिए वर्ना अपने लिए जीने का शौक रखने वालो की राख से तो शमशान भी भरा पड़ा है..."जय हिन्द
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Very nice....... Poem...... I like it very much
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