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Saturday, 15 September 2018


सबीर भाटिया की जीवनी


जन्म: 30 दिसम्बर 1968, चंडीगढ़, पंजाब
कार्यक्षेत्र: उपक्रमी, इ-मेल सेवा हॉटमेल (अब आउटलुक.कॉम) के सह-संस्थापक, एंजल निवेशक
शिक्षा: सेंट जोजफ बॉयज हाई स्कूल, बेंग्लुरू, बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी,  केलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी


सबीर भाटिया एक भारतीय उपक्रमी और इ-मेल सेवा हॉटमेल (जो अब आउटलुक.कॉम है) के सह-संस्थापक हैं। सबीर द्वारा स्थापित यह इ-मेल सेवा आज विश्व के लगभग 106 भाषाओं में है और फरवरी 2013 तक लगभग 42 करोड़ लोग इसका उपयोग कर रहे थे। हॉटमेल की स्थापना सन 1996 में सबीर भाटिया और अमरीका के जैक स्मिथ ने तीन लाख डॉलर की पूंजी से की थी और सन 1997 में इसका अधिग्रहण दुनिया के तत्कालीन सबसे बड़ी आई.टी. कम्पनी माइक्रोसॉफ्ट ने लगभग 2500 करोड़ रूपयों में किया। इस अधिग्रहण के बाद सबीर भाटिया रातोंरात सिलिकॉन वैली के सुपरस्टार बन गए और पूरे विश्व पर छा गए। हॉटमेल के माइक्रोसॉफ्ट द्वारा अधिग्रहण के बाद सबीर ने सन 1999 में एक इ-कॉमर्स कंपनी आरजू.कॉम प्रारंभ किया। बाद में उनकी कंपनी सबसेबोलो ने मुफ्त में मैसेज भेजने वाली कंपनी jaxtr का अधिग्रहण किया। हॉट-मेल के बाद सबीर भाटिया के कई उपक्रम प्रारंभ किये पर उनमें से किसी को भी हॉट-मेल जैसी सफलता नहीं मिल सकी।
प्रारंभिक जीवन
सबीर भाटिया का जन्म 30 दिसम्बर 1968 को पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ में एक पंजाबी परिवार में हुआ था। उनके पिता बलदेव भाटिया भारतीय सेना में एक अधिकारी थे जो बाद में रक्षा मंत्रालय में शामिल हो गए और उनकी माता दमन भाटिया सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया में वरिष्ठ अधिकारी थीं। सबीर की प्रारंभीक शिक्षा बेंगलोर के सेंट जोसफ बॉयज़ हाई स्कूल से हुई और इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए उन्होंने सन 1986 में पिलानी के बिड़ला प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान (BITS) में दाखिला लिया पर दो वर्ष के बाद ही एक कार्यक्रम के तहत अमेरिका के प्रसिद्ध कैलिफोर्निया इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (Caltech) में तबादला ले लिया। कैलटेक से स्नातक होने के बाद सन 1989 में उन्होंने इलेक्ट्रिकल इंजीनीयरिंग में एमएस करने के लिए स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। यहाँ उन्होंने ‘अल्ट्रा लो पावर वीएलएसआई डिजाइन’ पर कार्य किया।
स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में रहते हुए सबीर स्टीव जॉब्स और स्कॉट मैकनेली जैसे उद्यमियों से प्रेरित हुए और स्नातकोत्तर के बाद पीएच.डी. करने के बजाय, एप्पल में शामिल होने का फैसला किया।
सन 1995 में सबीर ने जावासॉफ्ट नाम की एक इन्टरनेट कंपनी प्रारंभ की। यह कंपनी लोगों की व्यक्तिगत इनफॉर्मेशन इंटरनेट पर स्टोर करती थी और इन सूचनाओं को इन्टरनेट के माध्यम से किसी भी कंप्यूटर पर देखा जा सकता था। इसी दौरान सबीर जिस कंपनी में कार्य कर रहे थे उसने कंपनी के इंटर्नल नेटवर्क में फायर वॉल लगा दिया जिसके कारण ऑफिस कार्य करते हुए लोग अपना पर्सनल मेल चैक नहीं कर सकते थे। इसी क्षण सबीर के मन में एक विचार आया कि क्यों न ई-मेल को भी इन्टरनेट पर डाल दिया जाए, ताकि किसी भी स्थान से और किसी भी कंप्यूटर पर आप अपनी मेल देख सकें। वे अपने एक सहयोगी जैक स्मिथ के साथ मिलकर इस पर काम करने लगे। दोनों ने पहले वेब आधारित ई-मेल सिस्टम की क्षमता का परिक्षण किया और सिद्ध किया और उसके बाद हॉटमेल बनाने का फैसला किया। ज्यादा से ज्यादा लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए, यह  ई-मेल सेवा बिलकुल मुफ़्त रखी गयी और वेबसाइट पर विज्ञापन के माध्यम से राजस्व प्राप्त किया जाने लगा। इस प्रकार हॉट मेल का जन्म हुआ और बाकी इतिहास है। इससे पहले दुनिया में इस तरह की कोई भी ई-मेल प्रणाली नहीं थी। 16 फरवरी 1996 को हॉट मेल का जन्म हुआ और 30 दिसंबर 1997 को सबीर भाटिया ने अपनी कंपनी माइक्रोसॉफ्ट को बेच दी।
सेवा प्रारंभ करने के छह महीनों के अन्दर ही, हॉटमेल ने दस लाख से अधिक लोगों को आकर्षित किया और जैसे ही यूजर्स की संख्या मे वृद्धि होने लगी, मशहूर आई.टी कंपनी माइक्रोसॉफ्ट का ध्यान इस पर गया और 30 दिसम्बर 1997 को हॉटमेल को 400 मिलियन अमेरिकी डॉलर में माइक्रोसॉफ्ट को बेच दिया गया।
सबीर भाटिया के अन्य उपक्रम
माइक्रोसॉफ्ट द्वारा हॉटमेल के अधिग्रहण के बाद सबीर ने लगभग एक साल तक माइक्रोसॉफ्ट में कार्य किया और अप्रैल 1999 में उन्होंने माइक्रोसॉफ्ट छोड़कर एक इ-कॉमर्स कंपनी आरजू.कॉम प्रारंभ की पर यह कंपनी चल नहीं पायी और इसे बंद करना पड़ा। बाद में सन 2010 में इसे एक ट्रैवेल पोर्टल के रूप में दोबारा शुरू किया गया।
इसके पश्चात उभरते हुए ब्लॉगॉसफियर को भुनाने के उद्देश्य से उन्होंने गएवरीवेयर (BlogEverywhere) की शुरूआत की (सह-संस्थापक शिराज कांगा और विराफ जैक के साथ) पर यह भी कुछ ख़ास नहीं चल पायी।
सन 2006 में उन्होंने एक नेटवर्क सुरक्षा विक्रेता और एसएसएल वीपीएन-प्लस के निर्माता, निओऐक्सेल में निवेश कर एंजल निवेशक बन गए।
सन 2008 में सबीर भाटिया ने सबसेबोलो.कॉम बाज़ार में उतारा जो एक मुफ्त वेब-आधारित टेलीकन्फरेनसिंग प्रणाली उपलब्ध कराती थी। जून 2009 में सबीर भाटिया की कंपनी सबसेबोलो ने जैक्सटर (एक इंटरनेट टेलीफोन सेवा स्टार्टअप) का अधिग्रहण कर लिया। उनके जैक्सटर को भी आशातीत सफलता नहीं मिल पायी और सबसेबोलो भी नहीं चल पाया।
व्यक्तिगत जीवन
सन 2008 में, उन्होंने भारत के प्रसिद्द उद्योग घराने बैद्यनाथ ग्रुप की उत्तराधिकारिणी, तान्या शर्मा के साथ विवाह कर लिया। विवाह से पहले वे एक दूसरे को आठ साल से जानते थे। उनका विवाह मलेशिया के लंग्कावी में एक निजी समारोह में संपन्न हुआ।
पुरस्कार
  • उद्यम पूंजी फर्म ड्रेपर फिशर जुरवेत्सन ने उन्हें “वर्ष के उद्यमी” (1998) द्वारा सम्मानित किया
  • उप्सिदे पत्रिका के न्यू इकॉनमी के शीर्ष ट्रेंडसेटर की सूची में “एलिट 100,” के लिए नामांकित किया गया
  • उनके एमआईटी का TR100 पुरस्कार प्रदान किया गया
  • टाइम पत्रिका द्वारा नामांकित “पीपल टू वॉच” में से एक (2002)
टाइम लाइन (जीवन घटनाक्रम)
1968: 30 दिसम्बर को चंडीगढ़ में जन्म हुआ
1986: पिलानी के बिड़ला प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान (BITS) में दाखिला लिया
1996: जुलाई माह में हॉट-मेल की सेवा प्रारंभ हो गई
1997: माइक्रोसॉफ्ट ने सबीर भाटिया के हॉटमेल का 400 मिलियन अमेरिकी डॉलर में अधिग्रहण कर लिया
1999: इ-कॉमर्स कंपनी आरजू.कॉम प्रारंभ की
2008: सबीर ने सबसेबोलो.कॉम लांच किया
2008: तान्या शर्मा के साथ विवाह कर लिया
2009: जून 2009 में सबीर भाटिया की कंपनी सबसेबोलो ने जैक्सटर (एक इंटरनेट टेलीफोन सेवा स्टार्टअप) का अधिग्रहण कर लिया


सत्य नडेला




जन्म: 19 अगस्त 1967, हैदराबाद, आंध्र प्रदेश
कार्यक्षेत्र: वरिष्ठ आई.टी.एग्जीक्यूटिव, माइक्रोसॉफ्ट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सी.इ.ओ.)
नागरिकता: अमेरिकन
शिक्षा:  BS, MSCS, MBA
शिक्षण संस्थान: मनिपाल इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी, विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय (मिल्वौकी), बूथ स्कूल ऑफ़ मैनेजमेंट (शिकागो विश्वविद्यालय)
भारतीय-अमेरिकी सत्य नडेला विश्व की प्रमुख सॉफ्टवेयर कंपनी माइक्रोसॉफ्ट के प्रमुख कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) हैं। 4 फरवरी 2014 में उन्होंने माइक्रोसॉफ्ट के पूर्व सीईओ स्टीव बामर का स्थान लिया। सीईओ बनने से पहले वे माइक्रोसॉफ्ट के क्लाउड और एंटरप्राइज ग्रुप के एग्ज़ीक्युटिव वाइस प्रेजिडेंट थे। भारत में पैदा हुए और पले बढ़े सत्य नडेला वर्तमान में अमेरिकी नागरिक हैं। माइक्रोसॉफ्ट में आने से पहले सत्य नाडेला सुन माइक्रोसिस्टम्स में कार्य कर रहे थे। उन्होंने सन 1992 में माइक्रोसॉफ्ट ज्वाइन किया और कंपनी के लगभग हर एक महत्वपूर्ण डिवीज़न और पद पर कार्य किया।
प्रारंभिक जीवन
सत्य नारायण नाडेला का जन्म 19 अगस्त 1967 में हैदराबाद के एक तेलुगु परिवार में हुआ। उनके पिता बुक्कापुरम नाडेला युगांधर भारतीय प्रशासनिक सेवा में एक अधिकारी थे। सत्य नाडेला ने हैदराबाद स्थित बेगमपेट के हैदराबाद पब्लिक स्कूल से शिक्षा ग्रहण की। स्कूल पूरा करने के बाद उन्होंने मनिपाल इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी (मंगलोर यूनिवर्सिटी से सम्बद्ध) में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए दाखिला लिया। उन्होंने सन 1988 में अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद सत्य नडेला अमेरिका चले गए जहाँ पर उन्होंने विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय (मिल्वौकी) में कंप्यूटर साइंस में एम.एस. करने के लिए दाखिला लिया। सन 1990 में उन्होंने ये डिग्री हासिल कर ली और उसके बाद शिकागो विश्वविद्यालय के बूथ स्कूल ऑफ़ मैनेजमेंट से एम.बी.ए. की पढ़ाई की।
नडेला को बचपन से ही चीजों को बनाने का शौक था और जैसे-जैसे वे बड़े हुए उनको ये पता चल गया कि उनका भविष्य कंप्यूटर साइंस में ही था पर मनिपाल इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी में वो मौका उपलब्ध नहीं था इसलिए उससे मिलता-जुलता विषय चुना जिसने उनके प्रिय विषय को समझने और जानने में मदद की।
करियर
अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद सत्य नाडेला ने सन माइक्रोसिस्टम्स में कंपनी के टेक्नोलॉजी टीम में काम किया। कुछ समय सन माइक्रोसिस्टम्स में कार्य करने के बाद उन्होंने सन 1992 में माइक्रोसॉफ्ट ज्वाइन कर लिया और तब से वे उसी के साथ हैं।
माइक्रोसॉफ्ट में करियर
सत्य नडेला ने सन 1992 में माइक्रोसॉफ्ट ज्वाइन किया और तभी से वे कंपनी के साथ जुड़े हैं। कंपनी के साथ इतने लम्बे वक्त तक जुड़े रहने के दौरान उन्होंने कई योजनाओं पर कार्य किया। माइक्रोसॉफ्ट में उनकी शुरुआत सर्वर ग्रुप से हुई थी। इसके बाद वे सॉफ्टवेयर डिवीज़न, ऑनलाइन सर्विसेज, रिसर्च एंड डेवलपमेंट, एडवरटाइजिंग प्लेटफार्म में कार्य किया और फिर मुखिया बनकर सर्वर डिवीज़न में वापस आ गए।
उन्होंने माइक्रोसॉफ्ट में क्लाउड कंप्यूटिंग का नेतृत्व किया और कंपनी को दुनिया के सबसे बड़े क्लाउड इंफ्रास्ट्रक्चर में से एक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उन्होंने ऑनलाइन सर्विसेज डिवीज़न में बतौर वरिष्ठ उपाध्यक्ष और माइक्रोसॉफ्ट बिज़नस डिवीज़न में बतौर उपाध्यक्ष कार्य किया। बाद में उन्हें कंपनी के 19 अरब अमेरिकी डॉलर ‘सर्विस एंड टूल’ व्यवसाय का अध्यक्ष बना दिया गया। उन्होंने कंपनी के इस डिवीज़न का स्वरुप परिवर्तित कर दिया। माइक्रोसॉफ्ट के डेटाबेस, विंडोज सर्वर और डेवलपर टूल्स को माइक्रोसॉफ्ट अज्योर क्लाउड प्लेटफार्म पर लाने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके नेत्रत्व में इस डिवीज़न का मुनाफा सन 2011 में 16.6 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़कर  सन 2013 में लगभग 20.3 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया।
मुख्य कार्यकारी अधिकारी बनने से पहले माइक्रोसॉफ्ट में अपने करियर के दौरान सत्य नडेला ने इन प्रमुख पदों पर कार्य किया:
  • सर्वर और टूल्स डिवीज़न के अध्यक्ष (फरवरी 2011 – फरवरी 2014)
  • ऑनलाइन सर्विसेज डिवीज़न में बतौर वरिष्ठ उपाध्यक्ष (मार्च 2007 – फरवरी 2011)
  • माइक्रोसॉफ्ट बिज़नस डिवीज़न के उपाध्यक्ष
  • बिज़नस सोल्युसंस एंड सर्च एंड एडवरटाइजिंग प्लेटफार्म के कॉर्पोरेट उपाध्यक्ष
  • क्लाउड और एंटरप्राइज प्रभाग के कार्यकारी उपाध्यक्ष
व्यक्तिगत जीवन
सत्य नडेला ने सन 1992 में अनुपमा से विवाह किया। अनुपमा सत्य के पिता के मित्र की पुत्री हैं। नडेला दंपत्ति के तीन संतान हैं – एक बीटा और दो बेटियां। सत्य अपने परिवार के साथ वाशिंगटन में रहते हैं।
नडेला को काव्य का बहुत शौक है और वे अमरीकी और भारतीय काव्य के उत्सुक पाठक हैं। उन्हें क्रिकेट का भी बहुत शौक है। वे अपने स्कूल क्रिकेट टीम का सदस्य भी थे। उन्होंने इस बात का भी जिक्र किया है कि क्रिकेट के खेल से उन्होंने नेतृत्व और आपसी सहयोग की भावना को सीखा है।
टाइम लाइन (जीवन घटनाक्रम)
1967: 19 अगस्त को हैदराबाद में जन्म हुआ
1988: सत्य नडेला ने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की
1990: विस्कॉन्सिन विश्वविद्यालय (मिल्वौकी) में कंप्यूटर साइंस में एम.एस. किया
1992: माइक्रोसॉफ्ट ज्वाइन किया
1992: अनुपमा के साथ विवाह हुआ
2014: 4 फरवरी को माइक्रोसॉफ्ट का मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सी.इ.ओ.) बनाया गया
एम. विश्वेश्वरैया की जीवनी
जन्म:-15 सितंबर 1860, चिक्काबल्लापुर, कोलार, कर्नाटक

मृत्यु :-

101 की उम्र में 14 अप्रैल 1962 
कार्य/पद: उत्कृष्ट अभियन्ता एवं राजनयिक
विश्‍वसरैया का जन्‍मदिन भारत में इंजीनियर डे के रूप में मनाया जाता है|
भारतरत्न सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या (एम. विश्वेश्वरैया) एक प्रख्यात इंजीनियर और राजनेता थे। उन्होंने आधुनिक भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारत के निर्माण में उनके योगदान को देखते हुए उन्हें वर्ष 1955 में देश के सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ से अलंकृत किया गया था। भारत में उनका जन्मदिन अभियन्ता दिवस के रूप में मनाया जाता है। जनता की सेवा के लिए ब्रिटिश सरकार ने उन्हें ‘नाइट कमांडर ऑफ़ द ब्रिटिश इंडियन एम्पायर’ (KCIE) से सम्मानित किया। वो हैदराबाद शहर के बाढ़ सुरक्षा प्रणाली के मुख्य डिज़ाइनर थे और मुख्य अभियंता के तौर पर मैसोर के कृष्ण सागर बाँध के निर्माण में मुख्या भूमिका निभाई थी।
प्रारंभिक जीवन
मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का जन्म कोलार जिले के चिक्काबल्लापुर में 15 सितंबर1860 को एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम श्रीनिवास शास्त्री तथा माता का नाम वेंकाचम्मा था। उनके पूर्वज आंध्र प्रदेश के मोक्षगुंडम से यहाँ आकर बस गए थे। उनके पिता श्रीनिवास शास्त्री संस्कृत के विद्वान और आयुर्वेदिक चिकित्सक थे। जब बालक विश्वेश्वरैया मात्र 12 साल के थे तभी उनके पिता की मृत्यु हो गयी। उनकी प्रारंभिक शिक्षा उनके जन्मस्थान पर स्थित एक प्राइमरी स्कूल में हुई। तत्पश्चात उन्होंने बैंगलोर के सेंट्रल कॉलेज में दाखिला लिया। धन के अभाव के चलते उन्हें यहाँ ट्यूशन करना पड़ता था। इन सब के बीच उन्होंने वर्ष 1881 में बीए की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया और उसके बाद मैसूर सरकार की मदद से इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए पूना के साइंस कॉलेज में दाखिला लिया। सन 1883 की एलसीई व एफसीई परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करके उन्होंने अपनी योग्यता का परिचय दिया और इसको देखते हुए महाराष्ट्र सरकार ने इन्हें नासिक में सहायक इंजीनियर के पद पर नियुक्त किया।
कैरियर
इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद उन्हें मुंबई के PWD विभाग में नौकरी मिल गयी। उन्होंने डेक्कन में एक जटिल सिंचाई व्यवस्था को कार्यान्वित किया। संसाधनों और उच्च तकनीक के अभाव में भी उन्होंने कई परियोजनाओं को सफल बनाया। इनमें प्रमुख थे कृष्णराजसागर बांध, भद्रावती आयरन एंड स्टील व‌र्क्स, मैसूर संदल ऑयल एंड सोप फैक्टरी, मैसूर विश्वविद्यालय और बैंक ऑफ मैसूर। ये उपलब्धियां एमवी के कठिन प्रयास से ही संभव हो पाई।
मात्र 32 साल के उम्र में सुक्कुर (सिंध) महापालिका के लिए कार्य करते हुए उन्होंने सिंधु नदी से सुक्कुर कस्बे को जल आपूर्ति की जो योजना उन्होंने तैयार किया वो सभी इंजीनियरों को पसंद आया।
अँगरेज़ सरकार ने सिंचाई व्यवस्था को दुरुस्त करने के उपायों को ढूंढने के लिए एक समिति बनाई। उनको इस समिति का सदस्य बनाया गया। इसके लिए उन्होंने एक नए ब्लॉक प्रणाली का आविष्कार किया। इसके अंतर्गत उन्होंने स्टील के दरवाजे बनाए जो कि बांध से पानी के बहाव को रोकने में मदद करता था। उनके इस प्रणाली की बहुत तारीफ़ हुई और आज भी यह प्रणाली पूरे विश्व में प्रयोग में लाई जा रही है।
उन्होंने मूसा व इसा नामक दो नदियों के पानी को बांधने के लिए भी योजना बनायीं थी। इसके बाद उन्हें वर्ष 1909 में मैसूर राज्य का मुख्य अभियन्ता नियुक्त किया गया।
वो मैसूर राज्य में आधारभूत समस्याओं जैसे अशिक्षा, गरीबी, बेरोजगारी, बीमारी आदि को लेकर भी चिंतित थे। इन समस्याओं से निपटने के लिए उन्होंने ने ‘इकॉनोमिक कॉन्फ्रेंस’ के गठन का सुझाव दिया। इसके बाद उन्होंने मैसूर के कृष्ण राजसागर बांध का निर्माण कराया। चूँकि इस समय देश में सीमेंट नहीं बनता था इसलिए इंजीनियरों ने मोर्टार तैयार किया जो सीमेंट से ज्यादा मजबूत था।
मैसूर के दीवान
मैसूर राज्य में उनके योगदान को देखते हुए मैसूर के महाराजा ने उन्हें सन 1912 में राज्य का दीवान यानी मुख्यमंत्री नियुक्त कर दिया। मैसूर के दीवान के रूप में उन्होंने राज्य के शैक्षिक और औद्योगिक विकास के लिए अथक प्रयास किया। उनके प्रयत्न से राज्य में कई नए उद्योग लगे। उनमें से प्रमुख थे चन्दन तेल फैक्टरी, साबुन फैक्टरी, धातु फैक्टरी, क्रोम टेनिंग फैक्टरी। उनके द्वारा प्रारंभ किये गए कई कारखानों में से सबसे महत्वपूर्ण भद्रावती आयरन एंड स्टील वर्क्स है। सर एम विश्वेश्वरैया स्वेच्छा से 1918 में मैसूर के दीवान के रूप में सेवानिवृत्त हो गए।
सेवानिवृत्ति के बाद भी वो सक्रिय रूप से कार्य कर रहे थे। राष्ट्र के लिए उनके अमूल्य योगदान को देखते हुए सन 1955 में भारत सरकार ने उन्हें ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया। जब सर एम विश्वेश्वरैया 100 साल हुए तब भारत सरकार ने उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया।
101 की उम्र में 14 अप्रैल 1962 को विश्वेश्वरैया का निधन हो गया।
सम्मान और पुरस्कार
1904: लगातार 50 साल तक लन्दन इंस्टिट्यूट ऑफ़ सिविल इंजीनियर्स की मानद सदस्यता
1906: उनकी सेवाओं की मान्यता में “केसर-ए-हिंद ‘ की उपाधि
1911: कम्पैनियन ऑफ़ द इंडियन एम्पायर (CIE)
1915: नाइट कमांडर ऑफ़ द आर्डर ऑफ़ थे इंडियन एम्पायर (KCIE )
1921: कलकत्ता विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टर ऑफ़ साइंस से सम्मानित
1931: बॉम्बे विश्वविद्यालय द्वारा LLD
1937: बनारस हिंदू विश्वविद्यालय द्वारा D. Litt से सम्मानित
1943: इंस्टीट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स (भारत) के आजीवन मानद सदस्य निर्वाचित
1944:  इलाहाबाद विश्वविद्यालय द्वारा D.Sc.
1948: मैसूर विश्वविद्यालय ने डॉक्टरेट – LLD से नवाज़ा
1953: आंध्र विश्वविद्यालय द्वारा D.Litt से सम्मानित
1953: इंस्टिट्यूट ऑफ़ टाउन प्लानर्स ( भारत) के मानद फैलोशिप से सम्मानित
1955: ‘भारत रत्न’ से सम्मानित
1958: बंगाल की रॉयल एशियाटिक सोसायटी परिषद द्वारा ‘दुर्गा प्रसाद खेतान मेमोरियल गोल्ड मेडल’
1959: इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस द्वारा फैलोशिप
टाइमलाइन (जीवन घटनाक्रम)
1860: मैसोर राज्य में जन्म हुआ
1881: बीए की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया
1883: एलसीई व एफसीई परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त किया
1884: बॉम्बे राज्य के PWD विभाग में सहायक अभियंता के तौर पर शामिल हुए; नासिक, खानदेश और पूना में कार्य किया
1894: सिंध स्थित सुक्कुर महापालिका को अपनी सेवाएं दीं
1895: सुक्कुर कसबे के लिए जल आपूर्ति योजना तैयार की
1896: सूरत शहर में अधिशाषी अभियंता नियुक्त
1897–99: पूना में सहायक अधीक्षक अभियंता
1898: चाइना और जापान की यात्रा की
1899: पूना में सिंचाई के अधिशाषी अभियंता
1901: बॉम्बे राज्य में सेनेटरी इंजिनियर और सेनेटरी बोर्ड के सदस्य
1901: इंडियन इरीगेशन कमीशन के सामने साक्ष्य रखा
1906: उनकी सेवाओं की मान्यता में “केसर-ए-हिंद ‘ की उपाधि
1907: अधीक्षण अभियंता
1908: मिस्र, कनाडा, अमेरिका और रूस की यात्रा की
1909: हैदराबाद राज्य को बाढ़ के दौरान कंसल्टेंसी दी
1909: ब्रिटिश सेवा से निवृत्त हो गए
1909: मैसोर राज्य के मुख्या अभियंता और सचिव के तौर पर नियुक्त
1911: कम्पैनियन ऑफ़ द इंडियन एम्पायर (CIE)
1913: मैसोर राज्य के दीवान नियुक्त
1915: नाइट कमांडर ऑफ़ द आर्डर ऑफ़ थे इंडियन एम्पायर (KCIE )
1927-1955: टाटा स्टील के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर पर
1955: ‘भारत रत्न’ से सम्मानित
1962: 101 की उम्र में 14 अप्रैल 1962 को विश्वेश्वरैया का निधन हो गया

Friday, 14 September 2018

VISALINI HIGHEST IQ IN THE WORLD

Born May 23, 2000 (age 15) (2000-05-23) Tirunelveli, India Known for  Highest IQ of 225 Youngest CCNA certificate holder.


K. Visalini is an Indian girl who holds the world record for the highest vertified IQ with a recorded IQ of 225. Visalini also holds several other records including the youngest person to receive CCNA certification and youngest person to receive EXIN cloud computing certification. She is just ahead of child genius David Diacouni of Romania. Visalini appears in several international conferences as chief guest and keynote speaker.

Early life


K. Visalini was born in 2000 in Tamil Nadu, Indian city Tirunelveli. Her father was an electrician in a private firm and her mother worked as an announcer with the All India radio. Visalini was born with the congenital oral anomaly ankyloglossia. Her mother (who was then preparing for Tamil Nadu Public Service Commission exams), in order to improve her daughter's speech anomaly, started talking to Visalini and would read aloud the subjects to her.

Achievements



  • Highest IQ of 225 (Sep 2009)
  • Youngest CCNA certificate holder (at the age of 11)
  • Youngest Microsoft Certified Professional (at the age of 11)


  • Youngest Oracle Certification Program certificate holder (at the age of 13)

    Awards

  • Inspire Award by Department of Science and Technology (India).
  • The Pride of India by HCL Technologies.
  • Young Achiever Award by Indian Red Cross Society.
  • Wednesday, 12 September 2018

    किंकरी देवी के संघर्ष और बहादुरी की  कहानी।


     किंकरी देवी – हिमाचल प्रदेश की एक ऐसी पर्यावरण की रक्षक जिन्होंने चूना-पत्थर खदानों के खिलाफ एक जंग छेड़ी।  सिमौर जिले की रहने वाली इस साधारण महिला ने जब खदानों के कारण वातावरण में हो रहे दुष्परिणामो को देखा तो अनपढ़ होने के बावजूद, इन खदानों के मालिको को वो  कोर्ट तक ले कर गयी। आइये जानते है इनके संघर्ष और बहादुरी की  कहानी।

                                                   04 July 1940 to 30 Dec 2007

    महिलाओं की शक्ति को कम आंकने वालों को एक बार किंकरी देवी के बारे में जरूर पढ़ लेना चाहिए. हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिला में एक छोटे से गांव ‘घाटों’ में जन्मी, अनपढ़ और बेहद गरीब परिवार में पली-बढ़ी किंकरी देवी ने पूरे हिमाचल प्रदेश में पर्यावरण संरक्षण का वो अलख जगा गई जिसकी दूसरी मिसाल प्रदेश में देखने को नहीं मिलती है. एक अनपढ़ हिमाचली महिला जो बचपन से ही दूसरे के घरों में झाडू-पोछा करती हो, जिसकी शादी महज 14 वर्ष की उम्र में एक बंधुआ मजदूर के साथ कर दी गई हो उसने अपने जीवन में इतनी बुलंदी कैसे हासिल कि 1995 में उन्हें बीजिंग के अन्तराष्ट्रीय महिला सम्मलेन में बुलाया जाता है जहां वो हिलेरी क्लिंटन के साथ दीप प्रज्वल्लित करती हैं.
    किंकरी देवी हिमाचल प्रदेश की एक ऐसी पर्यावरण की रक्षक जिन्होंने चूना-पत्थर खदानों के खिलाफ एक जंग छेड़ दी. जब इन्होंने देखा कि खदानों के कारण वातावरण दूषित हो रहा है तो इन्होंने खदानों के मालिको को वो कोर्ट तक ले कर गईंं. किंकरी देवी एक ऐसी महिला थी जिन्होंने अंत तक अपनी मातृभूमि और वहां के वातावरण को खुद से अलग नहीं होने दिया.
    14 वर्ष की छोटी सी आयु में उनका विवाह श्यामू नाम के एक बंधुआ मजदूर से करा दिया गया लेकिन 22 की उम्र में ही वो विधवा हो गई. अपना गुजारा करने के लिए उन्होंने सफाई कर्मचारी (स्वीपर) का काम करना शुरू कर दिया. किंकरी देवी ने गौर किया कि उनके अपने और आस-पास के गांवों का वातावरण प्रदूषित हो रहा है. अनपढ़ होने के बावजूद भी उन्होने कई लोगो को पर्यवारण के प्रति जागरूक किया और उन्हें अनियंत्रित खनन के दुष्परिणाम के प्रति सचेत किया.
    हाई कोर्ट के सामने भूख हड़ताल
    दून घाटी में उत्खनन पर 1985 में प्रतिबन्ध लगने के बाद, सिमौर जिले में चूनापत्थर के उत्खनन का व्यापार पूरे जोरोंं से चलने लगा. अत्यधिक उत्खनन के कारण इस जिले के जलाशयों का पानी प्रदूषित होने लगा, खेती की जमीन खराब होने लगी और जंगल कम होने लगे. किंकरी देवी ने जिले के आस-पास उत्खनन के विरोध में आवाज उठाने और लोगों को प्रदुषण के प्रति जागरूक करने लगी. उन्होंने अपनी लडाई की शुरुआत 1987 में एक स्वयं सेवी संस्था ‘पीपल्स एक्शन फॉर पीपल इन नीड’ (People’s action for people in need) की मदद से शिमला हाई कोर्ट में एक पी.आई.एल दायर करके की. यह मुकदमा वहां के 48 खदान के मालिको के खिलाफ था जो इस चुनापत्थर के उत्खनन के लिए जिम्मेदार थे. जब इस पी.आई.एल पर कोई कार्रवाई नहीं हुई तो किंकरी देवी शिमला हाई कोर्ट के आगे भूख हड़ताल पे बैठ गई.
    11 दिन की भूख-हड़ताल के बाद उनकी ये लड़ाई सफल हुई. कोर्ट ने उत्खनन और पहाड़ों पर विस्फोट करने पर प्रतिबंध लगा दिया. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में फिर ये मामला उठा जहां फिर से किंकरी देवी की ही जीत हुई. उनकी इस जीत से 60 के लगभग खाने बंद हुई थी. इस लड़ाई के खर्च के दौरान किंकरी देवी को अपना मंगलसूत्र तक बेचना पड़ा था.


    रानी झांसी उपाधि से समान्नित
    इसके बाद किंकरी देवी हिमाचल में एक प्रख्यात पर्यावरण रक्षक के रूप में पहचाने जाने लगी. 1995 में उन्हें बीजिंग के अन्तराष्ट्रीय महिला सम्मलेन में सम्मानित किया गया. जहां उन्होंने हिलेरी क्लिंटन के साथ उद्घाटन का दीप प्रज्वलित किया. 2001 में प्रधानमंत्री ने स्त्री शक्ति राष्ट्रीय पुरस्कार और रानी झांसी उपाधि से समान्नित किया.
    2007 में निधन
    किंकरी देवी यहीं नहीं रुकी उन्होंने संग्राह गांव में डिग्री कॉलेज खोलने के लिए भी आंदोलन चलाया, जीवन के कई वर्ष उन्होंने इस आंदोलन में लगाए. 2006 में आखिरकार यहां एक कॉलेज खोला गया. 30 Dec 2007 में 82 वर्ष की उम्र में बीमारी की वजह से चंडीगढ़ अस्पताल में उनका निधन हो गया.

    किंकरी देवी का इतिहास व जीवन परिचय
    किंकरी देवी (४ जुलाई १९०४ - ३० दिसम्बर २००७), हिमाचल प्रदेश में पर्यावरण संरक्षण की प्रणेता थीं।



    जीवनी

    हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिला के दूर दराज़ गाँव घान्टो संगडाह में चार जुलाई उनीस सौ चालीस को जन्मी किंकरी देवी ने सिरमौर जिले के गिरिपार क्षेत्र के खदानों में अवैज्ञानिक और अवैध ढंग से हो रही के विरुद्ध आवाज़ उठा कर पर्यावरण के प्रति लोगो को जागरूक किया ! 1985 में महिलाओं और स्वयंसेवी सस्थाओं के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण की लड़ाई आरंभ की और आखिरी साँस तक इसे जारी रखा ! किंकरी देवी का जीवन घोर आभाव और गरीबी में बीता ! विरोध प्रदर्शन भूख हड़ताल ज्ञापनों के माधयम से किंकरी देवी ने पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों को तो जागरूक किया ही साथ ही खनन माफियाओं को खुली चुनोती दी ! 1987 में दायर जनहित याचिका पर दिसम्बर 1991 में न्यायालय ने पक्ष में फैसला सुनाया था और 60 के लगभग खाने बंद हुई थी ! इस लड़ाई के खर्च के दौरान किंकरी देवी को ओना मंगलसूत्र तक बेचना पड़ा था !
    1998 में चीन के बीजिग में पांचवे विश्व महिला समेलन का सुभारम्भ करने वाली किंकरी देवी को 2001 में प्रधानमंत्री द्वारा स्त्री शक्ति राष्ट्रीय पुरस्कार और रानी झाँसी उपाधि से समान्नित भी किया गया ! दिसम्बर 2007 में गंभीर बीमार होने पर किंकरी देवी को इलाज के लिए पीजीआई चंडीगड़ में भर्ती करवाया गया जहाँ उनका 30 दिसम्बर 2007 को निधन हो गया !


    एपीजे अब्दुल कलाम का इतिहास जीवन परिचय
    पूर्व राष्ट्रपति डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम, उस शख्सियत का नाम है,जो जीवनभर ज्ञान के भूखे रहे और जिसमें दूसरों के भीतर भी ज्ञान की भूख जगाने की अद्भुत क्षमता थी। जिसने हमेशा विकास की बात की। फिर वह डेवलेपमेंट समाज का हो या फिर व्यक्ति का।……… ए॰ पी॰ जे॰ अब्दुल कलाम


    जन्म: 15 अक्टूबर 1931, रामेश्वरम, तमिलनाडु
    मृत्यु: 27 जुलाई, 20 15, शिलोंग, मेघालय
    पद/कार्य: भारत के पूर्व राष्ट्रपति
    उपलब्धियां: एक वैज्ञानिक और इंजिनियर के तौर पर उन्होंने रक्षा अनुसन्धान और विकास संगठन (डीआरडीओ) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के कई महत्वपूर्ण परियोजनाओं पर कार्य किया
    डॉ ए. पी. जे. अब्दुल कलाम एक प्रख्यात भारतीय वैज्ञानिक और भारत के 11वें राष्ट्रपति थे। उन्होंने देश के कुछ सबसे महत्वपूर्ण संगठनों (डीआरडीओ और इसरो) में कार्य किया। उन्होंने वर्ष 1998 के पोखरण द्वितीय परमाणु परिक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। डॉ कलाम भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम और मिसाइल विकास कार्यक्रम के साथ भी जुड़े थे। इसी कारण उन्हें ‘मिसाइल मैन’ भी कहा जाता है। वर्ष 2002 में  कलाम भारत के राष्ट्रपति चुने गए और 5 वर्ष की अवधि की सेवा के बाद, वह शिक्षण, लेखन, और सार्वजनिक सेवा में लौट आए। उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न सहित कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
    प्रारंभिक जीवन
    अवुल पकिर जैनुलअबिदीन अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में एक मुसलमान परिवार मैं हुआ। उनके पिता जैनुलअबिदीन एक नाविक थे और उनकी माता अशिअम्मा एक गृहणी थीं। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थे इसलिए उन्हें छोटी उम्र से ही काम करना पड़ा। अपने पिता की आर्थिक मदद के लिए बालक कलाम स्कूल के बाद समाचार पत्र वितरण का कार्य करते थे। अपने स्कूल के दिनों में कलाम पढाई-लिखाई में सामान्य थे पर नयी चीज़ सीखने के लिए हमेशा तत्पर और तैयार रहते थे। उनके अन्दर सीखने की भूख थी और वो पढाई पर घंटो ध्यान देते थे। उन्होंने अपनी स्कूल की पढाई रामनाथपुरम स्च्वार्त्ज़ मैट्रिकुलेशन स्कूल से पूरी की और उसके बाद तिरूचिरापल्ली के सेंट जोसेफ्स कॉलेज में दाखिला लिया, जहाँ से उन्होंने सन 1954 में भौतिक विज्ञान में स्नातक किया। उसके बाद वर्ष 1955 में वो मद्रास चले गए जहाँ से उन्होंने एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की शिक्षा ग्रहण की। वर्ष 1960 में कलाम ने मद्रास इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग की पढाई पूरी की।
    कैरियर
    मद्रास इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी से इंजीनियरिंग की पढाई पूरी करने के बाद कलाम ने रक्षा अनुसन्धान और विकास संगठन (डीआरडीओ) में वैज्ञानिक के तौर पर भर्ती हुए। कलाम ने अपने कैरियर की शुरुआत भारतीय सेना के लिए एक छोटे हेलीकाप्टर का डिजाईन बना कर किया। डीआरडीओ में कलाम को उनके काम से संतुष्टि नहीं मिल रही थी। कलाम पंडित जवाहर लाल नेहरु द्वारा गठित ‘इंडियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च’ के सदस्य भी थे। इस दौरान उन्हें प्रसिद्ध अंतरिक्ष वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के साथ कार्य करने का अवसर मिला। वर्ष 1969 में उनका स्थानांतरण भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) में हुआ। यहाँ वो भारत के सॅटॅलाइट लांच व्हीकल  परियोजना के निदेशक के तौर पर नियुक्त किये गए थे। इसी परियोजना की सफलता के परिणामस्वरूप भारत का प्रथम उपग्रह ‘रोहिणी’ पृथ्वी की कक्षा में वर्ष 1980 में स्थापित किया गया। इसरो में शामिल होना कलाम के कैरियर का सबसे अहम मोड़ था और जब उन्होंने सॅटॅलाइट लांच व्हीकल परियोजना पर कार्य आरम्भ किया तब उन्हें लगा जैसे वो वही कार्य कर रहे हैं जिसमे उनका मन लगता है।
    1963-64 के दौरान उन्होंने अमेरिका के अन्तरिक्ष संगठन नासा की भी यात्रा की। परमाणु वैज्ञानिक राजा रमन्ना, जिनके देख-रेख में भारत ने पहला परमाणु परिक्षण किया, ने कलाम को वर्ष 1974 में पोखरण में परमाणु परिक्षण देखने के लिए भी बुलाया था।
    सत्तर और अस्सी के दशक में अपने कार्यों और सफलताओं से डॉ कलाम भारत में बहुत प्रसिद्द हो गए और देश के सबसे बड़े वैज्ञानिकों में उनका नाम गिना जाने लगा। उनकी ख्याति इतनी बढ़ गयी थी की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने अपने कैबिनेट के मंजूरी के बिना ही उन्हें कुछ गुप्त परियोजनाओं पर कार्य करने की अनुमति दी थी।
    भारत सरकार ने महत्वाकांक्षी ‘इंटीग्रेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम’ का प्रारम्भ डॉ कलाम के देख-रेख में किया। वह इस परियोजना के मुख कार्यकारी थे। इस परियोजना ने देश को अग्नि और पृथ्वी जैसी मिसाइलें दी है।
    जुलाई 1992 से लेकर दिसम्बर 1999 तक डॉ कलाम प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार और रक्षा अनुसन्धान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के सचिव थे। भारत ने अपना दूसरा परमाणु परिक्षण इसी दौरान किया था। उन्होंने इसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। आर. चिदंबरम के साथ डॉ कलाम इस परियोजना के समन्वयक थे। इस दौरान मिले मीडिया कवरेज ने उन्हें देश का सबसे बड़ा परमाणु वैज्ञानिक बना दिया।

    वर्ष 1998 में डॉ कलाम ने ह्रदय चिकित्सक सोमा राजू के साथ मिलकर एक कम कीमत का ‘कोरोनरी स्टेंट’ का विकास किया। इसे ‘कलाम-राजू स्टेंट’ का नाम दिया गया।
    भारत के राष्ट्रपति
    एक रक्षा वैज्ञानिक के तौर पर उनकी उपलब्धियों और प्रसिद्धि के मद्देनज़र एन. डी. ए. की गठबंधन सरकार ने उन्हें वर्ष 2002 में राष्ट्रपति पद का उमीदवार बनाया। उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी लक्ष्मी सहगल को भारी अंतर से पराजित किया और 25 जुलाई 2002 को भारत के 11वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ लिया। डॉ कलाम देश के ऐसे तीसरे राष्ट्रपति थे जिन्हें राष्ट्रपति बनने से पहले ही भारत रत्न ने नवाजा जा चुका था। इससे पहले डॉ राधाकृष्णन और डॉ जाकिर हुसैन को राष्ट्रपति बनने से पहले ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया जा चुका था।
    उनके कार्यकाल के दौरान उन्हें ‘जनता का राष्ट्रपति’ कहा गया। अपने कार्यकाल की समाप्ति पर उन्होंने दूसरे कार्यकाल की भी इच्छा जताई पर राजनैतिक पार्टियों में एक राय की कमी होने के कारण उन्होंने ये विचार त्याग दिया।

    12वें राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के कार्यकाल के समाप्ति के समय एक बार फिर उनका नाम अगले संभावित राष्ट्रपति के रूप में चर्चा में था परन्तु आम सहमति नहीं होने के कारण उन्होंने अपनी उमीद्वारी का विचार त्याग दिया।
    राष्ट्रपति पद से सेवामुक्त होने के बाद का समय
    राष्ट्रपति पद से सेवामुक्त होने के बाद डॉ कलाम शिक्षण, लेखन, मार्गदर्शन और शोध जैसे कार्यों में व्यस्त रहे और भारतीय प्रबंधन संस्थान, शिल्लोंग, भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद, भारतीय प्रबंधन संस्थान, इंदौर, जैसे संस्थानों से विजिटिंग प्रोफेसर के तौर पर जुड़े रहे। इसके अलावा वह भारतीय विज्ञान संस्थान बैंगलोर के फेलो, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ स्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी, थिरुवनन्थपुरम, के चांसलर, अन्ना यूनिवर्सिटी, चेन्नई, में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग के प्रोफेसर भी रहे।
    उन्होंने आई. आई. आई. टी. हैदराबाद, बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी और अन्ना यूनिवर्सिटी में सूचना प्रौद्योगिकी भी पढाया था।
    कलाम हमेशा से देश के युवाओं और उनके भविष्य को बेहतर बनाने के बारे में बातें करते थे। इसी सम्बन्ध में उन्होंने देश के युवाओं के लिए “व्हाट कैन आई गिव’ पहल की शुरुआत भी की जिसका उद्देश्य भ्रष्टाचार का सफाया है। देश के युवाओं में उनकी लोकप्रियता को देखते हुए उन्हें 2 बार (2003 & 2004) ‘एम.टी.वी. यूथ आइकॉन ऑफ़ द इयर अवार्ड’ के लिए मनोनित भी किया गया था।
    वर्ष 2011 में प्रदर्शित हुई हिंदी फिल्म ‘आई ऍम कलाम’ उनके जीवन से प्रभावित है।
    शिक्षण के अलावा डॉ कलाम ने कई पुस्तकें भी लिखी जिनमे प्रमुख हैं – ‘इंडिया 2020: अ विज़न फॉर द न्यू मिलेनियम’, ‘विंग्स ऑफ़ फायर: ऐन ऑटोबायोग्राफी’, ‘इग्नाइटेड माइंडस: अनलीशिंग द पॉवर विदिन इंडिया’, ‘मिशन इंडिया’, ‘इंडोमिटेबल स्पिरिट’ आदि।
    पुरस्कार और सम्मान
    देश और समाज के लिए किये गए उनके कार्यों के लिए, डॉ कलाम को अनेकों पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। लगभग 40 विश्वविद्यालयों ने उन्हें मानद डॉक्टरेट की उपाधि दी और भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण, पद्म विभूषण और भारत के सबसे बड़े नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से अलंकृत किया।

    मृत्यु: 27 जुलाई 2015 को भारतीय  प्रबंधन संस्थान, शिल्लोंग, में अध्यापन कार्य के दौरान उन्हें दिल का दौरा पड़ा जिसके बाद करोड़ों लोगों के प्रिय और चहेते डॉ अब्दुल कलाम परलोक सिधार गए।