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Wednesday, 12 September 2018

किंकरी देवी के संघर्ष और बहादुरी की  कहानी।


 किंकरी देवी – हिमाचल प्रदेश की एक ऐसी पर्यावरण की रक्षक जिन्होंने चूना-पत्थर खदानों के खिलाफ एक जंग छेड़ी।  सिमौर जिले की रहने वाली इस साधारण महिला ने जब खदानों के कारण वातावरण में हो रहे दुष्परिणामो को देखा तो अनपढ़ होने के बावजूद, इन खदानों के मालिको को वो  कोर्ट तक ले कर गयी। आइये जानते है इनके संघर्ष और बहादुरी की  कहानी।

                                               04 July 1940 to 30 Dec 2007

महिलाओं की शक्ति को कम आंकने वालों को एक बार किंकरी देवी के बारे में जरूर पढ़ लेना चाहिए. हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिला में एक छोटे से गांव ‘घाटों’ में जन्मी, अनपढ़ और बेहद गरीब परिवार में पली-बढ़ी किंकरी देवी ने पूरे हिमाचल प्रदेश में पर्यावरण संरक्षण का वो अलख जगा गई जिसकी दूसरी मिसाल प्रदेश में देखने को नहीं मिलती है. एक अनपढ़ हिमाचली महिला जो बचपन से ही दूसरे के घरों में झाडू-पोछा करती हो, जिसकी शादी महज 14 वर्ष की उम्र में एक बंधुआ मजदूर के साथ कर दी गई हो उसने अपने जीवन में इतनी बुलंदी कैसे हासिल कि 1995 में उन्हें बीजिंग के अन्तराष्ट्रीय महिला सम्मलेन में बुलाया जाता है जहां वो हिलेरी क्लिंटन के साथ दीप प्रज्वल्लित करती हैं.
किंकरी देवी हिमाचल प्रदेश की एक ऐसी पर्यावरण की रक्षक जिन्होंने चूना-पत्थर खदानों के खिलाफ एक जंग छेड़ दी. जब इन्होंने देखा कि खदानों के कारण वातावरण दूषित हो रहा है तो इन्होंने खदानों के मालिको को वो कोर्ट तक ले कर गईंं. किंकरी देवी एक ऐसी महिला थी जिन्होंने अंत तक अपनी मातृभूमि और वहां के वातावरण को खुद से अलग नहीं होने दिया.
14 वर्ष की छोटी सी आयु में उनका विवाह श्यामू नाम के एक बंधुआ मजदूर से करा दिया गया लेकिन 22 की उम्र में ही वो विधवा हो गई. अपना गुजारा करने के लिए उन्होंने सफाई कर्मचारी (स्वीपर) का काम करना शुरू कर दिया. किंकरी देवी ने गौर किया कि उनके अपने और आस-पास के गांवों का वातावरण प्रदूषित हो रहा है. अनपढ़ होने के बावजूद भी उन्होने कई लोगो को पर्यवारण के प्रति जागरूक किया और उन्हें अनियंत्रित खनन के दुष्परिणाम के प्रति सचेत किया.
हाई कोर्ट के सामने भूख हड़ताल
दून घाटी में उत्खनन पर 1985 में प्रतिबन्ध लगने के बाद, सिमौर जिले में चूनापत्थर के उत्खनन का व्यापार पूरे जोरोंं से चलने लगा. अत्यधिक उत्खनन के कारण इस जिले के जलाशयों का पानी प्रदूषित होने लगा, खेती की जमीन खराब होने लगी और जंगल कम होने लगे. किंकरी देवी ने जिले के आस-पास उत्खनन के विरोध में आवाज उठाने और लोगों को प्रदुषण के प्रति जागरूक करने लगी. उन्होंने अपनी लडाई की शुरुआत 1987 में एक स्वयं सेवी संस्था ‘पीपल्स एक्शन फॉर पीपल इन नीड’ (People’s action for people in need) की मदद से शिमला हाई कोर्ट में एक पी.आई.एल दायर करके की. यह मुकदमा वहां के 48 खदान के मालिको के खिलाफ था जो इस चुनापत्थर के उत्खनन के लिए जिम्मेदार थे. जब इस पी.आई.एल पर कोई कार्रवाई नहीं हुई तो किंकरी देवी शिमला हाई कोर्ट के आगे भूख हड़ताल पे बैठ गई.
11 दिन की भूख-हड़ताल के बाद उनकी ये लड़ाई सफल हुई. कोर्ट ने उत्खनन और पहाड़ों पर विस्फोट करने पर प्रतिबंध लगा दिया. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में फिर ये मामला उठा जहां फिर से किंकरी देवी की ही जीत हुई. उनकी इस जीत से 60 के लगभग खाने बंद हुई थी. इस लड़ाई के खर्च के दौरान किंकरी देवी को अपना मंगलसूत्र तक बेचना पड़ा था.


रानी झांसी उपाधि से समान्नित
इसके बाद किंकरी देवी हिमाचल में एक प्रख्यात पर्यावरण रक्षक के रूप में पहचाने जाने लगी. 1995 में उन्हें बीजिंग के अन्तराष्ट्रीय महिला सम्मलेन में सम्मानित किया गया. जहां उन्होंने हिलेरी क्लिंटन के साथ उद्घाटन का दीप प्रज्वलित किया. 2001 में प्रधानमंत्री ने स्त्री शक्ति राष्ट्रीय पुरस्कार और रानी झांसी उपाधि से समान्नित किया.
2007 में निधन
किंकरी देवी यहीं नहीं रुकी उन्होंने संग्राह गांव में डिग्री कॉलेज खोलने के लिए भी आंदोलन चलाया, जीवन के कई वर्ष उन्होंने इस आंदोलन में लगाए. 2006 में आखिरकार यहां एक कॉलेज खोला गया. 30 Dec 2007 में 82 वर्ष की उम्र में बीमारी की वजह से चंडीगढ़ अस्पताल में उनका निधन हो गया.

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