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Friday, 31 August 2018


KFC के संस्थापक कर्नल हरलैंड सैंडर्स की सफलता की कहानी

कर्नल सैंडर्स की ये कहानी किसी के भी होश उड़ा देने के लिए काफी है| एक ऐसा इंसान जो जीवन भर संघर्ष करता रहा लेकिन अपने अंतिम दिनों में सफलता की एक ऐसी मिसाल पेश की जिसे सुनकर कोई भी दांतों तले उंगलियां दबा लेगा|
जब वो 5 साल के थे तब उनके पिता का देहान्त हो गया
16 साल की उम्र में स्कूल छोड़ना पड़ा
17 साल की उम्र तक उन्हें 4 नौकरियों से निकाला जा चुका था
18 साल की उम्र में ही शादी हो गयी
18 से 22 वर्ष की आयु तक कंडकटर की नौकरी की
आर्मी में गए वहां से निकाल दिया गया
Law स्कूल में दाखिला लेने गए, रिजेक्ट कर दिया
लोगों के insurance(बीमा) का काम शुरू किया – फेल
19 साल की उम्र में पिता बने
20 साल की उम्र में उनकी पत्नी उनको छोड़ के चली गयी और बच्ची को अपने साथ ले गयी
एक होटल में बावर्ची का काम किया
अपनी खुद की बेटी से मिलने के लिए उसे किडनेप करने की कोशिश की – फेल
65 साल की उम्र में रिटायर हो गए
रिटायरमेंट के बाद पहले ही दिन सरकार की ओर से मात्र $105 का चेक मिला
कई बार आत्महत्या करने की कोशिश की
एक बार एक पेड़ के नीचे बैठ कर अपनी जिंदगी के बारे में लिख रहे थे तभी अहसास हुआ कि अभी बहुत कुछ करना बाकि है। वो एक शानदार कुक(बाबर्ची) थे।
100$ के चेक से $87 निकाले और कुछ चिकन फ्राई करके उसे गली गली में बेकने लगे
याद कीजिये जो इंसान 65 साल की उम्र में आत्महत्या करना चाह रहा था
वही इंसान यानि कर्नल सैंडर्स 88 साल की उम्र में बने अरबपति यानि Kentucky Fried Chicken (KFC) के मालिक
आज दुनिया भर में KFC के होटल हैं और आज KFC एक बहुत बड़ा ब्रांड बन चुका है।
आप चिकन पसंद करते हो या नहीं, ये अलग बात है। लेकिन कर्नल सैंडर्स का संघर्ष वास्तव में दिल चीर देने वाला है। एक इंसान जिसने अपना पूरा जीवन संघर्ष करते हुए निकाल दिया। यहाँ तक कि 65 वर्ष की आयु में आत्महत्या करने की कोशिश भी की, वही इंसान 88 साल की उम्र तक अरबपति बन गया।
दोस्तों किस्मत कभी भी पलट सकती है। बहुत से लोग ये शिकायत करते हैं कि उनकी सारी जिंदगी दुःखों से संघर्ष करते निकल गयी। कर्नल सैंडर्स की कहानी उन लोगों के लिए एक वरदान साबित हो सकती है। उनकी कहानी बताती है कि कभी निराश मत होइये, अपनी अंतिम सांस तक प्रयास कीजिये, क्यूंकि किस्मत पलटते देर नहीं लगती।
कर्नल सैंडर्स की कहानी से मैं वास्तव में बहुत प्रेरित हुआ। अब आपकी बारी है, हमें कॉमेंट करके बताइए कि ये कहानी आपको कैसी लगी?

दशरथ मांझी जीवनी - Biography of Dashrath Manjhi





दशरथ माँझी

दोस्तों इंसान पृथ्वी पर एक मात्र ऐसा प्राणी है जो अगर ठान ले तो उसके लिए कोई भी कार्य असंभव नहीं है। हमारे देश में अनेकों ऐसे विद्वान और महापुरुष हुए हैं जिन्होंने अपनी जिंदगी में बहुत बड़े-बड़े कार्य किये हैं। जो कार्य उन्होंने अपने मन में ठान लिया उसे कर के ही दम लिया है, भले ही उस कार्य को करने में कितनी ही कठिनाइयाँ और मुसीबतें क्यों आयी हों। ऐसे ही एक महान व्यक्ति थे दशरथ मांझी! जिन्होंने सिर्फ छेनी और हथौड़ी के सहारे विशाल पहाड़ का सीना चीरकर अकेले दम पर रास्ता बना दिया था।

पृष्ठभूमि

दशरथ मांझी का जन्म 17 अगस्त 1934 को बिहार के गया जिले के एक बहुत ही पिछड़े गांव गहलौर में हुआ था। पेशे से मजदूर दशरथ मांझी का गांव गहलौर एक ऐसी जगह है जहाँ पानी के लिए भी लोगों को तीन किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था। वहीँ अपने परिवार के साथ एक छोटे से झोपड़े में रहने वाले Dasrath Manjhi भी किसी तरह से अपना गुजर-बसर करते थे। एक बार दशरथ मांझी जी की पत्नी पहाड़ को पार करके पानी लेने गई, वो पानी लेकर वापस रही थी कि उनका पैर पहाड़ से फिसल गया और वह गिर पड़ी। जिससे उनको बहुत चोटें आई। लोग उन्हें घर लेकर गए और घर जाकर उन्होंने सारी दास्ताँ दशरथ मांझी को सुनाई।

इस घटना माँझी के ह्रदय को झकझोर कर रख दिया और उसी समय उन्होंने मन में ठान लिया की पहाड़ को तोड़कर रास्ता बनाकर रहेंगे। और उन्होंने गहलौर पहाड़ को अकेले दम पर चीर कर 360 फीट लंबा और 30 फीट चौड़ा रास्ता बना दिया। इसकी वजह से गया जिले के अत्री और वजीरगंज ब्लाक के बीच कि दूरी 80 किलोमीटर से घट कर मात्र 3 किलोमीटर रह गयी। ज़ाहिर है इससे उनके गांव वालों को काफी सहूलियत हो गयी।

Dasrath Manjhi एक दृढ़संकल्प के व्यक्ति थे जिन्होने अकेले ही पहाड़ काटकर रास्ता बना दिया। और इस पहाड़ जैसे काम को करने के लिए उन्होंने किसी मशीन या Dynamite का इस्तेमाल नहीं किया, उन्होंने तो सिर्फ अपनी छेनी-हथौड़ी से ही ये कारनामा कर दिखाया। इस काम को करने के लिए उन्होंने ना जाने कितनी ही दिक्कतों का सामना किया, कभी लोग उन्हें पागल कहते तो कभी सनकी, यहाँ तक कि घर वालों ने भी शुरू में उनका काफी विरोध किया पर अपनी धुन के पक्के Dasrath Manjhi ने किसी की सुनी और एक बार जो छेनी-हथौड़ी उठाई तो बाईस साल बाद ही उसे छोड़ा.जी हाँ सन 1960 जब वो 25 साल के भी नहीं थे, तब से हाथ में छेनी-हथौड़ी लिये वे बाइस साल पहाड़ काटते रहे।

रात-दिन,आंधी-पानी की चिंता किये बिना Dashrath Manjhi नामुमकिन को मुमकिन करने में जुटे रहे। अंतत: पहाड़ को झुकना ही पड़ा। 
22 साल (1960-1982) के अथक परिश्रम के बाद ही उनका यह कार्य पूर्ण हुआ पर उन्हें हमेशा यह अफ़सोस रहा कि जिस पत्नी कि परेशानियों को देखकर उनके मन में यह काम करने का जज्बा आया अब वही उनके बनाये इस रस्ते पर चलने के लिए जीवित नहीं थी। उनकी पत्नी फागुनी देवी वो उस दिन को देखने के लिए जिंदा नहीं रही जब वो सपना पूरा हुआ। रास्ता बन कर तैयार होने से लगभग दो साल पहले वो बीमार हुई और सारा दिन लग गया उन्हें अस्पताल पहुंचाने में, और रास्ते में ही उनकी मौत हो गयी।

दशरथ मांझी जी के इस कारनामे के बाद दुनिया उन्हें The Mountain Man के नाम से भी जानने लगी। वैसे पहले भी रेल पटरी के सहारे गया से पैदल दिल्ली यात्रा कर जगजीवन राम और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिलने का अद्भुत कार्य भी दशरथ मांझी ने किया था। पर पहाड़ चीरने के आश्चर्यजनक काम के बाद इन कामों का क्या महत्व रह जाता है?


निधन

पहाड़ से लड़ने वाले माँझी जी कैंसर की बीमारी से बहुत दिनों तक लड़ते रहे लेकिन अंत में बीमारी उन पर हाबी हो गई। 18 अगस्त 2007 को श्री दशरथ मांझी का देहांत हो गया। इनका अंतिम संस्कार बिहार सरकार द्वारा राजकीय सम्मान के साथ किया गया। भले ही वो आज हमारे बीच हों पर उनका यह अद्भुत कार्य आने वाली कई पीढ़ियों को प्रेरणा देता रहेगा।

अगर इंसान चाहे तो सच-मुच पहाड़ हिला सकता है। वह कोई भी बड़ा से बड़ा असंभव दिखने वाला काम कर सकता है। सफलता पाने के लिए ज़रूरी है की हम अपने प्रयास में निरंतर जुटे रहे। बहुत से लोग कभी इस बात को नहीं जान पाते हैं कि जब उन्होंने अपने प्रयास छोड़े तो वह सफलता के कितने करीब थे। सफल होने के लिए संयम बहुत ज़रूरी है। जिंदगी के बाईस साल तक कठोर मेहनत करने के बाद फल मिला दशरथ जी को।

सम्मान

मांझी 'माउंटेन मैन' के रूप में विख्यात हैं। उनकी इस उपलब्धि के लिए बिहार सरकार ने सामाजिक सेवा के क्षेत्र में 2006 में पद्म श्री हेतु उनके नाम का प्रस्ताव रखा। बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने दशरथ मांझी के नाम पर रखा गहलौर से 3 किमी पक्की सड़क का और गहलौर गांव में उनके नाम पर एक अस्पताल के निर्माण का प्रस्ताव रखा है।


कौन कहता है किअकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता”…फोड़ सकता है।

निश्छल मन से समाज के लिए काम करने वाले कर्मयोगी अवश्य सफल होते हैं और ऐसे व्यक्ति ही इश्वर के सबसे करीब होते हैं।



...अपने बुलंद हौसलों और खुद को जो कुछ आता था, उसी के दम पर मैं मेहनत करता रहा. संघर्ष के दिनों में मेरी मां कहा करती थीं कि 12 साल में तो घूरे के भी दिन फिर जाते हैं. उनका यही मंत्र था कि अपनी धुन में लगे रहो. बस, मैंने भी यही मंत्र जीवन में बांध रखा था कि अपना काम करते रहो, चीजें मिलें, न मिलें इसकी परवाह मत करो. हर रात के बाद दिन तो आता ही है |  
                                       दशरथ मांझी का वक्तव्य 
                                     फिल्म: 'मांझी: द माउंटेन मैन में

कंप्यूटर को बनाएं तरक्की का रास्ता



अगर आप कंप्यूटर के जानकार हैं, सोशल मीडिया पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराते हैं तो आपके लिए अपनी आय में इजाफा करना मुश्किल नहीं है। इसके जरिए आमदनी कैसे कर सकते हैं, इस बारे में बता रही हैं सौदामिनी पांडेय
गर आपको कंप्यूटर के कुछ बेसिक सॉफ्टवेयर की जानकारी है और इंटरनेट चलाने की भी समझ रखते हैं, तो अपने ज्ञान में थोड़ा सा इजाफा करके आप बड़े लक्ष्य हासिल कर सकते हैं और बेहद कम समय में अपना स्वतंत्र काम शुरू कर सकते हैं या अपने शहर में ही अपने लिए उपयुक्त जॉब के मौके तलाश सकते हैं। विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे शहरों में कंप्यूटर के जानकार लोगों की काफी मांग है। कंप्यूटर को अपनी तरक्की की सीढ़ी बनाने के कुछ तरीकों के बारे में आइए जानते हैं -
@ऑनलाइन 
ग्रामीण इलाकों में और छोटे शहरों में पैन कार्ड, जाति प्रमाणपत्र, मैरिज सर्टिफिकेट आदि के लिए ऑनलाइन आवेदन किया जा सकता है। अगर इन प्रमाणपत्रों के फॉर्म ऑनलाइन भरवाए जाएं तो प्रत्येक फॉर्म पर 50-100 रुपये चार्ज कर सकते हैं। इसके अलावा परीक्षाओं के नतीजे ऑनलाइन जानने के लिए प्रति व्यक्ति 10-20 रुपये चार्ज कर सकते हैं। आजकल ज्यादातर सरकारी और गैर सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन ऑनलाइन मांगे जाते हैं।
ऐसे में संबंधित जॉब की जानकारी का बैनर अपनी दुकान पर लगा सकते हैं और ऑनलाइन आवेदन के लिए प्रति व्यक्ति 50-100 रुपये चार्ज कर अच्छी कमाई कर सकते हैं। छोटे शहरों में परिजनों को पैसे भेजने में भी समस्या होती है। इसके लिए ऑनलाइन बैंकिंग से पैसे ट्रांसफर करने का काम कर सकते हैं और राशि के आधार पर एक निश्चित फीस वसूल सकते हैं। इस तरह अगर सुबह से शाम तक आपके पास लोग इस तरह के काम लेकर आते हैं तो आप आसानी से रोजाना 800-1000 रुपये तक कमा सकते हैं।
इसके साथ ही आप पैनकार्ड बनवाने का भी काम कर सकते हैं। इसके लिए ऑनलाइन 49 फॉर्म भरा जाता है, जिसमें व्यक्ति से संबंधित सभी सूचनाएं भरी जा सकती हैं। यूटीआई बैंक, एक्सिस बैंक, इन टाइम आदि के पास 105 रुपये की फीस जमा करने पर सात दिन में पैन कार्ड बनकर तैयार हो जाते हैं। प्रति पैन कार्ड आप 100-200 रुपये तक चार्ज कर सकते हैं।
डिजाइन स्टूडियो
अगर आप मल्टीमीडिया, एनिमेशन, एडोब, फोटोशॉप और पिकासा सॉफ्टवेयर पर काम सीख लेते हैं तो प्रिंट मीडिया के लिए बैनर डिजाइन कर सकते हैं। पिकासा जैसे सॉफ्टवेयर पर काम करने से एडिटिंग, फोटो का कोलाज बनाना आसान हो जाता है। नए स्कूल या शोरूम आदि के प्रचार के लिए अखबारों में दिए जाने वाले पोस्टर डिजाइन कर सकते हैं। छोटे शहरों में फिल्में दिखाए जाने के दौरान सिनेमाघरों में पोस्टर और स्टिल फोटो से बने वीडियो भी काफी प्रभावी हो जाते हैं।
प्रचार सामग्री बनाने का काम आपके पास बहुतायत में आने लगता है तो आप आसानी से 25,000- 30,000 रुपये तक कमा सकते हैं। स्कूलों में आजकल तरह-तरह के प्रोजेक्ट बनाने का काम दिया जाता है, जो आप इन्हीं योग्यताओं के बल पर कर सकते हैं। जानवरों, वनस्पतियों, मैथ्स, समसामयिक विषयों पर आधारित विषयों पर आप प्रति प्रोजेक्ट्स के हिसाब से चार्ज ले सकते हैं। ज्यादा तकनीकी काम के लिए आप 50-100 रुपये तक चार्ज कर सकते हैं। मल्टीमीडिया, एनिमेशन, फोटोशॉप, पिकासा की जानकारी टैटू मेकिंग में भी काम आ सकती है।
अकाउंटिंग बड़े काम की
अगर आपने प्रोग्रामिंग लैंग्वेज सी, डेटाबेस, अकाउंटिंग और टेली जैसे सॉफ्टवेयर पर काम सीखा हुआ है तो छोटे स्टोर के बही-खाते कंप्यूटर पर संचालित कर सकते हैं और इसका प्रशिक्षण भी दे सकते हैं। छोटी-बड़ी फर्म, रीटेल, बैंक, शो रूम, गैर बैंकिंग वित्तीय संगठन में कंप्यूटर अकाउंटेंट की जॉब मिल जाती है। इसमें अनुभव के आधार पर शुरुआत में 15 से 25 हजार और बाद में 30 से 40 हजार रुपये तक मासिक कमा सकते हैं।
इसी योग्यता के साथ आप कामकाजी लोगों के फॉर्म 16बी के आधार पर ऑनलाइन रिटर्न फाइल करने का भी काम कर सकते हैं। इसके लिए आप प्रति व्यक्ति 300 रुपये तक वसूल सकते हैं। अतिरिक्त आमदनी के लिए आप पासपोर्ट और वोटर -आईडी के ऑनलाइन आवेदन करने का काम कर सकते हैं और प्रति व्यक्ति 50-100 रुपये तक वसूल सकते हैं। इसके लिए आप आईसीए से कोर्स कर सकते हैं।
(सीनियर सॉफ्टवेयर इंजीनियर रवि शंकर पांडेय से बातचीत पर आधारित) बनाएं रेज्यूमे
जॉब के लिए आवेदन करने पर रिज्यूमे तो आवश्यक होता ही है, लेकिन कुछ विशेष तरह की जॉब्स के लिए आजकल विजुअल रेज्यूमे (वीडियोनुमा रेज्यूमे) भी मंगाए जाते हैं। अगर विजुअल रेज्यूमे बनाना सीख लेते हैं तो उसके लिए अतिरिक्त चार्ज वसूल सकते हैं। डिप्लोमा इन कंप्यूटर एप्लिकेशन (डीसीए) के तहत इमेज प्रोसेसिंग और एमएस ऑफिस की जानकारी से सामान्य रेज्यूमे बना सकते हैं। विजुअल रेज्यूमे के लिए मूवीमेकर और वीसीडी कटर पर काम सीख लें। इसके अलावा इंग्लिश-हिंदी टाइपिंग से जुड़ा काम ले सकते हैं और प्रति पेज के हिसाब से चार्ज कर सकते हैं। हाथ से लिखे मैटर की टाइपिंग से भी अच्छी कमाई कर सकते हैं। इन कामों में आप 20,000 रुपये तक कमा सकते हैं।
साइबर कैफे
साइबर कैफे खोल कर कई तरह से कमाई कर सकते हैं। इंटरनेट सर्फिंग, ऑनलाइन टीवी-मोबाइल रीचार्ज, 
बिजली बिल भरने के जरिए आप प्रति व्यक्ति शुल्क वसूल सकते हैं। स्कैनिंग प्रिटिंग के लिए चार्ज कर सकते हैं। डीसीए का प्रशिक्षण लेने वाले साइबर कैफे खोलने के बारे में भी सोच सकते हैं। इसे शुरू करने में भी लागत ज्यादा आती है। साइबर कैफे चलाने के लिए तकनीकी समस्याओं से निपटना भी आना चाहिए। साथ ही क्विकहील, मैकएफी, फायरवॉल जैसे एंटी वायरस सॉफ्टवेयर इंस्टॉल और अपडेट करने की जानकारी होनी चाहिए, क्योंकि साइबर कैफे में आने वाले लोग कई ऐसी वेबसाइट्स भी खोलते हैं, जिससे सिस्टम में वायरस आ सकते हैं।
फ्रीर्लांंसग करें तो 6 बातों पर दें ध्यान
अगर आप जॉब के साथ-साथ फ्रीलांसिंग करने का मन बनाते हैं तो ऑफिस और फ्रीलांस काम में संतुलन बनाए रखना बेहद जरूरी है। इस दौरान ध्यान रखें ये 6 महत्वपूर्ण बातें:
महत्वपूर्ण लोगों को भरोसे में लें : काम के साथ फ्रीलांसिंग करने के लिए अपनी कंपनी के एचआर से स्वीकृति ले सकते हैं, साथ ही महत्वपूर्ण लोगों को भी इस बारे में अवगत कराएं, ताकि कोई और इस बारे में गलत तरीके से बात न फैलाए।
फ्रीलांसिंग का समय निर्धारित हो : फ्रीलांसिंग के लिए एक निश्चित समय तय कर लें ताकि आपका ऑफिस का काम प्रभावित न हो। फ्रीलांस काम मैसेज या मेल पर मंगाएं और ऑफिस में इस काम से जुड़े फोन कॉल के लिए भी सख्त मनाही रखें।
ऑफिस के समय में फ्रीलांस न करें: जब ऑफिस का टाइम हो तो अपनी कार्यक्षमता बढ़ाने पर ध्यान दें। फ्रीलांस काम ऑफिस के समय के बाद करें।
समय प्रबंधन: ऑफिस और फ्रीलांस काम में वरीयता का ध्यान रखें। अगर फ्रीलांस काम की वरीयता है तो उसे उसी दिन खत्म करने का प्रयास करें। फुर्सत के समय में फ्रीलांसिंग कर सकते हैं। 
क्षमता के अनुसार लें फ्रीलांस काम : जितना संभव हो पाए, उतना ही फ्रीलांस काम लें।
रहें सतर्क : अगर अपनी कंपनी का फ्रीलांस काम लेते हैं तो अत्यधिक सतर्क रहें। अपने नियमित काम के बाद बचे हुए समय में वह काम करें। जिस काम के लिए वायदा करें, उसे पूरा भी करें। कंपनी में फ्रीलांसिंग करने पर फीडबैक लेना आसान है।

Thursday, 30 August 2018


श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी जीवन परिचय




जन्मः 25 दिसंबर 1924, ग्वालियर, मध्यप्रदेश
मृत्यु: अगस्त 16, 2018 (उम्र 93),  एम्स हॉस्पिटल, नई दिल्ली, भारत
कार्य/पदराजनेता, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री
सम्मान: भारत रत्न, 2015
अटल बिहारी वाजपेयी भारत के पूर्व प्रधानमंत्री थे। वे जीवन भर राजनीति में सक्रिय रहे। लाल नेहरू के बाद अटल बिहारी बाजपेयी ही एकमात्र ऐसे नेता  थे, जिन्होंने लगातार तीन बार प्रधानमंत्री पद संभाला। वह भारत के सबसे सम्माननीय और प्रेरक राजनीतिज्ञों में से एक रहे। वाजपेयी ने कई विभिन्न परिषदों और संगठनों के सदस्य के तौर पर भी अपनी सेवाएं दीं। वाजपेयी एक प्रभावशाली कवि और प्रखर वक्ता थे। एक नेता के तौर पर वे अपनी साफ छवि, लोकतांत्रिक, और उदार विचारों के लिये जाने गए । सन 2015 मे उन्हे भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित किया गया।
प्रारंभिक जीवन
अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म मध्यप्रदेश के ग्वालियर में 25 दिसंबर 1924 को हुआ। वह अपने पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी और माता कृष्णा देवी के सात बच्चों में से एक थे। उनके पिता एक विद्वान और स्कूल शिक्षक थे। अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए वाजपेयी लक्ष्मीबाई कॉलेज और कानपुर में डीएवी कॉलेज चले गए। यहां से उन्होंने अर्थशास्त्र विषय में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की।  आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने लखनऊ से आवेदन भरा लेकिन अपनी पढ़ाई जारी नहीं कर पाए। उन्होंने आर.एस.एस. द्वारा प्रकाशित पत्रिका में बतौर संपादक नौकरी कर ली। हालांकि उन्होंने विवाह नहीं किया लेकिन उन्होंने बी एन कौल की दो बेटियों नमिता और नंदिता को गोद लिया।
कॅरिअर
वाजपेयी की राजनैतिक यात्रा की शुरुआत एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में हुई। 1942 में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में भाग लेने के कारण वह अन्य नेताओं के साथ गिरफ्तार कर लिए गए। इसी समय उनकी मुलाकात श्यामा प्रसाद मुखर्जी से हुई, जो भारतीय जनसंघ यानी बी.जे.एस. के नेता थे। उनके राजनैतिक एजेंडे में वाजपेयी ने सहयोग किया। स्वास्थ्य समस्याओं के चलते मुकर्जी की जल्द ही मृत्यु हो गई और बी.जे.एस. की कमान वाजपेयी ने संभाली और इस संगठन के विचारों और एजेंडे को आगे बढ़ाया। सन 1954 में वह बलरामपुर सीट से संसद सदस्य निर्वाचित हुए। छोटी उम्र के बावजूद वाजपेयी के विस्तृत नजरिए और जानकारी ने उन्हें राजनीति जगत में सम्मान और स्थान दिलाने में मदद की। 1977 में जब मोरारजी देसाई की सरकार बनी, वाजपेयी को विदेश मंत्री बनाया गया। दो वर्ष बाद उन्होंने चीन के साथ संबंधों पर चर्चा करने के लिए वहां की यात्रा की। भारत पाकिस्तान के 1971 के युद्ध के कारण प्रभावित हुए भारत-पाकिस्तान के व्यापारिक रिश्ते को सुधारने के लिए उन्होंने पाकिस्तान की यात्रा कर नई पहल की। जब जनता पार्टी ने आर.एस.एस. पर हमला किया, तब उन्होंने 1979 में मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। सन 1980 में भारतीय जनता पार्टी की नींव रखने की पहल उनके व बीजेएस तथा आरएसएस से आए लालकृष्ण आडवाणी और भैरो सिंह शेखावत जैसे साथियों ने रखी। स्थापना के बाद पहले पांच साल वाजपेयी इस पार्टी के अध्यक्ष रहे।
भारत के प्रधानमंत्री के तौर पर
सन 1996 के लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी को में सत्ता में आने का मौका मिला और अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री चुने गए। लेकिन बहुमत सिद्ध नहीं कर पाने के कारण सरकार गिर गईऔर वाजपेयी को प्रधानमंत्री पद से मात्र 13 दिनों के बाद ही इस्तीफा देना पड़ गया।
सन 1998 चुनाव में बीजेपी एक बार फिर विभिन्न पार्टियों के सहयोग वाला गठबंधन नेशनल डेमोक्रेटिक अलायन्स के साथ सरकार बनाने में सफल रही पर इस बार भी पार्टी सिर्फ 13 महीनों तक ही सत्ता में रह सकी, क्योंकि ऑल इंडिया द्रविड़ मुन्नेत्र काज़गम ने अपना समर्थन सरकार से वापस ले लिया। वाजपेयी के नेतृत्व वाली एन.डी.ए. सरकार ने मई 1998 में राजस्थान के पोखरण में परमाणु परीक्षण कराए।
1999 के लोक सभा चुनावों के बाद नेशनल डेमोक्रेटिक अलायन्स (एन. डी. ए.) को सरकार बनाने में सफलता मिली और अटल बिहारी वाजपेयी एक बार फिर प्रधानमंत्री बने। इस बार सरकार ने अपने पांच साल पूरे किए और ऐसा करने वाली पहली गैर-कांग्रेसी सरकार बनी। सहयोगी पार्टियों के मजबूत समर्थन से वाजपेयी ने आर्थिक सुधार के लिए और निजी क्षेत्र के प्रोत्साहन हेतु कई योजनाएं  शुरू की। उन्होंने औद्योगिक क्षेत्र में राज्यों के दखल को सीमित करने का प्रयास किया। वाजपेयी ने विदेशी निवेश की दिशा में और सूचना तकनीकी के क्षेत्र में शोध को बढ़ावा दिया। उनकी नई नीतियों और विचारों के परिणाम स्वरूप भारतीय अर्थव्यवस्था ने त्वरित विकास हासिल किया। पाकिस्तान और यूएसए के साथ मैत्रीपूर्ण रिश्ते कायम करके उनकी सरकार ने द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत किया। हालाँकि अटल बिहारी वाजपेयी की विदेश नीतियां ज्यादा बदलाव नहीं ला सकीं, फिर भी इन नीतियों को बहुत सराहा गया।
अपने पांच साल पूरे करने के बाद एन.डी.ए. गठबंधन पूरे आत्मविश्वास के साथ अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में 2005 के चुनाव में उतरा पर इस बार कांग्रेस के नेतृत्व में यू.पी.ए. गठबंधन ने सफलता हासिल की और सरकार बनाने में सफल रही।
दिसंबर 2005 में अटल बिहारी वाजपेयी ने सक्रीय राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा कर दी।
व्यक्तिगत जीवन
वाजपेयी समस्त जीवन अविवहित रहे। उन्होंने राजकुमारी कौल और बीएन कौल की बेटी नमिता भट्टाचार्य को गोद लिया था।
 पुरस्कार और सम्मान
  • देश के लिए अपनी अभूतपूर्व सेवाओं के चलते उन्हें वर्ष 1992 में पद्म विभूषण सम्मान से नवाजा गया।
  • 1993 में उन्हें कानपुर विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि का सम्मान प्राप्त हुआ।
  • वर्ष 1994 में अटल बिहारी वाजपेयी को लोकमान्य तिलक अवार्ड से सम्मानित किया गया
  • वर्ष 1994 में पंडित गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार भी प्रदान किया गया।
  • वर्ष 1994 में सर्वश्रेष्ठ सांसद का सम्मान।
  • वर्ष 2015 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, ‘भारत रत्न’ से नवाजा गया।
  • वर्ष 2015 में बांग्लादेश द्वारा ‘लिबरेशन वार अवार्ड’ दिया गया।
टाइमलाइन (जीवन घटनाक्रम)
1924: अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म ग्वालियर शहर में हुआ।
1942: भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया।
1957: पहली बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए।
1980: बीजेएस और आरएसएस के साथियों के साथ मिलकर बीजेपी की स्थापना की।
1992: देश की उन्नति में योगदान के लिए पद्म विभूषण पुरस्कार दिया गया।
1996: पहली बार देश के प्रधानमंत्री बने।
1998: दूसरी बार भी देश के प्रधानमंत्री बने।
1999: तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने और दिल्ली से लाहौर के बीच बस सेवा संचालित कर इतिहास रचा ।
2005: दिसंबर माह में राजनीति से संन्यास ले लिया।
2015: देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, ‘भारत रत्न’ से नवाजा गया।