नीरज चोपड़ा (जन्म 24 दिसंबर, 1997)एक भारतीय ट्रैक और फील्ड एथलीट प्रतिस्पर्धा में भाला फेंकने वाले खिलाड़ी हैं। अंजू बॉबी जॉर्ज के बाद किसी विश्व चैम्पियनशिप स्तर पर एथलेटिक्स में स्वर्ण पदक को जीतने वाले वह दूसरे भारतीय हैं। बायडगोसज्च्ज़, पोलैंड में आयोजित 2016 आइएएएफ U20 विश्व चैंपियनशिप में उन्होंने यह उपलब्धि हासिल की। इस पदक के साथ साथ उन्होंने एक विश्व जूनियर रिकॉर्ड भी स्थापित किया है।
2016 के दक्षिण एशियाई खेलों में उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय रिकॉर्ड की बराबरी करते हुए 82.23 मीटर तक भाला फेंक कर स्वर्ण पदक जीता था। ऐसे प्रदर्शन के बावजूद भी वे 2016 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में स्थान पाने में वह विफल रहे क्योंकि अर्हता प्राप्त करने के लिए अंतिम तिथि 11 जुलाई थी।[2] वह है से खंडरा गांव, पानीपत, हरियाणा , भारत में है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में कोच गैरी गैरी कैल्वर्ट हैं।[3] नीरज ने 85.23 मीटर का भाला फेंककर 2017 एशियाई एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीता।[4]
ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में सम्पन्न हुए 2018 राष्ट्रमण्डल खेलों में उन्होंने 86.47 मीटर भाला फेंककर स्पर्धा का स्वर्ण पदक अपने नाम किया।
भूख के कारण हो जाते थे बेहोश, नीरज चोपड़ा ने कठिनाइयों से ऊपर उठकर देश को दिलाया गोल्ड
नीरज चोपड़ा के गले में एशियाई खेलों का स्वर्ण हार और कंधों पर तिरंगा था। उनके लिए यह बेहद भावुक पल था और इसी भावुकता में वह पुरानी यादों में खो गए। उन्हें वह 2011 के वह दिन याद आ गए जब वह फिटनेस के लिए पानीपत के स्टेडियम में छह सौ मीटर का चक्कर लगा रहे थे और बेहतर डाइट नहीं होने की वजह से वह चक्कर खाकर बेहोश होकर गिर पड़े।
होश आया तो उठे और दौड़ लगाना शुरू कर दी। नीरज खुलासा करते हैं कि शुरूआत में बहुत कठिनाईयां आईं। राज्य स्तर के कंपटीशन में भी उनका मेडल नहीं आता था। वह बहुत निराश होते थे, बावजूद इसके उन्होंने कभी हौसला नहीं छोड़ा। वह लगातार अभ्यास करते रहे और सफलता ने कदम चूमना शुरू कर दिए।
आज भी उनकी सफलता का यही मूल मंत्र है कि वह बेहद कठिन अभ्यास करते हैं। नीरज यहां तक कहते हैं कि अगर शुरूआती दिनों की कठिनाईयां अब उठानी पड़ती तो उन्हें भाले को दूर रखने का फैसला लेना पड़ता। वाकई वह बहुत कठिन दिन थे।
आज भी उनकी सफलता का यही मूल मंत्र है कि वह बेहद कठिन अभ्यास करते हैं। नीरज यहां तक कहते हैं कि अगर शुरूआती दिनों की कठिनाईयां अब उठानी पड़ती तो उन्हें भाले को दूर रखने का फैसला लेना पड़ता। वाकई वह बहुत कठिन दिन थे।
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