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Wednesday, 19 December 2018

स्टीव जॉब्स के जीवन परिचय

कंप्यूटर, लैपटॉप और मोबाइल जगत में स्टीव जॉब्स एक ऐसा नाम जिसने सफलता की हर बुलन्दियो को छुआ अगर स्टीव जॉब्स के खोजो के कारण इन्हें आविष्कारक कहा जाय तो ये गलत नही होगा पढाई के दौरान दोस्त के कमरे पर फर्श पर सोकर जीवन की शुरुआत करने वाले स्टीव जॉब्स का जीवन काफी संघर्षमय रहा तो आईये जानते है
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स्टीव जॉब्स के बारे में कुछ ऐसे महत्वपूर्ण तथ्य ( Steve Jobs Biography) जो उन्हें सफलता के क्षेत्र में एक अलग ही मुकाम हासिल हुआ

स्टीव जॉब्स की जीवनी हिन्दी में

Steve Jobs Biography in Hindi

  1. स्टीव जॉब्स का पूरा नाम स्टीवन पॉल जॉब | Steven Paul Jobs है जिनको पूरी दुनिया एप्पल इंक (Apple Inc.) के सीईओ (CEO) के रूप में सबसे ज्यादा जानती है
  2. स्टीव जॉब्स का जन्म 24 फरवरी 1955 को कैलीफोर्निया के सैनफ्रांसिस्को में हुआ था इनके पिता पॉल रेन्होंल्ड जॉब्स और माता का नाम क्लारा जॉब्स था.
  3. स्टीव जॉब्स की पढाई के लिए इतने पैसे नही थे उन्होंने गर्मियों की छुट्टियों में काम किया करते थे जिसके उनकी आर्थिक स्थिति किसी तरह चल पाती थी
  4. पोर्टलैंड में ग्रेजुएशन के पढाई के दौरान तो उनकी आर्थिक स्थिति इतनी ख़राब थी की उनको खाने के लिए पैसे नही होते थे वे कोक और प्लास्टिक की बोतल को बेचकर किसी तरह खाने का गुजारा करते थे और पढाई के दौरान अपने कॉलेज के कृष्ण मंदिर से मिलने वाले भोजन और प्रसाद से भी गुजारा करते थे और पढाई के दौरान अपने दोस्त के रूम में जमीन पर ही सोते थे
  5. स्टीव जॉब्स ने 1974 में आध्यात्मिक ज्ञान के लिए भारत | India की यात्रा की. इस दौरान उनकी मुलाकात हैड़खन बाबाजी से मुलाकात हुआ जिसके चलते उन्होंने भारत में सात महीने बिताये और फिर बौद्ध धर्म से प्रभावित होकर स्टीव जॉब्स ने बौद्धधर्म को अपना लिया .
  6. भारत से लौटने के के बाद अमेरिका में उन्होंने अपने सारी जीवनशैली को बदल लिया वे पारम्परिक बौद्धधर्म के अनुयायी बन गये
  7. स्टीव जॉब्स के पिता पॉल जो की बढई का काम करते थे स्टीव जॉब्स को इलेक्ट्रानिक्स की प्रारम्भिक ज्ञान और हथौड़ा कैसे चलाते है ये सब ज्ञान उनके पिता से ही उनको प्राप्त हुआ था
  8. सन 1976 में स्टीव वोजनियाक ने मेकिनटोश एप्पल 1 कंप्यूटर का निर्माण किया जब इसको वोजनियाक के इस आविष्कार को स्टीव जॉब्स ने देखा तो इसे बेचने का मन बनाया जिसके लिए दोनों ने मिलकर एप्पल कंप्यूटर का निर्माण करने लगे और अपनी कम्पनी का नाम एप्पल कंप्यूटर कंपनी रखा
  9. एप्पल कंप्यूटर की की गुणवत्ता के कारण के पर्सनल कंप्यूटर बनाने के रूप में एप्पल कंपनी सन 1976 में सबसे बड़ी कम्पनी बन चुकी थी जो की स्टीव जॉब्स और स्टीव वोनियाक के मेहनतो का ही परिणाम था
  10. सन 1978 में माइक स्काट को एप्पल कम्पनी का मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया जिसके बाद सन 1985 में स्टीव जॉब्स और स्टीव वोनियाक ने एप्पल इंक से इस्तीफा से दिया
  11. एप्पल से इस्तीफा के बाद स्टीव जॉब्स ने नेक्स्ट इंक की स्थापना की जिसका मुख्य उद्देश्य सॉफ्टवेर प्रणाली को सबसे विकसित बनाना था जो आगे चलाकर नेक्स्ट इंक को अपने अपने तकनीकी ताकत के रूप में जाना जाता था
  12. सन 1996 में एप्पल की हालत बिगड़ जाने के स्टीव जॉब्स ने नेक्स्ट कंप्यूटर को एप्पल को भेज दिया जिसके बाद एक बार फिर से उनकी एप्पल में उनकी वापसी हुई जो बाद में सन 1997 में एप्पल के सीईओ बन गये
  13. इसके बाद स्टीव जॉब्स ने कंप्यूटर के बाद आईपैड और मोबाइल फोन का भी निर्माण किया जो एप्पल आईपैड | Apple Ipad और एप्पल मोबाइल फोन | Apple Mobile Phone दोनों सबसे ज्यादा सफल रहे जो आज के समय में एप्पल की गुणवत्ता के कारण ही सबको एप्पल के मोबाइल की चाहत सबसे ज्यादा रहती है
  14. सन 2011 में स्टीव जॉब्स ने एप्पल ग्रुप से इस्तीफा दे दिया फिर भी वे एप्पल ग्रुप बोर्ड के अध्यक्ष बने रहे
  15. स्टीव जॉब्स की अति व्यस्तता के कारण ही अपने अपने गंभीर बीमारी कैंसर का इलाज सही ढंग से नहीं करा पाए जिसके चलते कैलीफोर्निया में स्टीव जॉब्स की मृत्यु 5 अक्टूबर 2011 को हो गयी इनकी पूरी जिन्दगी मात्र 56 वर्ष की आयु थी इनकी निधन के शोक पर माइक्रोसॉफ्ट और डिज्नी जैसी बड़ी कंपनियों ने शोकदिवस मनाया और पूरे अमेरिका और उद्योग जगत में इनके निधन का शोक मनाया गया
  16. स्टीव जॉब्स एप्पल कम्पनी के अलावा जॉब्स पिक्चर एनीमेशन स्टूडियोज, दी वाल्ट डिज्नी, नेक्स्ट इंक, पिक्सार में भी बतौर सीईओ और निदेशक के रूप में कार्य किया
  17. स्टीव जॉब्स अपने निधन के पश्चात अपनी पत्नी लारेल और तीन बेटिया और बेटे रीड को इस दुनिया में अकेले छोड़ गये
  18. स्टीव जॉब्स की मेहनत का ही परिणाम था की जो उन्हें उद्योग जगत का सबसे शक्तिशाली पुरुष के रूप में जाना जाता है
  19. स्टीव जॉब्स को पूरी दुनिया सिर्फ इन्हें आविष्कारक और बिजनसमैन के साथ साथ इन्हें प्रेरक और कुशल वक्ता के रूप में भी जाना जाता है
  20. स्टीव जॉब्स Think Different में विश्वास करते थे यानी स्टीव जॉब्स का मानना था की यदि हमे सफलता पाना है खुद की सोच के साथ खुद अकेले आगे बढना होगा यानी आपकी सोच पर आपकी सफलता निर्भर करती है
  21. Stay Hungry Stay Foolish स्टीव जॉब्स का मूलमंत्र था यानी आपकी आगे बढने की भूख कभी शांत न हो और जिसको पूरे करने के लिए आपको मुर्ख भी बनना पड़े तो भी अपनी भूख कभी शांत मत होने देना तभी आप अपने जीवन में आगे जा सकते है
  22. सन 1995 में आयी फिल्म Toy Story में स्टीव जॉब्स ने बतौर कार्यकारी निर्माता का भी काम किया था
  23. स्टीव जॉब्स का मानना था की हमेशा अपने दिल की सुनो और और जो आप सपने देखते हो उसे अपने पूरे दिल से पूरा करने की कोशिश करो तो आपको सफलता की उचाई को जरुर छू सकते है स्टीव जॉब्स के ऐसे महान विचार आम इन्सान को महान बना सकता है
  24. स्टीव जॉब्स की कुछ अलग करने की चाहत ही उन्हें सफलता के उस मुकाम पर पंहुचा दिया उनका मानना था की अगर आप नही कर सकते हो तो उसे मना करना भी सीखो फिर उसे अपने तरीके से करो तो निश्चित ही आप को जो तरीका हो उसमे आप पूरी तरह समर्पित होंगे तो सफलता मिलनी निश्चित है
  25. हारकर भी जो जीतकर दिखा दे उसी को बाजीगर कहते है ऐसा कारनामा स्टीव जॉब्स ने अपनी पूरी जिन्दगी में कई बार दिखाया चाहे एप्पल से पहली बार इस्तीफा देना हो या डूबता हुए एप्पल कम्पनी को फिर से मार्किट में लाने का श्रेय हो हर बार स्टीव जॉब्स ही सबसे आगे आये जिसके कारण स्टीव जॉब्स को उद्योग जगत का बिजनेस टाईकून भी कहा जाता है
स्टीव जॉब्स की सफलता को देखकर बड़े से बड़े सफल उधमी भी आश्चर्यचकित हो जाते है क्यूकी इनके कार्य करने की शैली ही इन्हें अन्य लोगो से अलग से बनाती है स्टीव जॉब्स हमेशा बनाये हुए रास्ते यानि लीक से हटकर काम करना जानते थे
तो यदि आम इन्सान भी स्टीव जॉब्स के जीवन शैली और कार्य करने की क्षमता से प्रेरणा ले तो निश्चित ही सफलता के रास्ते पर चल सकता है

मुंशी प्रेमचन्द का जीवन परिचय 

लेखन एक ऐसी कला है जिसका प्रभाव किसी भी समाज में दूरगामी होता है और हमारे समाज में ऐसे अनेको महापुरुष पैदा है जिनके जो अपनी लेखन शक्ति से समाज की सोच को सकरात्मक दिशा में ले गये ऐसे महानतम महान लेखको में मुंशी प्रेमचन्द का भी नाम आता है जिनके साहित्य और उपन्यास में योगदान को देखते इन्हें ‘’उपन्यास सम्राट’’ भी कहा जाता है

मुंशी प्रेमचन्द का जीवन परिचय 


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मुंशी प्रेमचन्द  ( Munshi Premchand ) का जन्म 31 जुलाई 1880 को भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी शहर ( Varanasi City ) के निकट लमही गाव ( Lamahi Village )में हुआ था इनके पिता का नाम अजायबराय (Ajayabray ) था जो की लमही गाव में ही डाकघर के मुंशी थे और इनकी माता का नाम आनंदी देवी ( Anandi Devi ) था मुंशी प्रेमचन्द का वास्तविक नाम धनपतराय श्रीवास्तव ( Dhanpatray Shrivastava ) था लेकिन इन्हें मुंशी प्रेमचन्द और नवाब राय ( Navab Ray ) के नाम से ज्यादा जाना जाता है
प्रेमचन्द का बचपन काफी कष्टमय बिता महज सात वर्ष पूरा करते करते ही इनकी माता का देहांत हो गया तत्पश्चात इनके पिता की नौकरी गोरखपुर (Gorakhpur ) में हो गया जहा पर इनके पिता ने दूसरी शादी कर ली लेकिन कभी भी प्रेमचन्द को अपनी सौतेली माँ से अपने माँ जैसा प्यार नही मिला और फिर चौदह साल की उम्र में इनके पिताजी का भी देहांत हो गया इस तरह इनके बचपन में इनके उपर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा
और फिर पन्द्रह वर्ष की आयु में इनका विवाह हो गया जो की सफल नही हुआ इसके बाद आर्य समाज के प्रभाव में आने के बाद इन्होने विधवा विवाह का समर्थन भी किया और फिर इन्होने शिवरानी देवी ( Shivrani Devi ) के साथ किया जिससे इनकी तीन संताने हुई जिनके बड़े बेटे का नाम श्रीपतराय ( Shripatray ), अमृत राय (Amrit Ray) और बेटी कमला देवी (Kamla Devi ) था

बचपन से ही लिखने का शौक रखने वाले प्रेमचन्द के जीवन में अनेको प्रकार के कठिनाईयों का सामना करना पड़ा लेकिन उन्होंने कभी हार नही मानी और अनेक प्रकार के कालजयी रचना की जो की आधुनिक हिंदी की सर्वश्रेष्ट रचना साबित हुई, जीवन के आखिरी क्षणों में भी इन्होने अपना लेखन कार्य जारी रखा लेकिन बीमारी की वजह से 8 अक्टूबर 1936 को इनकी मृत्यु हो गयी जिसके कारण इनका आखिरी उपन्यास मंगलसुत्र तो पूरा नही हो पाया जिसे बाद में इनके पुत्र अमृतराय ने इस उपन्यास को पूरा किया इस तरह पूरी जिन्दगी हिंदी और उर्दू लेखन को समर्पित करने वाले प्रेमचन्द सबके दिलो में एक गहरी छाप छोड़ गये जो की आज भी इनके द्वारा लिखे गये कहानिया (Premchand Stories) का जनमानस कायल है

प्रेमचन्द के लेखन कार्य

प्रेमचन्द (Premchand ) को आधुनिक हिंदी कहानी के जनक माने जाते है उनके लेखन की पहली शुरुआत 1901 में शुरू हुआ, उनकी पहली कहानी की शुरुआत 1907 में हुआ हिंदी और उर्दू भाषा पर तो उनका विशेष अधिकार था प्रेमचन्द के कार्यो के कारण ही इन्हें हिंदी आधुनिक युग का प्रवर्तक भी कहा जाता है प्रेमचन्द के कहानी संग्रह सोजे वतन यानि देश का दर्द 1908 में प्रस्तुत हुआ जो  की देशभक्ति से प्रेरित था जिसके कारण अंग्रेज भड़क गये और और उनके इस प्रकाशन पर रोक लगा दिया गया लेकिन प्रेमचन्द जी देशभक्ति के भावना से ओतप्रोत थे और उन्होंने अपना नाम बदलकर लेखन कार्य जारी रखा यही से उन्हें दयानारायण निगम ने उन्हें ‘प्रेमचन्द’ के नाम से संबोंधित किया अब नवाबराय ‘प्रेमचन्द’ के रूप में जाने लगे फिर यही से धनपतराय हिंदी लेखको में प्रेमचन्द के नाम से प्रसिद्द हुए

बचपन से ही वकील बनने की चाहत रखने वाले प्रेमचन्द कभी भी अपनी गरीबी से अपनी साहित्यिक रूचि को पीछे नही छोड़ा बल्कि जैसे जैसे जीवन की उम्र के पड़ाव को पार करते जा रहे है उनकी लेखनी और साहित्य के प्रति समर्पण भी बढ़ता जा रहा था अंग्रेजो के अत्याचार से उस समय पूरा देश दुखी था और गांधीजी के आह्वान पर उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी भी छोड़ दी और 1930 में बनारस शहर से अपनी मासिक पत्रिका हंस की शुरुआत किया इसके बाद 1934 में वे मुंबई चले गये जहा पर उन्होंने फिल्म ‘मजदूर’ के लिए कहानी लिखा जो 1934 में भारतीय सिनेमा में प्रदर्शित हुआ लेकिन प्रेमचन्द को मुंबई की शहरी जीवन उन्हें पसंद नही आ रहा था जिसके चलते वे सिनेटोन कम्पनी से लेखक के रूप में नाता तोड़कर वे वापस अपने शहर बनारस को लौट आये
प्रेमचन्द के पहले भारतीय लेखन शैली पौराणिक धार्मिक और काल्पनिक हुआ करती थी लेकिन प्रेमचन्द ने यथार्थ और तत्कालीन समाज के पल रही कुरूतियो के खिलाफ अपनी लेखनी चलायी जो की उनकी कहानी और उपन्यासों में सजीव देखने को मिलता है प्रेमचन्द की कहानिया इतनी सजीव होती थी की उन्हें पढ़कर ऐसा लगता है की उन कहानियो में लिखी गयी कथाये हमारे आसपास की ही प्रतीत होती है

प्रेमचन्द की कृतिया

प्रेमचन्द ने अपना पूरा जीवन लेखन के प्रति समर्पित किया था प्रेमचन्द ने अपने जीवन में करीब तीन सौ से अधिक कहानिया ( Premchand Stories ), लगभग 15 उपन्यास, 3 नाटक, 7 से अधिक बाल पुस्तके और अनेक पत्र पत्रिकाओ का सम्पादन किया जो की सभी रचनाये अपने आप में अद्भुत और जनमानस पर अमिट छाप छोडती है

प्रेमचन्द के उपन्यासों की प्रसिद्धि इतनी अधिक हुई की उनके प्रसिद्ध उपन्यासों गोदान, कर्मभूमि, गबन, रंगभूमि पर हिंदी फिल्मे भी बन चुकी है

प्रेमचन्द के उपन्यास

गोदान ( Godan ) जो की 1936 में प्रकाशित हुआ

कर्मभूमि ( Karmbhumi )जो की 1932 में प्रकाशित हुआ
निर्मला (Nirmala ) जो की 1925 में प्रकाशित हुआ
कायाकल्प ( Kayakalp ) जो की 1927 में प्रकाशित हुआ
रंगभूमि ( Rangbhoomi )जो की 1925 में प्रकाशित हुआ
सेवासदन ( Sevasadan ) जो की 1918 में प्रकाशित हुआ
गबन (Gaban ) जो की 1928 में प्रकाशित हुआ

प्रेमचन्द की अमर कहानिया


नमक का दरोगा ( Namak Ka Daroga )
दो बैलो की कथा ( Do Bailo Ki Katha )
पूस की रात ( Poos Ki Raat )
पंच परमेश्वर (Panch Parmeshwar )
माता का हृदय ( Mata Ka Hriday )
नरक का मार्ग ( Narak Ka Marg )
वफ़ा का खंजर ( Wafa Ka Khanjar )
पुत्र प्रेम ( Putra Prem )
घमंड का पुतला ( Ghamand Ka Putala )
बंद दरवाजा ( Band Darwaja )
कायापलट ( Kayapalat )
कर्मो का फल ( Karmo Ka Fal )
कफन (kafan )
बड़े घर की बेटी ( Bade Ghar Ki Beti )
राष्ट्र का सेवक ( Rashtra Ka Sevak )
ईदगाह (Eidgaah)

मंदिर और मस्जिद ( Mandir Aur Masjid )
प्रेम सूत्र ( Prem Sutra )
माँ ( Maa )
वरदान ( Vardaan )
काशी में आगमन ( kashi me Aagman )
बेटो वाली विधवा ( Beto wali Vidhwa )
सभ्यता का रहस्य ( Sabhyata Ka Rahasya )
अगर प्रेमचन्द के कृतियों का हम सभी अध्यन करते है तो हमारे समाज में पनपे अनेक बुराईयों, गरीबी, कुरूतियो और अनेक प्रकार के समस्याओ का सजीव दर्शन हो जाता है प्रेमचन्द की कृतियों के सम्मान में इनके जन्मदिन के अवसर पर 31 जुलाई 1980 को भारतीय डाकघर ने डाक टिकट जारी किया था और 125वि जन्मशती के अवसर पर भारत सरकार ने इनके गोरखपुर स्कूल में प्रेमचन्द साहित्य संस्थान की स्थापना की गयी प्रेमचन्द की प्रसिद्धि इसी बात से लगाया जा सकता है की उनके द्वारा प्रकाशित लेखो को उर्दू, चीनी और रुसी भाषाओ में भी प्रकाशित की गयी जो की इनकी कृतिया विदेशो में भी काफी लोकप्रिय हुई है
प्रेमचन्द अपने जीवन में हिंदी साहित्य के प्रति पूरी तरह से समर्पण रहे उनका मानना था की यदि समाज को सच का आईना दिखाना है तो लेखन ही सबसे बड़ा सहारा है जो राजनितिक से भी आगे चलकर पूरे जनमानस को एक नया रास्ता दिखाती है प्रेमचन्द के हिंदी साहित्य में दिए गये योगदान को देखते हुए भारतीय साहित्य का ध्रुवतारा माना जाता है जो की आज भी भारतीय जनमानस के मन पर आज भी प्रकाशवान है मुंशी प्रेमचन्द चाहे आज हमारे बीच में नही है लेकिन उनके द्वारा दिखाए गये रास्ते जो की कहानियो और कृतियों के माध्यम से आज भी सबके बीच में जीवित है और हम सभी को जीवन जीने की राह सिखाते है

महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन की जीवनी

अक्सर हम सभी के मुह से यह कहते हुए सुना जाता है की हमारी गणित बहुत ही कमजोर है ऐसा कहकर कही न कही हम गणित से पीछा छुड़ाना चाहते है ऐसा क्यू होता है की हम इतनी आसानी से कह देते है क्यूकी जब ऐसा हम कहते है तो कही न कही हम सभी के दिमाग में ये बात बैठ जाती है की ये हमसे नही हो सकता है और फिर हम सभी अपने दिमाग पर उतना जोर भी नही डालना चाहते है जिससे की हमे गणित पढने से छुटकारा मिल जाये
लेकिन ध्यान देने वाली बात है की हमारा पूरा जीवन ही जोड़ घटाव में लगा रहता है लेकिन क्या आप जानते है की जो महान होते है उनके आगे चाहे कितनी भी परेशानी क्यू न आये वे अपने लक्ष्य को कभी नही छोड़ते है ऐसे महान लोगो से हमारे देश भारत का इतिहास भरा पड़ा है
इनमे से एक विलक्षण प्रतिभा और अद्भुत योग्यता के धनी श्रीनिवास रामानुजन | Srinivasa Ramanujan in Hindi का भी नाम आता है जिनकी पढाई महज 12 वी कक्षा में फेल हो जाने के कारण उनके स्कूल की पढाई छुट गयी और फिर भी 20वी सदी में अपने गणित के 3900 समीकरणों के बदौलत पूरी दुनिया में भारत का नाम रोशन किया जो की अपने आप में महज 33 वर्ष के जीवनकाल में अद्भुत और अकल्पनीय है
तो आईये जानते है श्रीनिवास रामानुजन | Indian Mathematician Srinivasa Ramanujan की जीवन से जुडी जानकारियों के बारे में

श्रीनिवास रामानुजन का जीवन परिचय

पूरा नाम :- श्रीनिवास रामानुजन् अय्यंगर | Srinivasa Ramanujan Iyengar

जन्मतिथि:- 22 दिसम्बर 1887 
माता :- कोमलताम्मल
पिता :- श्रीनिवास अय्यंगर 
पत्नी :- जानकी 
कार्यक्षेत्र :- गणित 
मृत्यु :- 26 अप्रैल 1920 (महज 33 वर्ष की आयु में निधन)
श्रीनिवास रामानुजन  का पूरा नाम श्रीनिवास रामानुजन् अय्यंगर | Srinivasa Ramanujan Iyengar था लेकिन ये रामानुजन | Ramanujan  के नाम से सबसे अधिक जाने जाते है इनके पिताजी का नाम श्रीनिवास अय्यंगर और माता का नाम कोमलताम्मल था इनके माता पिता का परिवार ब्राह्मण परिवार से थे इनका जन्म 22 दिसम्बर 1887 को भारत के तमिलनाडु राज्य के कोयम्बटूर में इरोड नामक में हुआ था
इनका बचपन मुख्यत कुंभकोणम में बिता, और कुंभकोणम  को प्राचीन मंदिरों के लिए जाना जाता है इनके पिताजी साड़ी के एक दुकान में क्लर्क थे और दुकान के बहीखातो का हिसाब रखते थे और साथ में अपनी परिवार के आजीवका के लिए वेदों का पाठ भी किया करते थे जबकि इनकी माता गृहणी के साथ साथ पास के मंदिर की गायिका भी थी

श्रीनिवास रामानुजन का प्रारम्भिक जीवन

श्रीनिवास रामानुजन का बचपन अन्य बालको जैसा सामान्य नही थी तीन वर्ष की आयु हो जाने पर भी रामानुजन बोल नही पाते थे जिसके कारण इनके माता पिता को चिंता होने लगी थी थी की कही रामानुजन गूंगे तो नही है लेकिन रामानुजन बचपन से विलक्षण प्रतिभा के धनी थे और इनकी प्रतिभा इनकी उम्र की कभी मोहताज नही हुई रामानुजन भले ही 33 वर्ष का जीवन जिया लेकिन अपने जीवन की शुरुआत ही गणित प्रेम से ही किया वो कहा जाता है न पूत के पाँव पालने में ही दिख जाते है ये कहावत रामानुजन पर बिलकुल फिट बैठती है

रामानुजन की प्रारम्भिक शिक्षा तमिल भाषा से शुरुआत हुई शुरू में तो इनका मन पढाई में नही लगता था फिर आगे चलकर प्राइमरी परीक्षा में अपने पूरे जिले में पहला स्थान प्राप्त किया फिर आगे की पढाई जारी रखने के लिए पहली बार उच्च माध्मिक स्कूल में गये जहा से इनकी गणित की पढाई की शुरुआत हुई
रामानुजन को बचपन से ही प्रश्न पूछने का शौक था वे और वे कभी कभी ऐसा प्रश्न पूछते थे की सभी को अटपटे लगते थे लेकिन रामानुजन की यही जिज्ञासा थी जिसे वे हर हाल में अपने मन में उठने वाले प्रश्नों का उत्तर जानना चाहते थे वे अपने अध्यापको से पूछते थे की इस संसार का पहला इन्सान कौन था, आकाश और पृथ्वी के बीच की दुरी कितनी है समुन्द्र की कितना गहरा और कितना बड़ा है ऐसे प्रश्न सुनकर इनके अध्यापक का दिमाग भी चकरा जाता था
”एक बार की बात है इनके अध्यापक कक्षा में पढ़ा रहे थे और छात्रो को बताया की अगर किसी भी संख्या को उसी संख्या से भाग दे तो उसका उत्तर एक आएगा ऐसा सुनकर सभी छात्र तो संतुस्ट हो गये लेकिन रामानुजन तुरंत खड़े होकर अपने अध्यापक से पुछा की अगर गुरूजी शून्य को भी शून्य से भाग से भाग दे तो क्या उत्तर एक ही आएगा ऐसा सुनकर उनके अध्यापक का दिमाग चकरा गया और रामानुजन के इस सवाल का कोई भी जवाब उनके पास नही था”
रामानुजन का गणित के प्रति ऐसी दीवानगी थी की एक बार प्रारभिक कक्षा में इनके अध्यापक ने सभी छात्रों को एक से लेकर 100 तक की संख्याओ का योग पूछा और इसके उत्तर के लिए आधा घंटे का समय दिया लेकिन लगभग 10 मिनट का ही समय बिता था की रामानुजन अपने उत्तर को लेकर जाच कराने अपने अध्यापक के पास पहुच गये जब इनके अध्यापक ने इनके उत्तर की जाच की तो उत्तर सही पाया
तो अध्यापक के पूछने पर अपने द्वारा बनाये गये सूत्र को बताया जिसको देखकर इनके अध्यापक भी दंग रह गये थे और जब इनके अध्यापक ने पुछा की तुमने यह सूत्र कहा से सिखा तो रामानुजन ने बताया की ये तो गणित के किताबो को पढकर खुद से विकसित किया है जिससे इनकी विलक्षण प्रतिभा को देखकर इनके अध्यापक के मुह से निकल पड़ा की जरुर रामानुजन एक दिन गणित में भारत का नाम पूरे विश्व में रोशन करेगा जो आगे चलकर सही साबित हुआ

रामानुजन का अन्य विषयों को छोड़कर गणित के प्रति ऐसी दीवानगी थी की अपने घर पर रहने वाले दो किराये के दो विद्यार्थियों के गणित के प्रश्न खुद ही हल कर देते थे जिसे कोई भी सुनता आश्चर्यचकित रह जाता था. रामानुजन बहुत ही सौम्य और मिलनसार थे कोई चाहकर भी इनसे इनको नजरअंदाज नही कर सकता था वे अक्सर पाने साथियों को गणित की सवालो को पहेलियो के रूप में पूछते थे और इस तरह अपने साथियों का मनोरंजन के साथ साथ उनको गणित की तार्किक रूप में उसकी व्याख्या भी करते थे
रामानुजन जब सातवी कक्षा में थे तो अपने पास के रहने वाले बीए के छात्र को गणित पढ़ाते थे और रामानुजन की प्रतिभा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की मात्र तेरह वर्ष की आयु में ही लोनी द्वारा कृत प्रसिद्द Trigonometry को हल कर दिया था जिसको हल करने के लिए बड़े से बड़े विद्वान भी असफल हो जाते थे और 16 वर्ष की आयु में G. S. Carr. द्वारा कृत “A Synopsis of Elementary Results in Pure and Applied Mathematics” की 5000 से अधिक प्रमेयो को प्रमाणित और सिद्ध करके दिखाया था
रामानुजन गणित में इतने अधिक पढाई करते थे की अन्य विषयों पर थोडा सा भी ध्यान नही दे पाते थे जिसके कारण ग्यारहवी कक्षा में गणित में टॉप किये जबकि अन्य सभी विषयों में फेल हो चुके थे जिसके कारण इनकी कॉलेज की पढाई छुट गयी और जिसके कारण इनको मिलने वाली छात्रवृति भी बंद हो गयी
जिसके बाद इनका समय बहुत ही कठिन दौर से गुजरा और अपने घर की आजीविका के लिए छात्रो को ट्यूशन तथा खाते बही की हिसाब करने की नौकरी करने लगे जिसके कारण 1907 में दिए बारहवीं परीक्षा में भी पूर्ण रूप से फेल हो चुके थे और जिसके चलते इनका पढाई से नाता टूट गया

रामानुजन का संघर्षमय जीवन

जब रामानुजन का पढाई से पूरी तरह नाता टूट जाने के बाद आने वाले पाच साल इनके जीवन के लिए बहुत ही संघर्षमय था इस समय हमारा देश भारत अंग्रेजो के अधीनता में था चारो तरफ परतंत्रता की बेडियो में जकड़े भारत में कही भी न रोजगार के अवसर थे और न ही लोगो के जीवन जीने के लिए कोई उद्देश्य था

हर कोई बस अपने देश भारत को आजाद देखना चाहता था ऐसे में रामानुजन के पास भी न कोई नौकरी थी और न ही नौकरी पाने के लिए कोई बड़ी डिग्री जिसकी चिंता से रामानुजन का स्वास्थ्य दिन पर दिन बिगड़ता जा रहा था जिसके चलते डाक्टरों ने इन्हें घर जाकर आराम करने का सलाह दिए ऐसे में रामानुजन का गणित के प्रति प्रेम ही उन्हें अपने जीवन में आगे बढने की प्रेरणा दिया
सन 1908 में इनके माता-पिता ने रामानुजन का विवाह जानकी नामक कन्या से कर दिया जिसके कारण रामानुजन पर अब पारिवारिक बोझ भी बढ़ गया जिसके कारण इनकी गणित से दुरी बढ़ गयी और फिर नौकरी की तलाश में इन्हें मद्रास भी गये लेकिन इंटर की परीक्षा में अनुतीर्ण होने के कारण उन्हें नौकरी नही मिला.
इसके बाद नौकरी की तलाश में कही जाते अपने साथ अपने गणित के सारे किये हुए कार्य जो की रजिस्टर में होते थे दिखाते थे और फिर नौकरी की तलाश में इनकी मुलाकात डिप्टी कलेक्टर श्री वी. रामास्वामी अय्यर से हुआ जो की वे भी गणित के बहुत ही बड़े विद्वान् थे जो की रामानुजन की प्रतिभा को पहचान गये और फिर रामास्वामी अय्यर ने रामानुजन के लिए 25 रूपये की मासिक तनख्वाह के रूप में इन्हें छात्रवृत्ति की व्यवस्था किया जहा पर रामानुजन ने अपने प्रथम शोधपत्र  “बरनौली संख्याओं के कुछ गुण”  शोध पत्र जर्नल ऑफ इंडियन मैथेमेटिकल सोसाइटी में प्रकाशित हुआ था
और फिर सौभाग्य से एक साल पूरा होते ही रामानुजन को मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में इन्हें लेखाबही के हिसाब रखने के लिए क्लर्क की नौकरी मिल गयी और फिर से रामानुजन अपने गणित के प्रति प्रेम के लिए समय मिलने लगा और फिर इस प्रकार रामानुजन ने अनेक नये नये गणित के सूत्रों को लिखना प्रारम्भ शुरू किया
और फिर इसी उपरांत रामानुजन की मुलाकात पत्रव्यव्हार के चलते विश्व प्रसिद्द गणितज्ञ प्रोफेसर हार्डी से हुआ पहले तो रामानुजन द्वारा भेजे गये बीजगणित के प्रमेयो को प्रोफेसर हार्डी भी पूरी तरह समझ नही पा रहे थे लेकिन जब प्रोफेसर हार्डी ने अपने शिष्यों से रामानुजन के बारे में जाना तो प्रोफेसर हार्डी भी रामानुजन के प्रतिभा के कायल हो गये और पहली बार प्रोफेसर हार्डी ने रामानुजन को अपने विशिष्ट व्यक्तियों के लिए लिस्ट में 100 में से 100 अंक दिए थे शायद यह पहला मौका था जब कोई गुरु अपने शिष्य का कायल हो गया था
यहाँ तक की प्रोफेसर हार्डी भी खुद कहते थे की आजतक मैंने लोगो को गणित के बारे में सिखाया है और मेरी जिन्दगी में पहली बार मै अपने शिष्य रामानुजन से मै सीख रहा हु और फिर प्रोफेसर हार्डी के कहने पर पहली बार रामानुजन ने पहली बार लन्दन की धरती पर कदम रखा और तब तक रामानुजन 3000 से अधिक प्रमेयो को अपने रजिस्टर में लिख चुके थे लेकिन अपने शर्मीले और शांत स्वाभाव के कारण लंदन में खुद को फिट नही पा रहे थे साथ में रामानुजन को वहां का वातावरण भी उन्हें रास नही आया
जिसके कारण उन्हें क्षयरोग हो गया और उस ज़माने में इस रोग की दवा नही होती थी जिसके कारण कुछ दिनों तक वहां रहे फिर इसी उपरांत उन्हें कैंब्रिज विश्वविद्यालय द्वारा बी.ए. की डिग्री भी हासिल हुई और इस दौरान प्रोफेसर हार्डी के साथ मिलकर गणित के अनेक नये सूत्रों की खोज किया
फिर अपने बीमारी के चलते वे 5 साल उपरांत वे इंग्लैंड से भारत लौट आये और फिर भी रामानुजन का स्वास्थ्य दिन पर दिन ख़राब होता जा रहा था और इसी दौरान रामानुजन ने मॉक थीटा फंक्शन पर एक उच्च स्तरीय शोधपत्र भी लिखा जिसका उपयोग वरन गणित नही चिकित्साविज्ञान में कैंसर को समझने के लिए भी किया जाता है जो की अपने आप में अद्भुत और अकल्पनीय भी है
लेकिन जीवन शुरू हुआ है तो इसका अंत भी निश्चित है जिसका सामना हर किसी को करना पड़ता है लेकिन किसी ने भी नही सोचा था की मात्र 33 वर्ष की आयु में रामानुजन 26 अप्रैल 1920 को इस दुनिया को छोड़ जायेगे लेकिन रामानुजन का जीवन बस इतना ही था लेकिन उस समय जो भी रामानुजन के मृत्यु के बारे में सुना स्तब्ध सा रह गया शायद माँ सरस्वती के इस लाल का जीवन शायद इतना ही था और रामानुजन की मृत्यु गणित क्षेत्र में एक महान क्षति थी जिसकी भरपाई करना मुश्किल है
श्रीनिवास रामानुजन के गणित में किये गये कार्यो के प्रति जितना सम्मान दिया जाय वो कम ही है रामानुजन एक ऐसे पहले व्यक्ति थे जो अंग्रेजो द्वारा रॉयल सोसाइटी का फेलो भी नामित किया गया था जो उस ज़माने में किसी भारतीय को ऐसा सम्मान मिलना भी अपने आप में बड़ी बात थी इसी कड़ी में गणितज्ञो के सम्मान में रामानुजन पुरष्कार और रामानुजन इंस्टीट्यूट की भी स्थापना की गयी है और भारत सरकार ने रामानुजन को भारत रत्न के पुरष्कार से भी नवाजा है और गूगल ने भी इनके 125 वी जन्मदिन पर अपने Homepage पर स्थान दिया था और 2014 में इनके जीवन पर आधारित तमिल फिल्म ‘रामानुजन का जीवन’ भी बनाया गया है
श्रीनिवास रामानुजन की मात्र 33 वर्ष थी लेकिन इनका जीवन गणित के प्रति पूरी तरह से समर्पण रहा इनकी जीवन से हमे यही शिक्षा मिलती है जीवन लम्बा हो या छोटा, अगर खुद पर विश्वास हो तो आपके आगे चाहे कितनी भी असफलता क्यू न आये लेकिन आपको अपने जीवन में जो हासिल करना चाहते है उसे जरुर पा सकते है इसके लिए आपके इरादों को मजबूत होना चाहिए और जिनके इरादे मजबूत होते है उन्हें फिर कोई नही रोक सकता है ऐसा श्रीनिवास रामानुजन ने अपने जीवन से सिद्ध करके दिखाया है जो की अपने आप में अद्भुत और अकल्पनीय है

दुनिया के सबसे खुश व्यक्ति मैथ्यू रिकार्ड

जरा सोचिये दुनिया का सबसे प्रसन्न और ख़ुशी इन्सान कौन हो सकता है थोडा दिमाग पर जोर डालेगे तो हम ये सोचेगे की अरे जिसके पास बहुत सारा पैसा और सुख साधन होगा वही सबसे प्रसन्न और ख़ुशी इन्सान हो सकता है तो फिर से एक बार जरा गौर से सोचिये की क्या दुनिया का सबसे धनी व्यक्ति ही सबसे प्रसन्न और ख़ुशी इन्सान है तो सोचने पर पता चलेगा की अरे धनी व्यक्ति के पास तो पैसा होता है लेकिन उसके पास तो समय ही नही है की कही दो मिनट खाली बैठकर सुख का अनुभव कर ले क्यूकी अगर वह ऐसा करता है तो उसके एक सेकंड में करोडो रूपये बर्बाद हो सकते है क्यूकी उस धनी व्यक्ति का सारा वक़्त ही पैसा कमाने में खर्च कर देता है तो भला वह व्यक्ति कैसे सबसे प्रसन्न और ख़ुशी इन्सान हुआ और यदि पैसो से सुख और प्रसन्नता खरीदी जा सकती तो दुनिया के बड़े बड़े उद्योगपति सबसे प्रसन्न और ख़ुशी इन्सान होते लेकिन ऐसा नही है क्यूकी जैसा की कहा भी गया है |


“ धन से सुख के साधन ख़रीदे जा सकते है लेकिन सुख नही और पैसो से बिस्तर ख़रीदे जा सकते है लेकिन नीद नही ”
जी जा यह एक सच है की इन्सान दिन पर दिन भौतिक सुखो की चाह में मन की शांति और प्रसन्नता को भूलता जा रहा है तो भला ऐसा इन्सान कैसे प्रसन्न और ख़ुशी इन्सान हो सकता है
लेकिन दुनिया में एक ऐसा भी व्यक्ति है जो दुनिया का सबसे प्रसन्न और ख़ुशी इन्सान है उस व्यक्ति का नाम है मैथ्यु रिकर्ड / Matthieu Ricard, यदि आपको फिर भी विश्वास नही है तो आप Google में सर्च कर सकते है तो सर्च में मैथ्यु रिकर्ड / Matthieu Ricard का नाम सबसे पहले आएगा और यही नही वैज्ञानिको ने भी मैथ्यु रिकर्ड / Matthieu Ricard को दुनिया का सबसे प्रसन्न और ख़ुशी इन्सान माना है और यूनिवर्सिटी ऑफ विसकॉन्सिन के न्‍यूरोसाइंटिस्‍ट ने 12 साल तक लगातार उनके दिमाग का उस वक्त अध्‍ययन किया जब मैथ्यु रिकर्ड ध्यान की अवस्था में होते है इस दौरान न्‍यूरोसाइंटिस्‍ट डेविडसन ने मैथ्यु के सिर पर 256 सेंसर्स लगाये थे और जाच के दौरान पाया की ध्यान के समय इनके मस्तिक से अलौकिक रूप से प्रकाश निकलता हुआ दिखाई देता है
तो आखिर मैथ्यु रिकर्ड | Matthieu Ricard है कौन आईये इनके बारे में जानते है

मैथ्यु रिकर्ड का जीवन परिचय

मैथ्‍यु रिकर्ड | Matthieu Ricard मूलतः फ्रांस के निवासी है इनका जन्म 15 फरवरी 1946 को हुआ था इनके पिता फ़्राँस्वा रेवेल / Jean-François Revel जो की एक प्रख्यात प्रख्‍यात फ्रेंच फिलॉसफर थे और माता Nun Yahne Le Toumelin / नान याहने ले तुमेलिन जो अमूर्तवादी चित्रकार थी और तिब्बती बौद्ध से तालुक्क रखती थी जिसके कारण मैथ्‍यु रिकर्ड पर भी माता का आध्यात्मिक प्रभाव देखने को मिलता है पेशे से वैज्ञानिक पढाई करने वाले मैथ्‍यु रिकर्ड 1972 में डॉक्टरेट थीसिस में पीएच.डी की पढाई पूरी की और उन्हें फ्रेंच नोबेल पुरस्कार विजेता फ़्राँस्वा याकूब के तहत पाश्चर संस्थान में आणविक आनुवंशिकी में डिग्री प्राप्त किया और यही से 1972 में पढाई के बाद वे आगे की जीवन में शांति की तलाश में भारत चले आये और वर्तमान में वे नेपाल में वौद्धनाथ स्तुपाके नजदिक शेचेन गुम्बामे रहेते हैँ.

मैथ्यु रिकर्ड के दिलचस्प पहलु

जब जब इन्सान अपने दुखो से परेशान होकर या शांति और सुख की तलाश में इधर उधर भटकता है उसे कही न कही आध्यात्मिक सुख और शांति के तलाश में भारत आना ही पड़ता है ऐसा मैथ्यु रिकर्ड के साथ भी हुआ वे अपनी पढाई पूरी करने के बाद मैथ्‍यु रिकर्ड जब पहली बार भारत की धरती दार्जिलिंग पर कदम रखा तो उनकी मुलाकात उनके गुरु कांगयूर से हुई थी गुरु कांगयूर से ही उन्होंने खुश रहने का गुरुमंत्र पाया और जब उनके गुरु की मृत्यु 1991 में हुई थी तब जाकर मैथ्यु रिकर्ड दुखी हुए थे यानी गुरु से पहले मुलाकात 1972 से 1991 के बीच मैथ्यु रिकर्ड एक बार भी दुखी नही हुए थे फिर अपने गुरु के बताये राह पर चलते हुए मैथ्यु रिकर्ड अब तक गुरु की मृत्यु के बाद कभी दुखी नही हुए है जो की वैज्ञानिको ने भी माना है

अमेरिका की विस्कॉन्सिन यूनिवर्सिटी  ने जब उनके मस्तिक पर लगभग बारह वर्षो तक अध्ययन किया और पाया की उनके ध्यान के दौरान गामा तरंगे पैदा होती है जो की आस पास प्रकाश के रूप में दिखाई देती है और इस दौरान मैथ्यु रिकर्ड अपने ध्यान में दया पर सारा ध्यान केन्द्रित करते है और सबसे हैरत करने वाली बात यह है की ऐसी तरंगे पहली बार किसी इंसानी दिमाग में देखा गया है जो की वैज्ञानिको के लिए एक शोध का विषय है
मैथ्यु रिकर्ड के इसी ध्यान और तरंगो के कारण उन्हें दुनिया का सबसे प्रसन्नचित और सुखी इन्सान बनाती है जिसके कारण मैथ्यु रिकर्ड दुनिया के सबसे प्रसन्‍न इंसान भी हैं मैथ्यु रिकर्ड ने अपने इसी ख़ुशी के राज को दो पुस्तको में भी लिखकर प्रकाशित किया है और बताया है की किस प्रकार इन्सान केवल प्रसन्‍नता या खुशी महसूस करने वाली स्थिति से सुखी नहीं हो सकता है इसके लिए उसे अच्छे स्वास्थ्य, स्वस्थ मस्तिक और बेहतर समय बिताकर इसे बनाया जा सकता है
मैथ्यु रिकर्ड का मानना है की जब इन्सान खुद के बारे में यानी कि ‘मैं, मैं और मैं’ के बारे में सोचना बंद कर दें तो निश्चित ही वह सुख प्राप्त कर सकता है जब इनसान अपने बारे में सोचता है तो कही न कही बार बार अपनी चिंता को लेकर मानसिक तनाव उत्पन्न होता है जो की हमारे सारे दुखो की जननी होती है इसके विपरीत जब कोई इन्सान अपने बारे में छोड़कर दुसरो की भलाई और दया के बारे में सोचता है उसे कही न कही मन की शांति और प्रसन्नता का अनुभव होता है और यही कारण है जब इन्सान अपने बारे में छोड़कर दुसरो के हित में सोचे तो खुद को सबसे प्रसन्नचित बना सकता है
मैथ्यु रिकर्ड के यदि विचारो को आत्मसात करे तो निश्चित ही हम सभी प्रसन्नचित रह सकते है
दुनिया के साथ अजूबे के बारे में तो आपने सुना होगा लेकिन एक ऐसे इंसान के बारे में आपने शायद सुना होगा जो दुनिया का सबसे ख़ुश इंसान का दर्ज़ा पा चुके हैं। यूँ तो इंसान का जीवन सुख-दुःख से भरा होता हैं लेकिन मैथ्यू रिकॉर्ड इस मामले में भाग्यशाली है।
वह आख़िरी बार 1991 में दुःखी हुए थे। उनकी ख़ुशी के रहस्य को सुलझाने के लिए अमेरिकन यूनिवर्सिटी ने 12 साल तक रिसर्च किया हैं। इसके लिए उनके दिमाग़ पर 256 सेंसर लगाए गए। इस रिसर्च के यूनाईटेड नेशन (UN) ने उन्हें धरती का सबसे खुशहाल इंसान माना। 

भारतीय शिक्षक ने किया प्रेरित  

मैथ्यू रिकॉर्ड का जन्म फ्रांस में हुआ। वे पिछले 45 सालों से लगातार खुश रहने की कोशिश में जुटे हैं। वह हैप्पीनेस को ही अपनी लाइफ की सबसे बड़ी प्रॉपर्टी मानते हैं। 70 वर्षीय मैथ्यु ने बताया कि पहले वो आज के लोगों की तरह छोटी-छोटी बातों पर टेंशन में आ जाते थे। इसी दौरान जब 1972 में जब वो दार्जिलिंग आए तब उनके टीचर कांगयूर ने डे टू डे लाइफ में खुश रहने के लिए प्रेरित किया। धीरे-धीरे वो आदत में शुमार हो गई। इसके बाद मैंने फ्रांस छोड़कर दार्जिलिंग-नेपाल रहने का फैसला लिया। 
1991 में टीचर की डेथ पर हुए थे दुखी
मैथ्यू प्रोफेशन से साइंटिस्ट और पीएचडी होल्डर हैं। वे बताते है कि मुझे सबसे ज्यादा दुख 1991 में मेरे सबसे प्रिय टीचर और मुझे दुनिया का सबसे खुशहाल इंसान बनाने वाले इंसान डिल्गो ख्येन्त्से रिनपोचे(Dilgo Khyentse Rinpoche) की मौत पर हुआ था। आखिरी बार मैँ उनकी मौत से ही दुखी हुआ था। 
ख़ुशी भी दुःख बन गई 
रिकॉर्ड हंसते हुए कहते हैं दुनिया का सबसे खुशहाल इंसान तो बन गया हूँ। लेकिन यही मेरे लिए दुख बन गया है। मैं दुनिया में जहां जाता हूं वहां लोग मुझसे मेरी खुशी का फार्मूला पूछने लगते हैं। 
12 साल किया दिमाग को हाईजैक
मैथ्यू के ख़ुशी के राज़ को जानने के लिए अमेरिकन की नंबर 1 साइंटिफिक यूनिवर्सिटी विसकॉन्सिन के साइंटिस्ट ने उनके दिमाग पर 12 साल तक रिसर्च किया। इस दौरान उनके सिर पर 256 सेंसर लगाकर बुरी से बुरी परिस्थितियों में दिमाग के अंदर क्या चल रहा है.. या कैसे काम कर रहा है.. इसकी पूरी रिपोर्ट तैयार की। रिसर्च में या बात सामने आई कि उनके दिमाग़ एक गामा तरंग है। ये तरंग दुनिया में बहुत कम लोगों में डेवलप होती है। इसका काम हर कंडीशन में खुशी के लेवल को बढ़ाना होता है। 

मैथ्यु रिकर्ड के विचार 

यदि हम सभी खुश होने के लिए अपने ख़ुशी होने के कारण को ढूढे और इनकी पहचान करे तो निश्चित ही प्रसन्न हो सकते है

  • प्रसन्न रहने के लिए ध्यान करिए और लोगो के भलाई के बारे में सोचिये
  • अपने दिमाग पर हमेसा नियन्त्रण रखे और इसे हमेसा आत्‍मविश्‍लेषण करते रहे
  • प्रसन्न होने के लिए खुद को जागरूक भी करते रहिये
  • बच्चे, बुड्ढे आसानी से अपने दिल से प्रसन्न होकर हस लेते है क्यूकी उनके अंदर न हार का डर रहता है और थोडा और की उन्हें चिंता
  • ख़ुशी पाने के लिए दुनिया को बदलना मुश्किल है लेकिन खुद के भीतरी भाग को हम अपने आप बदल सकते है
  • चिंता करना व्यर्थ है क्यूकी अगर चिंता है तो उसका समाधान भी है तो चिंता करने की जरूरत ही क्या है
तो क्या हम सब भी खुद का आत्मविश्लेषण करके क्या खुद को मन की शांति से सुखी नही रह सकते है यदि हा तो निश्चित ही हम सभी भी दुनिया के सबसे सुखी और प्रसन्नचित व्यक्ति बन सकते है इसकी शुरुआत तो हसी और मुस्कुराहट से होती है और आपको तो पाता ही है हँसी और प्रसन्न रहने से बड़े से बड़े बीमारी को भी आसानी से दूर किया जा सकता है तो आईये हम सभी भी क्यू न दुनिया के प्रसन और सुखी इन्सान बने इसकी शुरुआत अपने हँसी और मुस्कान से करे जब हँसी हमारी दिनचर्या में शामिल होंगी तो निश्चित ही हम स्वत प्रसन्न रहना सीख जाए जायेगे
तो आप सभी को यह पोस्ट दुनिया के सबसे प्रसन्न व्यक्ति मैथ्यु रिकर्ड के बारे में डी गयी जानकारी कैसा लगा प्लीज हमे कमेंट बॉक्स में जरुर बताईयेगा