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Wednesday, 19 December 2018

वीर सावरकर का जीवनी और उनसे से जुडी कुछ अनजान बाते

भारत के स्वंत्रता सेनानियों में विनायक दामोदर सावरकर / Vinayak Damodar Savarkar जिन्हें वीर सावरकर / Veer Savarkar के नाम से हम सब भलीभांति परिचित है  वीर सावरकर / Veer Savarkar एक ऐसे सिद्धहस्त लेखक थे जब इन्होने पहली बार लेखनी चलायी तो सबसे पहले उन्होंने अंग्रेजो के दमनकारी सन 1857 के स्वंत्रता संग्राम का इतना सटीक वर्णन किया की इनके पहले ही प्रकाशन से अंगेजी सत्ता दर गयी थी यहाँ तक की अंगेजो को इनके प्रकाशन पर रोक लगाना पड़ा था वीर सावरकर / Veer Savarkar एक ऐसे देशभक्त थे जिन्होंने 1901 में इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया पर जब नाशिक में शोक सभा का आयोजन किया गया तो सबसे पहले इसका खुलकर विरोध वीर सावरकर / Veer Savarkar ने ही किया था और विरोध करते हुए सावरकर ने कहा था की क्या कोई अंग्रेज हमारे देश के महापुरुषों की मृत्यु पर शोक सभा करते है जब अंग्रेज हमारे देश होकर हमारे बारे में नही सोचते तो भला हमे दुश्मन की रानी की शोक सभा क्यों करनी चाहिए जिसे देखकर अंग्रेजो के हाथ पाँव फुल गये |

वीर सावरकर की जीवनी


वीर सावरकर / Veer Savarkar का जन्म 28 May 1883 को भारत के महाराष्ट्र राज्य के नाशिक जिले के भांगुर गाव में हुआ था इनके पिता का नाम दामोदर पन्त सावरकर और माता का नाम राधाबाई था जब वीर सावरकर महज 9 साल के ही थे तो इनकी माता का हैजे की बीमारी से देहांत हो गया था और फिर माता की मृत्यु के पश्चात 7 साल बाद प्लेग जैसी भयंकर बीमारी के फैलने के कारण इनके पिता भी इस दुनिया को छोड़कर चले गये फिर इनका लालन पालन इनके बड़े भाई गणेश और नारायण दामोदर सावरकर तथा बहन नैनाबाई के देखरेख में हुआ
बचपन से वीर सावरकर / Veer Savarkar पढने लिखने में तेज थे जिसके चलते आर्थिक तंगी के बावजूद इनके भाई ने इन्हें पढने के लिए स्कूल भेजा फिर इसके पश्चात 1901 में वीर सावरकर ने शिवाजी हाईस्कूल से नासिक से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण किया बचपन से ही लिखने का शौक रखने वाले वीर सावरकर / Veer Savarkar ने अपने पढाई के दौरान कविताये भी लिखना शुरू कर दिया था.
इसके पश्चात इनका विवाह सन 1901 में ही यमुनाबाई के साथ हुआ जिसके बाद इनके आगे की पढाई का खर्च की जिम्मेदारी इनके ससुर ने उठाया जिसके बाद इन्होने पुणे के फग्रयुसन कालेज से बीए की पढाई पूरी किया और पाने इसी पढाई के दौरान वीर सावरकर / Veer Savarkar ने आजादी के लिए उस समय के युवा राजनेता बाल गंगाधर तिलक, बिपिन चन्द्र पाल, लाला लाजपत राय जैसे नेताओ से प्रेरणा मिली जो उस समय तत्कालीन बंगाल विभाजन के विरोध में ये लोग देश में स्वदेशी अभियान चला रहे थे जिनसे प्रभावित होकर वीर सावरकर ने पहली बार 1905 में दशहरा के दिन विदेशी कपड़ो की होली चलायी जो की एक तरह से पूरे देश में अंग्रेजी वस्तुओ के विरोध की आग पूरे देश में फ़ैल गयी जिसके बाद वीर सावरकर ने अपने कॉलेज मित्रो के साथ अभिनव भारत नामक संगठन बनाया जिसका उद्देश्य अंग्रेजो से मुक्त नवभारत का निर्माण करना था आजादी के लड़ाई के दौरान वीर सावरकर सक्रीय रूप से अपने संघटन द्वारा आजादी के लड़ाई में भाग लेने लगे थे और जब भी वीर सावरकर लोगो को संबोधित करते हुए भाषण देते थे तो उनके भाषण में आजादी पाने के लिए उतावलापन और हिंदुत्व की स्पष्ट छाप दिखाई पड़ती थी जिसके कारण इनके भाषणों पर सीधा रोक तक लगा दिया गया था
वीर सावरकर अपर रुसी क्रांति का काफी अधिक प्रभाव पड़ा जिसके चलते उन्होंने लन्दन प्रवास के दौरान इंडिया हाउस / India House में पहली बार 10 मई 1907 को पहली बार भारत की प्रथम स्वंत्रता संग्राम का जश्न मनाया गया और इसी दौरान वीर सावरकर की पहली बार लाला हरदयाल से हुई जो की उस समय इंडिया हाउस का देखरेख करते थे फिर वीर सावरकर को अंग्रेजो ने अंग्रेजो के खिलाफ कार्यवाही करने पर 13 मई 1910 को पहली बार इन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गयी फिर इसके पश्चात 31 जनवरी 1911 को इन्हें दोबारा आजीवन कारावास की सजा दी गयी अपने एक ही जीवनकाल में दो दो बार आजीवन कारावास पाने पहले व्यक्ति है

स्वंत्रता प्राप्ति के पश्चात वीर सावरकर बहुत ही खुश तो हुए ही लेकिन उन्हें इस बात का बहुत दुःख भी हुआ की उनके देश के दो टुकड़े हो गये उनका मानना था की किसी भी देश की सीमाए किसी के लिख देने से निर्धारित नही होती है बल्कि देशो की सीमाए देश के नवयुवको के आपसी प्रेम और भाईचारे से निर्धारित होती है
फिर गांधीजी की हत्या के उपरांत 5 फरवरी 1948 को इन्हें प्रिवेंटिव डिटेंन्षन एक्ट धारा के तहत इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन बाद में कोर्ट की कारवाई के बाद इन्हें निर्दोष पाया गया उन्हें जेल से रिहा कर दिया
अक्सर लोगो द्वारा उनपर आरोप लगाया जाता रहा की वीर सावरकर हमेसा भड़काऊ भाषण देते है लेकिन वीर सावरकर स्वराज की कामना के साथ अंतिम समय तक लोगो को हिंदुत्व और आपसी एकता के भाईचारे में जोड़ना नही छोड़े फिर 82 वर्ष की उम्र में 26 फरवरी 1966 को वीर सावरकर हमेसा के लिए इस दुनिया से विदा हो गये

वीर सावरकर से जुडी कुछ अनसुनी बाते

वीर सावरकर को अपने जीवन के तमाम अवसर जेल की काल कोठरियों में बिताना पड़ा लेकिन अपने अदम्य साहस के बलबूते वीर सावरकर हमेसा इन सजाओ से परे होकर विजयी निकलते, वीर सावरकर के जीवन से कुछ ऐसी ही तमाम अनसुनी बाते है जिन्हें हम आईये आज जानते है

1 – वीर सावरकर विश्व के पहले ऐसे क्रन्तिकारी देशभक्त थे जिनसे अंग्रेजी शासन इस तरह हिल गयी थी की इन्हें एक बार नही दो दो बार आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी फिर भी सजा के डर से परे वीर सावरकर तो हसते हुए कहते थे चलो अच्छा है की हिंदुत्व के पुनर्जन्म से इतना डर गयी है की मुझे दो दो बार आजीवन कारावास की सजा मिली है
2 – वीर सावरकर अंग्रेजी शासन के दौरान जब उन्हें काला पानी की सजा मिली थी लगभग जेल में 10 साल गुजारते हुए भी प्रतिदिन खुद कोल्हू चलाते थे और अपनी लेखनी को धर देते हुए जेल की दीवारों पर 6000 से अधिक कविताये लिखी थी जिन्हें उन्हें मुजबानी भी याद था
3 – वीर सावरकर एक ऐसे राष्ट्रभक्त नेता थे जिनको अंग्रेजो ने लगभग 30 साल तक जेल की कोठरियों में कैद कर रखा था यहाँ तक आजादी के पश्चात भी नेहरु सरकार ने भी गांधीजी की हत्या का आरोपी मानकर इन्हें लाल किले में कैद कर दिया गया था लेकिन आरोप न सिद्ध न होने की दशा में इन्हें ससम्मान रिहा कर दिया गया था

4 – वीर सावरकर ने पहली बार अंग्रेजी वस्तुओ का बहिष्कार करते हुए विदेशी वस्त्रो की होली जलाई थी जिसके चलते इनके ऊपर केस चलाया गया और फिर इन्हें कालेज से निकाल भी दिया गया था जिसके विरोध में अनेक हड़ताले भी हुई जो अंग्रेजी शासन के लिए नासूर साबित हुआ बाद में गांधीजी भी इनसे प्रभावित होकर 16 वर्षो के पश्चात 1921 में विदेशी वस्त्रो का बहिस्कार किया
5 – वीर सावरकर ने ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ नामक ग्रन्थ लिखकर अंग्रेजी शासन को हिला दिया था अंग्रेज शासन वीर सावरकर से इतने भयभीत हो गये थे की आखिर वीर सावरकर को इतनी सटीक जानकारी कहा से मिली थी जिसके चलते ब्रिटिश शासन ने इनके पुस्तक को प्रकाशित होने से पहले ही बैन कर दिया था लेकिन भारत में भगत सिंह के अथक प्रयासों से इसे छापा गया था जो हर देशभक्त के घर में यह पुस्तक छपे के दौरान जरुर मिलता था

6 – वीर सावरकर बंदी बनाये जाने के दौरान जब अंग्रेज इन्हें इंग्लैंड से भारत ला रहे थे तो 8 जुलाई 1910 को ये चुपके से समुन्द्र में कूद गये और तैरते हुए वे फ़्रांस पहुच गये थे
7 – वीर सावरकर से अक्सर कांग्रेस शासन इनकी प्रखर और हिंदुत्व की राष्ट्रवादी सोच हमेसा खफा रहती थी जिसके चलते इन्हें आजादी के बाद भी इन्हें जेल में कई सालो तक गुजरना पड़ा था यहाँ तक की इनकी मृत्यु के उपरांत भी जब संसद में शोक प्रस्ताव रखा गया था कई सांसदों ने इनके विरोध में आते हुए साफ़ मना कर दिया था की जब वीर सावरकर संसद के सदस्य थे ही नही तो उनके लिए संसद में क्यू शोक प्रस्ताव रखा जाय
8 – वीर सावरकर की मृत्यु के पश्चात पहली बार 2003 में संसद में इनकी मूर्ति का अनावरण हुआ जिसके विरोध में विपक्षी पार्टियों ने खूब जमकर हंगामा भी किया था यहाँ तक की इनकी मूर्ति को लगने से रोकने के लिए राष्ट्रपति तक को ज्ञापन भेजा गया था लेकिन तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल कलाम इस सुझाव को नकारते हुए खुद अपने कर कमलो से वीर सावरकर के मूर्ति का अनवारण किया था

भले ही आज वीर सावरकर लोगो के बीच में नही है लेकिन उनकी प्रखर राष्ट्रवादी सोच हमेसा लोगो के दिलो में जिन्दा रहेगी ऐसे भारत के वीर सपूत वीर सावरकर को हम सभी भारतीयों को हमेसा नाज रहेगा . इसी कारण हर साल 28 मई को पूरे देश में वीर सावरकर के सम्मान में वीर सावरकर जयंती / Veer Savarkar Jayanti मनाया जाता है ऐसे वीर सपूत भारत माँ के लाल वीर सावरकर को हम सभी की तरफ से नमन …..

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