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Wednesday, 19 December 2018

महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन की जीवनी

अक्सर हम सभी के मुह से यह कहते हुए सुना जाता है की हमारी गणित बहुत ही कमजोर है ऐसा कहकर कही न कही हम गणित से पीछा छुड़ाना चाहते है ऐसा क्यू होता है की हम इतनी आसानी से कह देते है क्यूकी जब ऐसा हम कहते है तो कही न कही हम सभी के दिमाग में ये बात बैठ जाती है की ये हमसे नही हो सकता है और फिर हम सभी अपने दिमाग पर उतना जोर भी नही डालना चाहते है जिससे की हमे गणित पढने से छुटकारा मिल जाये
लेकिन ध्यान देने वाली बात है की हमारा पूरा जीवन ही जोड़ घटाव में लगा रहता है लेकिन क्या आप जानते है की जो महान होते है उनके आगे चाहे कितनी भी परेशानी क्यू न आये वे अपने लक्ष्य को कभी नही छोड़ते है ऐसे महान लोगो से हमारे देश भारत का इतिहास भरा पड़ा है
इनमे से एक विलक्षण प्रतिभा और अद्भुत योग्यता के धनी श्रीनिवास रामानुजन | Srinivasa Ramanujan in Hindi का भी नाम आता है जिनकी पढाई महज 12 वी कक्षा में फेल हो जाने के कारण उनके स्कूल की पढाई छुट गयी और फिर भी 20वी सदी में अपने गणित के 3900 समीकरणों के बदौलत पूरी दुनिया में भारत का नाम रोशन किया जो की अपने आप में महज 33 वर्ष के जीवनकाल में अद्भुत और अकल्पनीय है
तो आईये जानते है श्रीनिवास रामानुजन | Indian Mathematician Srinivasa Ramanujan की जीवन से जुडी जानकारियों के बारे में

श्रीनिवास रामानुजन का जीवन परिचय

पूरा नाम :- श्रीनिवास रामानुजन् अय्यंगर | Srinivasa Ramanujan Iyengar

जन्मतिथि:- 22 दिसम्बर 1887 
माता :- कोमलताम्मल
पिता :- श्रीनिवास अय्यंगर 
पत्नी :- जानकी 
कार्यक्षेत्र :- गणित 
मृत्यु :- 26 अप्रैल 1920 (महज 33 वर्ष की आयु में निधन)
श्रीनिवास रामानुजन  का पूरा नाम श्रीनिवास रामानुजन् अय्यंगर | Srinivasa Ramanujan Iyengar था लेकिन ये रामानुजन | Ramanujan  के नाम से सबसे अधिक जाने जाते है इनके पिताजी का नाम श्रीनिवास अय्यंगर और माता का नाम कोमलताम्मल था इनके माता पिता का परिवार ब्राह्मण परिवार से थे इनका जन्म 22 दिसम्बर 1887 को भारत के तमिलनाडु राज्य के कोयम्बटूर में इरोड नामक में हुआ था
इनका बचपन मुख्यत कुंभकोणम में बिता, और कुंभकोणम  को प्राचीन मंदिरों के लिए जाना जाता है इनके पिताजी साड़ी के एक दुकान में क्लर्क थे और दुकान के बहीखातो का हिसाब रखते थे और साथ में अपनी परिवार के आजीवका के लिए वेदों का पाठ भी किया करते थे जबकि इनकी माता गृहणी के साथ साथ पास के मंदिर की गायिका भी थी

श्रीनिवास रामानुजन का प्रारम्भिक जीवन

श्रीनिवास रामानुजन का बचपन अन्य बालको जैसा सामान्य नही थी तीन वर्ष की आयु हो जाने पर भी रामानुजन बोल नही पाते थे जिसके कारण इनके माता पिता को चिंता होने लगी थी थी की कही रामानुजन गूंगे तो नही है लेकिन रामानुजन बचपन से विलक्षण प्रतिभा के धनी थे और इनकी प्रतिभा इनकी उम्र की कभी मोहताज नही हुई रामानुजन भले ही 33 वर्ष का जीवन जिया लेकिन अपने जीवन की शुरुआत ही गणित प्रेम से ही किया वो कहा जाता है न पूत के पाँव पालने में ही दिख जाते है ये कहावत रामानुजन पर बिलकुल फिट बैठती है

रामानुजन की प्रारम्भिक शिक्षा तमिल भाषा से शुरुआत हुई शुरू में तो इनका मन पढाई में नही लगता था फिर आगे चलकर प्राइमरी परीक्षा में अपने पूरे जिले में पहला स्थान प्राप्त किया फिर आगे की पढाई जारी रखने के लिए पहली बार उच्च माध्मिक स्कूल में गये जहा से इनकी गणित की पढाई की शुरुआत हुई
रामानुजन को बचपन से ही प्रश्न पूछने का शौक था वे और वे कभी कभी ऐसा प्रश्न पूछते थे की सभी को अटपटे लगते थे लेकिन रामानुजन की यही जिज्ञासा थी जिसे वे हर हाल में अपने मन में उठने वाले प्रश्नों का उत्तर जानना चाहते थे वे अपने अध्यापको से पूछते थे की इस संसार का पहला इन्सान कौन था, आकाश और पृथ्वी के बीच की दुरी कितनी है समुन्द्र की कितना गहरा और कितना बड़ा है ऐसे प्रश्न सुनकर इनके अध्यापक का दिमाग भी चकरा जाता था
”एक बार की बात है इनके अध्यापक कक्षा में पढ़ा रहे थे और छात्रो को बताया की अगर किसी भी संख्या को उसी संख्या से भाग दे तो उसका उत्तर एक आएगा ऐसा सुनकर सभी छात्र तो संतुस्ट हो गये लेकिन रामानुजन तुरंत खड़े होकर अपने अध्यापक से पुछा की अगर गुरूजी शून्य को भी शून्य से भाग से भाग दे तो क्या उत्तर एक ही आएगा ऐसा सुनकर उनके अध्यापक का दिमाग चकरा गया और रामानुजन के इस सवाल का कोई भी जवाब उनके पास नही था”
रामानुजन का गणित के प्रति ऐसी दीवानगी थी की एक बार प्रारभिक कक्षा में इनके अध्यापक ने सभी छात्रों को एक से लेकर 100 तक की संख्याओ का योग पूछा और इसके उत्तर के लिए आधा घंटे का समय दिया लेकिन लगभग 10 मिनट का ही समय बिता था की रामानुजन अपने उत्तर को लेकर जाच कराने अपने अध्यापक के पास पहुच गये जब इनके अध्यापक ने इनके उत्तर की जाच की तो उत्तर सही पाया
तो अध्यापक के पूछने पर अपने द्वारा बनाये गये सूत्र को बताया जिसको देखकर इनके अध्यापक भी दंग रह गये थे और जब इनके अध्यापक ने पुछा की तुमने यह सूत्र कहा से सिखा तो रामानुजन ने बताया की ये तो गणित के किताबो को पढकर खुद से विकसित किया है जिससे इनकी विलक्षण प्रतिभा को देखकर इनके अध्यापक के मुह से निकल पड़ा की जरुर रामानुजन एक दिन गणित में भारत का नाम पूरे विश्व में रोशन करेगा जो आगे चलकर सही साबित हुआ

रामानुजन का अन्य विषयों को छोड़कर गणित के प्रति ऐसी दीवानगी थी की अपने घर पर रहने वाले दो किराये के दो विद्यार्थियों के गणित के प्रश्न खुद ही हल कर देते थे जिसे कोई भी सुनता आश्चर्यचकित रह जाता था. रामानुजन बहुत ही सौम्य और मिलनसार थे कोई चाहकर भी इनसे इनको नजरअंदाज नही कर सकता था वे अक्सर पाने साथियों को गणित की सवालो को पहेलियो के रूप में पूछते थे और इस तरह अपने साथियों का मनोरंजन के साथ साथ उनको गणित की तार्किक रूप में उसकी व्याख्या भी करते थे
रामानुजन जब सातवी कक्षा में थे तो अपने पास के रहने वाले बीए के छात्र को गणित पढ़ाते थे और रामानुजन की प्रतिभा का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की मात्र तेरह वर्ष की आयु में ही लोनी द्वारा कृत प्रसिद्द Trigonometry को हल कर दिया था जिसको हल करने के लिए बड़े से बड़े विद्वान भी असफल हो जाते थे और 16 वर्ष की आयु में G. S. Carr. द्वारा कृत “A Synopsis of Elementary Results in Pure and Applied Mathematics” की 5000 से अधिक प्रमेयो को प्रमाणित और सिद्ध करके दिखाया था
रामानुजन गणित में इतने अधिक पढाई करते थे की अन्य विषयों पर थोडा सा भी ध्यान नही दे पाते थे जिसके कारण ग्यारहवी कक्षा में गणित में टॉप किये जबकि अन्य सभी विषयों में फेल हो चुके थे जिसके कारण इनकी कॉलेज की पढाई छुट गयी और जिसके कारण इनको मिलने वाली छात्रवृति भी बंद हो गयी
जिसके बाद इनका समय बहुत ही कठिन दौर से गुजरा और अपने घर की आजीविका के लिए छात्रो को ट्यूशन तथा खाते बही की हिसाब करने की नौकरी करने लगे जिसके कारण 1907 में दिए बारहवीं परीक्षा में भी पूर्ण रूप से फेल हो चुके थे और जिसके चलते इनका पढाई से नाता टूट गया

रामानुजन का संघर्षमय जीवन

जब रामानुजन का पढाई से पूरी तरह नाता टूट जाने के बाद आने वाले पाच साल इनके जीवन के लिए बहुत ही संघर्षमय था इस समय हमारा देश भारत अंग्रेजो के अधीनता में था चारो तरफ परतंत्रता की बेडियो में जकड़े भारत में कही भी न रोजगार के अवसर थे और न ही लोगो के जीवन जीने के लिए कोई उद्देश्य था

हर कोई बस अपने देश भारत को आजाद देखना चाहता था ऐसे में रामानुजन के पास भी न कोई नौकरी थी और न ही नौकरी पाने के लिए कोई बड़ी डिग्री जिसकी चिंता से रामानुजन का स्वास्थ्य दिन पर दिन बिगड़ता जा रहा था जिसके चलते डाक्टरों ने इन्हें घर जाकर आराम करने का सलाह दिए ऐसे में रामानुजन का गणित के प्रति प्रेम ही उन्हें अपने जीवन में आगे बढने की प्रेरणा दिया
सन 1908 में इनके माता-पिता ने रामानुजन का विवाह जानकी नामक कन्या से कर दिया जिसके कारण रामानुजन पर अब पारिवारिक बोझ भी बढ़ गया जिसके कारण इनकी गणित से दुरी बढ़ गयी और फिर नौकरी की तलाश में इन्हें मद्रास भी गये लेकिन इंटर की परीक्षा में अनुतीर्ण होने के कारण उन्हें नौकरी नही मिला.
इसके बाद नौकरी की तलाश में कही जाते अपने साथ अपने गणित के सारे किये हुए कार्य जो की रजिस्टर में होते थे दिखाते थे और फिर नौकरी की तलाश में इनकी मुलाकात डिप्टी कलेक्टर श्री वी. रामास्वामी अय्यर से हुआ जो की वे भी गणित के बहुत ही बड़े विद्वान् थे जो की रामानुजन की प्रतिभा को पहचान गये और फिर रामास्वामी अय्यर ने रामानुजन के लिए 25 रूपये की मासिक तनख्वाह के रूप में इन्हें छात्रवृत्ति की व्यवस्था किया जहा पर रामानुजन ने अपने प्रथम शोधपत्र  “बरनौली संख्याओं के कुछ गुण”  शोध पत्र जर्नल ऑफ इंडियन मैथेमेटिकल सोसाइटी में प्रकाशित हुआ था
और फिर सौभाग्य से एक साल पूरा होते ही रामानुजन को मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में इन्हें लेखाबही के हिसाब रखने के लिए क्लर्क की नौकरी मिल गयी और फिर से रामानुजन अपने गणित के प्रति प्रेम के लिए समय मिलने लगा और फिर इस प्रकार रामानुजन ने अनेक नये नये गणित के सूत्रों को लिखना प्रारम्भ शुरू किया
और फिर इसी उपरांत रामानुजन की मुलाकात पत्रव्यव्हार के चलते विश्व प्रसिद्द गणितज्ञ प्रोफेसर हार्डी से हुआ पहले तो रामानुजन द्वारा भेजे गये बीजगणित के प्रमेयो को प्रोफेसर हार्डी भी पूरी तरह समझ नही पा रहे थे लेकिन जब प्रोफेसर हार्डी ने अपने शिष्यों से रामानुजन के बारे में जाना तो प्रोफेसर हार्डी भी रामानुजन के प्रतिभा के कायल हो गये और पहली बार प्रोफेसर हार्डी ने रामानुजन को अपने विशिष्ट व्यक्तियों के लिए लिस्ट में 100 में से 100 अंक दिए थे शायद यह पहला मौका था जब कोई गुरु अपने शिष्य का कायल हो गया था
यहाँ तक की प्रोफेसर हार्डी भी खुद कहते थे की आजतक मैंने लोगो को गणित के बारे में सिखाया है और मेरी जिन्दगी में पहली बार मै अपने शिष्य रामानुजन से मै सीख रहा हु और फिर प्रोफेसर हार्डी के कहने पर पहली बार रामानुजन ने पहली बार लन्दन की धरती पर कदम रखा और तब तक रामानुजन 3000 से अधिक प्रमेयो को अपने रजिस्टर में लिख चुके थे लेकिन अपने शर्मीले और शांत स्वाभाव के कारण लंदन में खुद को फिट नही पा रहे थे साथ में रामानुजन को वहां का वातावरण भी उन्हें रास नही आया
जिसके कारण उन्हें क्षयरोग हो गया और उस ज़माने में इस रोग की दवा नही होती थी जिसके कारण कुछ दिनों तक वहां रहे फिर इसी उपरांत उन्हें कैंब्रिज विश्वविद्यालय द्वारा बी.ए. की डिग्री भी हासिल हुई और इस दौरान प्रोफेसर हार्डी के साथ मिलकर गणित के अनेक नये सूत्रों की खोज किया
फिर अपने बीमारी के चलते वे 5 साल उपरांत वे इंग्लैंड से भारत लौट आये और फिर भी रामानुजन का स्वास्थ्य दिन पर दिन ख़राब होता जा रहा था और इसी दौरान रामानुजन ने मॉक थीटा फंक्शन पर एक उच्च स्तरीय शोधपत्र भी लिखा जिसका उपयोग वरन गणित नही चिकित्साविज्ञान में कैंसर को समझने के लिए भी किया जाता है जो की अपने आप में अद्भुत और अकल्पनीय भी है
लेकिन जीवन शुरू हुआ है तो इसका अंत भी निश्चित है जिसका सामना हर किसी को करना पड़ता है लेकिन किसी ने भी नही सोचा था की मात्र 33 वर्ष की आयु में रामानुजन 26 अप्रैल 1920 को इस दुनिया को छोड़ जायेगे लेकिन रामानुजन का जीवन बस इतना ही था लेकिन उस समय जो भी रामानुजन के मृत्यु के बारे में सुना स्तब्ध सा रह गया शायद माँ सरस्वती के इस लाल का जीवन शायद इतना ही था और रामानुजन की मृत्यु गणित क्षेत्र में एक महान क्षति थी जिसकी भरपाई करना मुश्किल है
श्रीनिवास रामानुजन के गणित में किये गये कार्यो के प्रति जितना सम्मान दिया जाय वो कम ही है रामानुजन एक ऐसे पहले व्यक्ति थे जो अंग्रेजो द्वारा रॉयल सोसाइटी का फेलो भी नामित किया गया था जो उस ज़माने में किसी भारतीय को ऐसा सम्मान मिलना भी अपने आप में बड़ी बात थी इसी कड़ी में गणितज्ञो के सम्मान में रामानुजन पुरष्कार और रामानुजन इंस्टीट्यूट की भी स्थापना की गयी है और भारत सरकार ने रामानुजन को भारत रत्न के पुरष्कार से भी नवाजा है और गूगल ने भी इनके 125 वी जन्मदिन पर अपने Homepage पर स्थान दिया था और 2014 में इनके जीवन पर आधारित तमिल फिल्म ‘रामानुजन का जीवन’ भी बनाया गया है
श्रीनिवास रामानुजन की मात्र 33 वर्ष थी लेकिन इनका जीवन गणित के प्रति पूरी तरह से समर्पण रहा इनकी जीवन से हमे यही शिक्षा मिलती है जीवन लम्बा हो या छोटा, अगर खुद पर विश्वास हो तो आपके आगे चाहे कितनी भी असफलता क्यू न आये लेकिन आपको अपने जीवन में जो हासिल करना चाहते है उसे जरुर पा सकते है इसके लिए आपके इरादों को मजबूत होना चाहिए और जिनके इरादे मजबूत होते है उन्हें फिर कोई नही रोक सकता है ऐसा श्रीनिवास रामानुजन ने अपने जीवन से सिद्ध करके दिखाया है जो की अपने आप में अद्भुत और अकल्पनीय है

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