आजादी के महानायक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जीवनी
भारत देश के आजादी में अनेक लोगो ने अपने खून को न्योछावर कर दिया कुछ लोग अंग्रेज की गोलियो का शिकार हुए तो कुछ लोग भारत को आजाद कराने के लिए हसते हसते फांसी के फंदे पर झूल गये शायद लोगो को अपने देश के आजादी के प्रति ऐसी दीवानगी थी जो अपने भारत देश को हर हाल में अंग्रेजो के चंगुल से आजाद कराना चाहते है
उन्ही वीर सपूतो में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का भी नाम आता है जिनके साहस और अदम्य हौसलों के कारण अंग्रेज भी अपने दातो तले ऊँगली दबा लेते थे जब द्वितीय विश्व युद्द के दौरान पूरा विश्व युद्ध की आग में जल रहा था तब भारत देश के लोग अपनी आजादी के लिए संघर्षरत थे तब नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने ऐसी स्थिति मे अंग्रेजो से लोहा लेने के लिए अपनी सेना आजाद हिन्द फ़ौज के साथ जापन के साथ खड़े थे तो अंग्रेज डर के मारे सुभाष चन्द्र बोस | Subash Chandra Bose की हत्या का प्रयास करने लगे थे जब सुभाष चन्द्र बोस ने “तुम मुझे खून दो, मै तुम्हे आजादी दूंगा” का नारा दिया था तब शायद सुभाष चन्द्र बोस की इस नारा के आगे अंग्रेज भी नतमस्तक हो चुके थे और अंग्रेजो को आजादी देने पर विवश कर दिया था तो आईये जानते है आजादी के ऐसे वीर पुरुष और आजाद हिन्द के महानयक सुभाष चन्द्र बोस के जीवन के बारे में जिनके जीवन से आज भी हर भारतीय प्रेरित होता है
सुभाष चन्द्र बोस – जीवन परिचय
नाम – सुभाष चन्द्र बोस
जन्म तारीख – 23 जनवरी 1897
जन्म स्थान – कटक शहर (उड़ीसा)
माता का नाम – प्रभावती देवी
पिता का नाम – जानकीनाथ बोस
शिक्षा – बी.ए (आनर्स)
ख्याति – भारत के अग्रणी स्वंत्रता सेनानी
विशेष उपलब्धी – आजाद हिन्द फ़ौज के संस्थापक (सुप्रीम कमांडर)
प्रमुख नारा – “तुम मुझे खून दो, मै तुम्हे आजादी दूंगा” और “जय हिन्द”
मृत्यु – 18 अगस्त 1945 में विमान दुर्घटना में मृत्यु (मृत्यु के पुख्ता प्रमाण न होने के कारण आज भी भारत के इतिहास के संदेह का विषय है जिसके लिए दो बार आयोग का गठन भी हो चूका है परन्तु आज भी इनके मृत्यु आज भी एक रहस्य है )
सुभाष चन्द्र बोस की जीवनी
सुभाष चन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक शहर में हुआ था इनके पिता का नाम जानकीनाथ था जो पेशे से वकील और माता का नाम प्रभावती देवी था जानकीनाथ के कुल 14 संतान थी जिनमे सुभाष चन्द्र बोस कुल 6 बहन 8 भाई थे जिनमे सुभाष चन्द्र बोस अपने माता पिता के नौवी संतान थे सुभाष चन्द्र बोस अपने अपने शरतचन्द्र बोस से सबसे ज्यादा लगाव था
बचपन से ही मेधावी और पढने में तेज सुभाष चन्द्र बोस की आरम्भिक शिक्षा कटक में प्रोटेस्टेण्ट यूरोपियन स्कूल से हुई इंटरमीडिएट की पढाई में बीमार होने के बावजूद पूरे कॉलेज में दूसरा स्थान प्राप्त किया था बचपन से ही सेना में भर्ती की इच्छा रखने वाले सुभाष चन्द्र बोस के जब इंग्लिश टीचर ने भारत के विरुद्ध टिप्पणी किया तो ऐसे में सुभाष चन्द्र बोस से रहा नही गया और अपने टीचर के खिलाफ जमकर विरोध किया फिर कॉलेज से नाम कट जाने के बाद स्कॉटिश चर्च कॉलेज में प्रवेश लिया
फिर 1919 में बीए की परीक्षा में प्रथम श्रेणी से पास हुए और पूरे कलकत्ता विश्वविद्यालय में उनका दूसरा स्थान था और फिर अपने पिता के इच्छा का सम्मान करते हुए आगे की पढाई के लिए 15 सितम्बर 1919 को इंग्लैण्ड गये जहा उन्होंने आईसीएस की परीक्षा में चौथा स्थान हासिल किया और फिर और फिर आईसीएस रहकर वे अंग्रेजो की गुलामी नही करना चाहते थे ये बात अपने भाई और माँ को बताया तो उनकी माँ गर्व से भर गयी इसके बाद सुभाषचन्द्र बोस 1921 में वापस अपने देश भारत लौट आये
आजादी के लिए सुभाषचन्द्र बोस का जीवन
सुभाषचन्द्र बोस श्री अरविन्द घोष के विचारो से बहुत ही प्रेरित थे फिर जब वे वापस भारत लौटे तो तुरंत गाँधीजी से मिलने पहुच गये और उनकी गांधीजी से पहली मुलाकात 20 जुलाई 1921 को हुई और इसी दौरान गाँधीजी के सलाह पर वे कोलकाता में दासबाबू से मिलकर असहयोग आन्दोलन में हिस्सा लिया जहा पहली बार गांधीजी ने सुभाषचन्द्र बोस को “नेताजी” कहकर पुकारा था जिसके कारण सुभाषचन्द्र बोस नेताजी के नाम से प्रसिद्द हो गये
फिर 1922 में भारतीय कांग्रेस के नेतृत्व बंगाल में स्वराज पार्टी की स्थापना की फिर कोलकाता महापालिका में भारी जित के बाद सुभाषचन्द्र बोस को महापालिका का अध्यक्ष बनाया गया जिससे सुभाषचन्द्र बोस ने अपने कार्यकाल में कोलकाता के सभी रास्तो का अंग्रेजी नाम से बदलकर भारतीय नाम दिया जिसके कारण सुभाषचन्द्र बोस की प्रसिद्धि युवाओ में बहुत तेजी से फ़ैल गयी और वे युवाओ के लिए आजादी के प्रेरणा श्रोत्र बन गये
1928 में जब साईमन कमिशन भारत लाया गया कोलकाता में सुभाषचन्द्र बोस के नेतृत्व में इसका विरोध किया गया और फिर साईमन कमिशन को जवाब देने के लिए कांग्रेस ने मोतीलाल नेहरू के नेतृत्व में आयोग का गठन किया गया जिसमें सुभाषचन्द्र बोस भी इस आयोग के एक सदस्य थे और फिर अपनी बीमारी के चलते सुभाषचन्द्र बोस ने 29 अप्रैल 1939 को सुभाष ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और इसके पश्चात फॉरवर्ड ब्लॉक पार्टी की स्थापना की जिसका मुख्य उद्देश्य आजादी की लडाई में तेजी लाना था जिसके लिए लोगो के बीच जाकर सुभाषचन्द्र बोस आजादी के लिए प्रेरित करते थे
आजाद हिन्द फ़ौज का गठन
सुभाषचन्द्र बोस का मानना था की यदि दुश्मन को मारना है तो दुश्मन के दुश्मन से दोस्ती कर लेनी चाहिए इसी कड़ी में जब 21 अक्टूबर 1943 को सुभाषचन्द्र बोस ने “आजाद हिन्द फ़ौज ” की स्थापना किया और फिर अपने सैनिको को “जय हिन्द”, “तुम मुझे खून दो, मै तुम्हे आजादी दूंगा” और “दिल्ली चलो” जैसे नारे दिए और इस सेना में अंग्रेजो द्वारा बंदी बनाए गये भारतीयों को भर्ती किया गया
और महिलाओ के लिए झाँसी की रानी रेजिमेंट भी बनायी गयी जिसका मकसद आजादी के लिए भारतीय महिलाओ को भी प्रेरित करना था और द्वितीय विश्व के दौरान अंग्रेजो के खिलाफ जापानी सेना की मदद की और फिर आजाद हिन्द फ़ौज की मदद से सुभाषचन्द्र बोस अंग्रेजो से अंडमान और निकोबार द्वीप समूह जीत लिए थे फिर इसके बाद इम्फाल और कोहिमा पर आजाद हिन्द फ़ौज ने आक्रमण किया जिसमे जापानी सेना की मदद न मिलने के कारण सुभाषचन्द्र बोस को पीछे हटना पड़ा
6 जुलाई 1944 को आज़ाद हिन्द रेडियो पर अपने भाषण में सुभाषचन्द्र बोस ने गान्धीजी को सम्बोधित करते हुए नेताजी ने जापान से सहायता लेने का अपने भारत की आजादी के लिए कारण बताया और कांग्रेस से निकाले जाने के बावजूद सुभाषचन्द्र बोस ने पहली बार गांधीजी को राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया और अपनी इस आजादी के जंग की विजय के लिए आशीर्वाद भी माँगा, शायद सुभाषचन्द्र बोस के महानता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है गांधीजी के विरोध होने के बावजूद सुभाषचन्द्र बोस ने गांधीजी का सम्मान करना नही छोड़ा
सुभाषचन्द्र बोस की मृत्यु
द्वितीय विश्व युद्ध में जापन की हार हो जाने के कारण सुभाषचन्द्र बोस ने अब अपनी सेना की सहायता के लिए रुस की तरह रुख किया था और इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए 18 अगस्त 1945 को सुभाषचन्द्र बोस हवाई जहाज से मंचूरिया की तरफ जा रहे और फिर अचानक इनका विमान लापता हो गया जिसके बाद फिर सुभाषचन्द्र बोस कभी भी नही दिखाई दिए अलग अलग देशो द्वारा इनकी मृत्यु की अलग अलग खबर दी गयी जो की आज भी इनके मृत्यु का रहस्य बना हुआ है और फिर इनकी मृत्यु की जाच के बनी भारतीय आयोग का भी दो बार गठन किया जिसमे कोई भी विमान दुर्घटना के सबुत न मिलने के कारण इनके मृत्यु के रहस्य पर आज भी पर्दा बना हुआ है
सुभाषचन्द्र बोस का भारतीय जनमानस पर प्रभाव
भले ही सुभाषचन्द्र बोस की मृत्यु का रहस्य पर आज भी पर्दा बना हुआ है लेकिन लोगो के जेहन में सुभाषचन्द्र बोस का नाम आते ही लोग खुद को प्रेरित करने से रोक नही पाते है उनका दिया हुआ नारा “तुम मुझे खून दो, मै तुम्हे आजादी दूंगा” और “जय हिन्द” मन में एक अजब तरीके से उर्जा का संचार करता है और जब भी भारत की आजादी की बात होंगी सुभाषचन्द्र बोस के सहयोग को भुलाया नही जा सकता है भले ही आज सुभाषचन्द्र बोस हमारे बीच में नही है लेकिन उनके द्वारा दिखाए गये आजादी के प्रति दीवानगी हमे हमेसा अपने देशप्रेम को बढ़ावा देगी
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